संघर्ष का मैदान बन सकता है किसानों को बिजली बिल लगाने का फैसला

जालन्धर, 28 मई  ( मेजर सिंह ): आर्थिक तंगी का शिकार पंजाब सरकार द्वारा और कज़र्ा हासिल करने के लिए शर्तें पूरी करने के लिए किसानों को ट्यूबवैलों के लिए मुफ्त दी जाती बिजली बंद करके नकद भुगतान का किया फैसला पंजाब सरकार में संघर्षों का मैदान बन सकता है। वर्णनीय है कि पिछली बार बनी कैप्टन सरकार ने भी पंजाब के किसानों को सिंचाई के लिए दी जाती मुफ्त बिजली की सुविधा समाप्त करके बिल लगा दिए थे परंतु 2000 में चुनावों से कुछ समय पहले किसानों के संघर्ष से डरते हुए किसानों की बिजली सबसिडी पुन: बहाल कर दी थी। सिंचाई के लिए किसानों को मुफ्त बिजली दिए जाने का बड़ा फैसला फरवरी 1997 में स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता संभालते ही लिया था। कई और राज्यों ने भी इसको लागू कर लिया था। किसानों को मुफ्त बिजली के फैसले पर अनेक बार उंगलियां भी उठती रही हैं। कोरोना आपदा में केन्द्र सरकार ने राज्यों को अपने कुल घरेलू आमदन के साढ़े 3 फीसदी तक कर्ज़ा लेने की सीमा को बढ़ा कर 5 फीसदी कर दिया है, परंतु शर्त लगा दी है कि ज्यादा कज़र्ा तब ही ले सकेंगे यदि वह किसानों को दी जाती बिजली, शहरों में पानी व सीवरेज के बिल लेंगे। एक-एक राशन कार्ड की नीति को लागू करेंगे व प्रापटी टैक्स मौजूदा सर्कल दरों से जोड़ कर लेंगे। कैबिनेट ने अगले वित्तीय वर्ष से किसानों से बिजली बिल लेने का फैसला किया है व दिसम्बर तक इसको एक ज़िले में शर्त मुताबिक लागू भी किया जाएगा। वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को उधार लेने की सीमा में वृद्धि कोई खैरात नहीं। यह तो और कज़र्ा लेने की मोहलत ही दी गई है। पंजाब पर इस समय 2 लाख, 40 हज़ार करोड़ रुपए के करीब तो पहले ही कज़र्े का बोझ है और नया 12 हज़ार करोड़ रुपए और कज़र्ा चढ़ गया तो पिछली किश्त पर ब्याज तो भुगत जाएगा, परंतु कज़र्े में हो रही बढ़ौतरी को कौन रोकेगा? अकाली लीडरशिप व किसान संगठन कह रहे हैं कि और कज़र्ा लेने के लिए शर्तें मान कर किसानों को निशाना बनाना कहां की समझदारी है। नकद अदायगी ट्यूबवैल वालों को ही होगी या सब किसानों को व ऐसी अदायगी बिलों के आधार पर होगी या औसतन।
अकाली व किसान संगठन हुए तेज़ : कैप्टन सरकार के फैसले विरुद्ध विधायक लाभबंदी के लिए अकाली लीडरशिप व किसान संगठनों ने गतिविधियां तेज़ कर दी हैं। रणनीति तय करने के लिए अकाली दल के प्रधान स. सुखबीर सिंह बादल ने पार्टी की कोर कमेटी की बैठक बुलाई है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष तालमेल कमेटी में शामिल 10 किसान संगठनों ने भी इस फैसले का सख्त विरोध करने का फैसला किया है। किसान नेता कुलवंत सिंह संधू ने कहा कि पंजाब की कृषि के निगमीकरण व निजीकरण की ओर उठाया कदम है। संगठन इस फैसले का विरोध करेंगी व किसान बिल नहीं भरेंगे।