मोदी सरकार का एक वर्ष

मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी का एक वर्ष पूरा कर लिया है। पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कद ऊंचा बना रहा। देश में भी उनकी भारी चर्चा हुई तथा विदेशों में चार दर्जन से अधिक देशों के दौरे के दौरान उनकी भरपूर प्रशंसा होती रही। पहली पारी में मोदी सरकार की बड़ी सफलता अनेक पक्षों से जन-साधारण को सम्बोधित होने की थी, जैसे घरों में शौचालयों एवं स्वच्छता  के अतिरिक्त घरेलू महिलाओं को करोड़ों गैस सिलेंडर देना और जन-धन माध्यम से कोरोड़ों लोगों को बैंकों से जोड़ना। ये बेहद सफल माने गये थे, जिनके ज़रिये करोड़ों लोगों को सरकार के प्रभाव के अन्तर्गत लाया गया, परन्तु इसके साथ ही उस समय देश भर में बहने वाली साम्प्रदायिक हवा, जातिवाद एवं धर्मों के नाम पर बढ़ते हुए भेदभाव, इन क्षेत्रों में स्थापित परम्पराओं के प्रति लापरवाही एवं सरकार की ओर से ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई कड़ा सन्देश न देने ने असहमति के स्वरों को भी तेज़ कर दिया था। इस बात का भी आभास होना शुरू हो गया था कि कुछ असंयमित नीतियों को इसलिए आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि बहु-संख्यक समुदायों को सरकार के साथ जोड़ा जा सके। इसके साथ ही सरकार के समक्ष देश के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने एवं बेरोज़गारी को घटाने की चुनौतियां भी निरन्तर बनी रही थीं। घोषित की गई नोटबंदी ने देश की अर्थ-व्यवस्था को पूर्णतया गड़बड़ कर दिया था। यह कदम निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति करने में असफल रहा, परन्तु इसकी ज़द में ़गरीब एवं मध्यम वर्गीय लोग अधिक आ गये जिससे सरकार बेरोज़गारी घटाने के निशाने में भी असफल होते दिखाई दी। इस सब कुछ के बावजूद मोदी का भारी प्रभाव बना रहा तथा भाजपा की तूती बोलती रही। दूसरे कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा और भी शक्तिशाली एवं मज़बूत बन कर सामने आई थी। इस कारण सरकार के ढंग-तरीकों में भी परिवर्तन आ गया तथा इसने महत्त्वपूर्ण मामलों पर किसी प्रकार की कोई संयुक्त राय बनाने को भी पूर्णतया त्याग दिया। नि:सन्देह जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को खत्म करना मोदी सरकार का बड़ा कदम कहा जा सकता है, क्योंकि देश की आज़ादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के समय से ही कश्मीर मामले के प्रश्न पर बेहद कमज़ोर नीतियां बनाई जाती रही थीं, जिन्होंने पाकिस्तान को आक्रामक बनाये रखा। वहीं इस प्रदेश के आंतरिक हालात भी बहुत बिगड़ते रहे। चाहे पाकिस्तान के साथ इस मामले के संबंध में कोई हल नहीं निकाला जा सका, परन्तु इस कदम को सरकार की दृढ़ता की अभिव्यक्ति  अवश्य कहा जा सकता है। इस कार्यकाल में ऐसी ही दृढ़ता तीन तलाक के मामले पर भी दिखाई गई, जिसने देश की करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को सामाजिक तौर पर घुटन में से निकालने का यत्न किया। सरकार ने आर्थिक सुधारों की ओर कदम बढ़ाते हुए सरकारी बैंकों को भी एकत्रित करने की कार्रवाई की। चाहे राम मंदिर के मामले पर सरकार बहु-संख्यक लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब हुई है, परन्तु नागरिकता संशोधन कानून में एक महत्त्वपूर्ण वर्ग को मनफी किये जाने के कारण व्यापक स्तर पर सरकार की आलोचना भी होती रही है। इस मामले पर देश भर में हुए प्रदर्शनों एवं धरनों ने इस बात को परिपक्व किया कि देश की आज़ादी के बाद मजबूत होती रही संवैधानिक परम्पराओं को दृष्टि- ओझल करना अतीव कठिन है तथा यह भी कि देश की बड़ी संख्या में लोग इन परम्पराओं पर पहरा देने के समर्थक हैं। मोदी सरकार की इस दूसरी पारी की विदेश नीति प्रभावशाली रही है। चाहे पाकिस्तान के बाद चीन एवं नेपाल के साथ संबंधों में पड़ी दरारें बड़ी दिखाई देने लगी हैं। कोरोना महामारी के संकट से निपटने में मोदी सरकार की कार्रवाइयां प्रभावशाली रही हैं, परन्तु प्रवासी मज़दूरों के पलायन के गम्भीर एवं दुखद मामले का गहरा प्रभाव सरकार पर पड़ा है। पहले ही बेरोज़गारी पर काबू न पा सकने एवं देश की आर्थिकता की गति सुस्त होने के कारण कोरोना महामारी संकट के कारण यह और भी निचले स्तर पर आ गई है। अब करोड़ों लोगों के बेरोज़गार होने से एक नया संकट पैदा हुआ है जो सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। आर्थिक गिरावट भी विकास के कार्यों की गति को अतीव सुस्त कर सकती है, जिससे सरकार की ओर से बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने की योजनाएं बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं। इस समूचे परिदृश्य में सरकार के लिए अपने दूसरे कार्यकाल का दूसरा वर्ष अत्याधिक चुनौतीपूर्ण बन सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द