श्री गुरु ग्रंथ साहिब : विषय व वस्तु

26मई श्री गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस था। उनकी याद में लाहौर में एक गुरद्वारा डेरा साहिब स्थापित है। देश के विभाजन से पहले सिख श्रद्धालु यहां नतमस्तक होते थे। विभाजन के बाद भारत से पाकिस्तान जाने वालों से रास्ते में कठिनाईयां आने के कारण हर साल बहुत से श्रद्धालु लाहौर नहीं जा सकते। इस बार कोरोना वायरस वाली तालाबंदीने हर किसी को पैरों में बेड़ियां डाल रखी हैं। मेरे जैसे अनेक ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब को माथा टेक कर मन समझा लिया है। मेरे सामने एक और विकल्प भी पड़ा है। डॉ. जसपाल सिंह रचित श्री गुरु ग्रंथ साहिब वाणी का संकलन व चिंतन (नवयुग पब्लिशज़र् पृष्ठ 210, मूल्य 375 रुपए)। यह रचना सिखी मान-मर्यादा का केन्द्र है। खूबी यह कि इस में वर्तमान काल ले लिए आवश्यक दिशा-निर्देश भी, गुरवाणी के योग्य प्रसंग सहित दर्ज है। विचाराधीन पुस्तक के पांच अध्याय हैं। पहले अध्याय में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की वाणी के संकलन, सम्पादन तथा उससे जुड़े विषयों बारे चर्चा की गई है जिस तरह वाणी की तरतीब, सम्पादकी जुगतें, बिंब विधान, संगीत की परम्परा व भाषा तथा लिपि। दूसरे अध्याय में ‘सबदु गुरु  सुरति धुनि चेला’ तथा ‘वाणी गुरु गुरु है वाणी’ के सिद्धांत तथा संकलप की व्याख्या है, वाणी के अदब-सम्मान, वाणी के वैश्विक सरोकार तथा उसकी विश्व-दृष्टि की चर्चा सहित तीसरे अध्याय में पहले पांच गुरु साहिबान व नौवें गुरु तेग बहादुर साहिब की वाणी का संदेश व महत्व समाया हुआ है। 
चौथे अध्याय में वाणी के रचनाकार पंद्रह भक्तों कबीर, नामदेव, रविदास, रामानंद, जय देव, त्रिलोचन, धन्ना, सैणि, पीपा, भीखन, सधना, परमानंद, सूरदास, बेणी तथा भक्त बाबा फरीद जी की वाणी की प्रकृति तथा उसमें से प्राप्त हो रहे ज्ञान बारे योग्य चर्चा की गई है। पांचवें तथा अंतिम अध्याय में बाबा सुंदर एवं भाई मरदाना जी की वाणी तथा सत्ता-बलवंड की वार तथा ग्यारह भट्टों की  वाणी का विवरण दर्ज है। 
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज वाणी का मूल मनोरथ चाहे मानव जाति को अध्यातम से जोड़ना है परंतु यह समय के सरोकारों के साथ कितनी ओतप्रोत थी। गुरु नानक देव जी के बाबर के हमले से संबंधित श्लोक से पता चल जाता है:
खुरासान खसमाना कीआ
हिन्दुस्तान डराया।।
आपै दोसु ना देई करता 
जमु करि मुगलु चड़ाया।।
एती मार पई करलाने
तैं की दरदु न आया।। 
डॉ. जसपाल सिंह के अनुसार देखने वाली बात यह है कि दुनिया के सभी धर्म-ग्रंथ किसी न किसी रूप में मनुष्य जीवन की ओर प्रेरित हैं परंतु श्री गुरु गं्रथ साहिब का नव्यतम मुकाम है। यह एक विलक्षण धर्म-ग्रंथ है, जिसे गुरु का दर्जा प्राप्त है और जिससे दुनिया का प्रत्येक मनुष्य दुनियावी तथा रुहानी संरक्षण प्राप्त कर सकता है। मज़हबों के भेद-भाव तथा मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद के हर बंधन से मुक्त समूची मानवता की साझी विरासत। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र वाणी के प्रवाह को आगे हर दीवार टूट जाती है।  हम देखते हैं कि गुरु ग्रंथ साहिब में मानवीय मन को धर्म, सिमरन, परमार्थ, परोपकार, सब्र, संतोष व सेवा का जो उपदेश दिया गया है, उस समय के सांस्कृतिक हालात तथा सांसारिक आस-पास में गडमड हुआ है। रचानाकारों ने दुनियावी क्षेत्र से संबंधित सभी विषयों बारे अपना प्रतिक्रम निधड़क व निशंग पेश किया है। हम देखते हैं कि गुरु ग्रंथ साहिब में दूसरे रचनाकारों का दायरा बहुत विशाल रखा गया है। हर मज़हब, जाति या व्यवसाय से संबंधित रचनाकार की वाणी को जगह दी गई है। चाहे वह हिन्दू-जय देव है या मुसलमान सूफी फकीर बाबा फरीद, ब्राहमण परमानंद है या निचली जाति के कहे जाने वाले रविदास जी। नि:संदेह वाणीकारों के चयन का दायरा विशाल रखना एक बड़ा इन्कलाब था। असल में गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज वाणी ‘रब्ब की एकता’ की बात को दृढ़ करवाती है और संसार की सभी भौतिक अनेकता को ‘एक’ का पसार मानती है। फिर रब्ब की एकता के इसी सिद्धांत में से ही मानवीय एकता के विचार की ज़मीन तैयार होती है। गुरु साहिबान ने एक नई संस्कृति की धारणा को अपनी वाणी के द्वारा प्रगट किया है और गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में सारी वाणी के संकलन एवं सम्पादन के माध्यम से साझी संस्कृति के विचार को सदीवी बना दिया। आज भी हम ऐसे दौर में से गुज़र रहे हैं, जहां विभिन्न सांस्कृतिक इकाइयों तथा तहज़ीबों को एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्ण माहौल में रहने का तरीका सीखने की ज़रूरत है। एक-दूसरे की संस्कृति व इतिहास को समझना तथा एक-दूसरे की परम्पराओं, धार्मिक अकीदों, भाषा एवं अन्य सांस्कृतिक वनगियों का सम्मान करने की ज़रूरत है। गुरु ग्रंथ साहिब के चिंतन का आधारभूत स्वभाव सद्भावना वाला भी है और बहुलवादी भी, इस चिंतन के दायरे में क्षेत्रीय व नस्ली हदबंदियों की कोई एहमियत नहीं। नि:संदेह, इस चिंतन के पास ऐसा सोच-प्रबंध है जो वर्तमान विश्व स्थिति में एक दिशा-निर्देश दे सकता है। डॉ. जसपाल सिंह रचित पुस्तक गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित वाणी के विषय वस्तु से आगे गुरु चेला परम्परा का महत्व भी बताती है। यह भी कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज समुची वाणी, चाहे वह उनकी अपनी रचना थी या दूर-वर्ती भक्तों की, गुरु साहिबान अपने पास ही रखते थे और अपने से आगे वाले उस गुरु को सौंप देते थे जिनको वह खुद ही चुनते थे, अपने हाथों तख्त पर बिठाते थे। गुरु अर्जुन देव जी की देन यह है कि उन्होंने इसे कच्ची वाणी के विलय में से  नितार कर कीमती ग्रंथ का रूप दे दिया जिसे दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह ने गुरगद्दी प्रदान की। मुझे अपने मित्र जसपाल सिंह के इस बेशकीमती हीरे को निक्क-सुक के पाठकों के साथ साझा करते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही है विशेषकर गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस के समय। 

अंतिका
(भक्त त्रिलोचन जी)
अंतरु मलि निरमल नहीं कीना
बाहरि भेख उदासी ।।
हिरदै कमलु घटि ब्रहम न चीना
काहे भयिआ संनियासी।।
भरमे भूली रे जै चन्दा
नहीं नहीं चीनिआ परमानंदा।।