क्या पंजाब को हुआ वित्तीय नुक्सान पूरा हो गया है ?

बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का,
जो चीरा तो इक कतरा-ए-खून न निकला।
जनाब हैदर अली आतिश का यह शे’अर स्वयं याद आ गया, जब पंजाब के मंत्रियों और मुख्य सचिव करण अवतार सिंह  के बीच मुख्य सचिव द्वारा माफी मांग लिए जाने के बाद समझौता होने का समाचार सुना। क्योंकि जिस तरह पंजाब के मंत्रियों ने शराब के मामले में पंजाब को आर्थिक पक्ष से हो रहे नुकसान की बात उठाई थी। जिस तरह का शोर उन्होंने मचाया था, उससे तो यही लगता था कि अब यह मंत्री ज़रूर इस मामले की जांच करवा कर ही दम लेंगे और इस नुकसान की ज़िम्मेदारी भी ज़रूर किसी के हिस्से आएगी। परन्तु इस शे’अर की तरह, मंत्रियों का शोर ही इस माफी से खत्म नहीं हो गया, अपितु इस तरह लग रहा है कि जैसे पंजाब को मुख्य सचिव की माफी के तीन लफज़ ही अढ़ाई-तीन हज़ार करोड़ रुपए में पड़े हों।
सवालों का कोई जवाब नहीं
बेशक पंजाब के मंत्रियों को मुख्य सचिव की शारीरिक भाषा और उनके शब्दावली का अंदाज़ नाराज़ कर गया था। जिस कारण मंत्रियों ने गुस्से में आकर कैबिनेट बैठक का बहिष्कार ही नहीं किया, अपितु आगे से भी मुख्य सचिव की उपस्थिति वाली किसी भी कैबिनेट बैठक में हिस्सा लेने से इन्कार कर दिया था। गौरतलब है कि इसके साथ ही उन्होंने मुख्य सचिव के बेटे के एक प्रमुख डिस्टलरी से आर्थिक संबंध होने के सनसनीखेज़ आरोप भी लगाए थे। जबकि मुख्य सचिव ने शराब से इकट्ठा होने वाला आर्थिक लक्ष्य पूरा न होने संबंधी पक्ष पेश करते हुए राजनीतिक संरक्षण में हो रही शराब की तस्करी को ज़िम्मेदार ठहराया था।अब सवाल उठते हैं कि क्या मुख्य सचिव की माफी से और वह लिख कर दें कि उनके बेटे का किसी डिस्टलरी में कोई लेना-देना नहीं है, साथ ही इस बात की कोई ज़रूरत नहीं रही कि मामले की बाकायदा जांच हो। क्या अब विगत 3 वर्षों में शराब के मामले में पंजाब को हुए हज़ारों करोड़ रुपये के आर्थिक नुकसान की ज़िम्मेदारी तय करने के लिए किसी जांच की ज़रूरत नहीं रही?सवाल तो और भी बहुत हैं, पंजाब में कुछ नकली शराब बनाने वाले बॉटलिंग प्लांट पकड़े गए हैं। जिनमें कच्चे माल के रूप में मुख्य तौर पर ई.एन.ए. (एक्स्ट्रा न्यूटर्ल एल्कोहल) का इस्तेमाल किया जा रहा था। गौरतलब है कि शराब फैक्टरियों में भी यही पदार्थ इस्तेमाल किया जाता है। यह ई.एन.ए. कोई आम बाज़ार में खुली मिलती वस्तु नहीं है कि इसको कहीं से भी कोई खरीद ले। इसके 3 ही मुख्य स्रोत हैं। पहला चीनी मिलें जहां यह एथानोल की तरह ही एक बॉय प्रोडैक्ट (उप-उत्पाद) के रूप में बनती है। दूसरा शराब डिस्टलरियों में बनाई जाती है और तीसरा बाहरी देशों से आयात की जाती है।  एक स्टडी के अनुसार 2018 में भारत में 2.9 बिलियन लीटर ई.एन.ए. की खप्त हुई थी। वर्ष 2023 तक भारत में 3.8 मिलियन लीटर तक खप्त बढ़ने का अनुमान है। परन्तु इस एक्स्ट्रा न्यूटरल एल्कोहल की एक बूंद भी बिना हिसाब-किताब बेची या खरीदी नहीं जा सकती। फिर अभी तक पुलिस और आबकारी विभाग यह पता क्यों नहीं लगा सका कि नकली शराब फैक्टरियों में आई हज़ारों लीटर ई.एन.ए. कहां से आई थी? लगता है मामला वहीं पर ही खत्म कर दिया गया है। बस पुलिस अब नकली शराब फैक्टरियों से शराब लेकर आगे बेचने वालों पर कार्रवाई करने तक ही सीमित हो गई है।इस दौरान सरकार द्वारा कर और आबकारी विभाग में किए गए बड़े स्तर के फेरबदल एक ही संकेत देते हैं कि पंजाब सरकार यह समझती है कि नकली शराब फैक्टरियों के बिना अवैध शराब की तस्करी में कहीं न कहीं आबकारी विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत ज़रूर है। परन्तु आश्चर्यजनक बात यह है कि फेरबदल से ही समझ लिया जाता है कि अब यह अवैध सप्लाई नहीं होगी। यह तो ‘बिल्ली को देख कर कबूतर के आंखें बंद करने’ जैसी कार्रवाई ही मानी जाएगी। ज़रूरत तो यह है कि मामले की जांच करवा कर इस का स्थायी हल निकाला जाए। परन्तु जो नज़र आ रहा है उससे नहीं लगता कि पंजाब में शराब माफिया का कोई कुछ बिगाड़ सकेगा।
पी.सी.एस. अधिकारी और विभाग?
कर और आबकारी विभाग पंजाब जो शराब से संबंधित सभी मामले देखता है, संबंधी जानकारी लेते हुए एक और बड़ी दिलचस्प बात सामने आई है कि इस विभाग में 4 डी.ई.टी.सी. (उप-आबकारी और कर कमिश्नर) 4 ए.इ.टी.सी. (सहायक आबकारी और कर कमिश्नर) के पद पी.सी.एस. अधिकारियों के लिए आरक्षित या निश्चित हैं। जी.एस.टी. लागू होने के बाद 2 ज्वाइंट डायरैक्टरों के पद भी पी.सी.एस. अधिकारियों के लिए हैं। परन्तु आम तौर पर या इन पदों पर पी.सी.एस. अधिकारी लगाये ही नहीं जाते या फिर कभी लगाये भी जाते हैं तो उनको लम्बा समय टिकने नहीं दिया जाता। कई बार उनको उनके लिए निश्चित ज़िलों के स्थान पर छोटे ज़िलों में लगा कर काम चला लिया जाता है। बताया गया है कि वास्तव में शराब के ठेकेदारों, डिस्टलरियों और विभाग के अधिकारियों का ऐसा गठबंधन हो चुका है कि किसी बाहरी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं किया जाता। यह गठबंधन इतना मजबूत है कि वह पी.सी.एस. अधिकारियों का तबादला जल्द ही करवा देता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस समय विभाग में 10 के स्थान पर 4 पी.सी.एस. अधिकारी तैनात हैं, जिनमें से भी एक मुख्य कार्यालय में है और एक उनके लिए निश्चित पद के स्थान पर किसी अन्य छोटे ज़िले में तैनात बताया जा रहा है। आम तौर पर पी.सी.एस. अधिकारी न लगाने का आधार यह बनाया जाता है कि उनको इस विभाग के कायदे-कानूनों संबंधी जानकारी नहीं होती। फिर इस विभाग के सबसे बड़े अधिकारी तो आई.ए.एस. अधिकारी होते हैं, उनको भी तो इसी कसौटी पर उतारा जाना चाहिए।
मंत्रिमंडलीय में फेरबदल
इस समय शराब के मामले में उपजे झगड़े के बाद यह समाचार गर्म हैं कि इस मामले में नाराज़गी दिखाने वाले मंत्रियों में कुछ मंत्रियों की छुट्टी करने के लिए मंत्रिमंडल में फेरबदल करने पर विचार हो रहा है। परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार अभी निकट भविष्य में मंत्रिमंडल में बदलाव के आसार न के समान हैं परन्तु हां इन समाचारों को फैलाने का उद्देश्य ज़रूर पूरा हो चुका लगता है।प्राप्त जानकारी के अनुसार ऐसे समाचार फैलने से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को दोहरा लाभ था। पहली बात तो यह कि मुख्यमंत्री किसी भी कीमत पर अपने मुख्य सचिव की सेवानिवृत्ति से पूर्व छुट्टी नहीं करना चाहते थे। इसलिए मंत्रियों और मंत्रिमंडल में फेरबदल का डर मामले को सम्भालने में एक प्रभावशाली स्थिति पैदा करता है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री ने इस मामले को स्वयं सम्भालने का यत्न किया। पहले कुछ विधायकों और मंत्रियों को मुख्यमंत्री द्वारा दोपहर के खाने हेतु बुलाया गया। परन्तु बात किसी किनारे न लगी क्योंकि वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल तो घरेलू स्थितियों के कारण आ ही नहीं सकते थे। जबकि तकनीकी शिक्षा मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी उस लंच में नहीं पहुंचे। परन्तु 25 मई को मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए दोपहर के खाने में बादल और चन्नी दोनों उपस्थित थे। समझा जाता है कि इस बैठक में मुख्य सचिव की पूरे मंत्रिमंडल से माफी की कहानी तय हो गई थी।  मंत्रिमंडल में बदलाव के समाचारों का मुख्यमंत्री को दूसरा लाभ यह बताया जा रहा है कि मंत्री न बनाए जाने से नाराज़ विधायक अब कुछ महीने फिर इस उम्मीद में चुप बैठ जाएंगे कि देखें, ‘ऊंट का होंठ’ कब गिरता है।

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