अपने एजेंडे को लागू करने की ओर रहा विशेष ध्यान

कोरोना से खौफज़दा हुए समाज ने कुछ शब्द तथा उनकी तासीर भुला सी दी है। पुन: दोहराने की कोशिश करते हैं-तीन तलाक, धारा 370, राम मंदिर, यू.ए.पी.ए., संविधान, नागरिकता बारे राष्ट्रीय रजिस्टर, बेरोज़गारी, शाहीन बाग, विदेश नीति, भारत की छवि, प्रांतीय राजनीति। इसी क्रम में कुछ हालिया शब्द भी शामिल करते हैं, कोरोना संकट, प्रवासी मज़दूर, आर्थिक संकट, स्वास्थ्य आधारभूत ढांचा, भूख, रोज़गार, निजीकरण। मोदी सरकार अपने कार्यकाल का पहला और कुल कार्यकाल का 6वां वर्ष समाप्त कर चुकी है। गत वर्ष अर्थात मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष को उक्त शब्दों के क्रम को आधार बना कर मापा और देखा जा सकता है। शब्दों की थोड़ी छंटनी भी करनी पड़ेगी और थोड़ी समीक्षा भी करनी होगी ताकि पता चल सके कि वह तराजू के किस हिस्से में आने की काबलियत रखते हैं हालांकि इसमें तराजु पकड़ने वाले की सलाहियत भी निशाने पर रहेगी परंतु एक कोशिश तो लाज़िमी है। 
भाजपा करेगी 750 वर्चुअल रैलियां 
देश इस समय जश्न मनाने के मूड में नहीं है। भाजपा वक्त की इस नब्ज़ को पहचानती है और इस हकीकत से बाखूबी वाकिफ है। इसलिए उसने 30 मई को डिजीटल मोड के द्वारा मोदी सरकार का एक वर्ष पूर्ण होने का जश्न मनाने का फैसला किया। इस कवायद के तहत देश भर में 750 वर्चुअल रैलियां तथा 1000 ई-कांफ्रैंसें की जाएंगी जिस के माध्यम से सरकार की सफलताओं, उपलब्धियों को लोगों तक पहुंचाया जाएगा। 10 करोड़ परिवारों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पैगाम एक चिट्ठी के द्वारा पहुंचाया जाएगा।  हकीकी रैलियों की बजाय डिजीटल मोड में की जाने वाली रैलियों की पहुंच पर प्रश्न चिन्ह इस लिए नहीं लगाया जा सकता क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा की सोशल मीडिया मुहिम उसके इस मंच पर सफलता का प्रत्यक्ष सबूत है। 
‘कोर’ एजेंडा पूरा करने पर ध्यान
दूसरे कार्यकाल के शुरू से ही सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के काफी हद तक स्पष्ट कर दिया कि सत्ता पर काबिज सरकार का मुख्य ध्यान विचारधारा के आधार पर देश में एक ‘दर्शनीय’ बदलाव लाना है। फिर चाहे यह तीन तलाक की रवायत को खत्म करना हो, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना हो या नागरिका संशोधन कानून (सी.ए.ए.) लाना हो।  बड़े फैसलों की ‘मुखालफत’ होने का संभावित उम्मीद के सिद्धांत से अच्छी तरह अवगत भाजपा ने लोकसभा में मिले फतवे को बेकार किये बिना अपने कोर एजेंडे की ओर एक-एक कर लगातार तथा जल्दबाजी में कदम उठए जिस पर बिखरे -बिखरे विरोधी पक्ष की मंज़ूरी को मोहर भी समय से पहले ही लग गई। उल्लेखनीय है कि अंक गणित के अनुसार अभी भी संसद के उच्च सदन में भाजपा का बहुमत नहीं है। अधिकतर कदम संवैधानिक संशोधन होने के कारण राज्य सभा में बहुमत लाज़िमी था। अंक गणित के अनुसार मोदी के पिछले कार्यकाल में कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना था कि सरकार को इस एजेंडे के लिए कम से कम 2020 के अंत या 2021 के शुरू तक इंतज़ार करना पड़ेगा। परंतु एकजुटता के मामले में नाकाम हुए विरोधी पक्ष ने सरकार के इस कार्य को और आसान बना दिया। 
तीन तलाक
सरकार की सबसे पहली उपलब्धि तीन तलाक बिल को पारित करवाना था। इस बिल को पहले कार्यकाल के दौरान भी पारित करवाने की कोशिश की गई थी, परंतु सफलता नहीं थी मिली। मुसलमानों ने सरकार के इस कदम को उनकी रिवायतों में हस्तक्षेप करार दिया था। 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल आबादी में मुसलमानों की जनसंख्या 14.3 प्रतिशत है। मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का मुद्दा इसलिए अहम बन जाता है क्योंकि कानून में तीन तलाक को सज़ायोग्य अपराध घोषित करने के अतिरिक्त सज़ा तथा जुर्माने की भी प्रावधान है।  तीन तलाक के खत्म होने को महिलाओं का भारी समर्थन मिला है। उल्लखनीय है कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी का कुल 6.9 प्रतिशत हिस्सा मुसलमान महिलाओं का है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। हालांकि तीन तलाक का विरोध करने वाले इसे यूनिफार्म सिविल कोड की दिशा में उठाया कदम करार दे रहे हैं। परंतु सरकार इस शुरुआती ‘सफल’ कदम के बाद संबंधित तथा संभावित अगले कदम पर चुप धारण किये बैठी है। 
धारा-370 
अगस्त 2019 में अर्थात सत्ता में आने के 2 महीने बाद ही सरकार ने अमरनाथ यात्रा रद्द करने के आदेश दे दिए और जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के प्रबंध काफी बढ़ा दिए। 5 अगस्त, 2019 को गृह मंत्री अमित शाह ने अचानक जम्मू-कश्मीर मेें धारा 370 हटाने की घोषणा की जिस का तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा इस की संविधान में ‘अस्थाई’ तौर पर व्यवस्था की गई थी और उन्होंने कहा था कि यह धारा आपने-आप ही घिसते-घिसते खत्म हो जाएगी। मज़बूत फैसले लेने वाली सरकार की छवि उभारने के यत्न के रूप में इस फैसले को लागू करने से पहले केन्द्र द्वारा किसी भी विरोधी पक्ष या राजनीतिक पार्टी से कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। जिस पर विरोधी पक्षों द्वारा धारा 370 हटाने के तरीके पर भी काफी आपत्ति की गई। केन्द्र ने जम्मू-कश्मीर को एक निज़ाम तथा एक विधान के तहत लाते हुए न सिर्फ इसका विशेष दर्जा समाप्त कर दिया बल्कि जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को दो केन्द्रीय प्रशासित प्रदेशों में भी विभाजित कर दिया। केन्द्र ने इस फैसले के ‘प्रतिक्रमों’ को कम करने के लिए कई स्थानीय नेताओं, जिनमें प्रदेश के 3 पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुला, उमर अब्दुला और महबूबा मुफ्ती भी शामिल थीं, को नज़रबंद कर दिया। महबूबा मुफ्ती अभी भी नज़रबंद हैं। प्रदेश में पर्यटकों के आने पर रोक, इंटरनैट सेवा पर रोक सहित कई ‘एहतियाती’ कदम भी उठाए गए। विरोधी पक्षों का विरोध धारा 370 हटाने से ज़्यादा ऐसे एहतियाती कदमों पर अधिक था। कांग्रेस सहित सभी विरोधी पक्षों में धारा 370 हटाने को लेकर पार्टी के भीरत ही गुट बनते नज़र आए। इस गुटबाजी के कारण मुद्दा धारा 370 हटाने के बजाय सरकार के तरीके तथा एहतियाती कदमों पर अधिक केन्द्रित हो गया। उसे भी सरकार ने अधिकतर चुप्पी धारण कर ही खत्म करने की कोशिश की। अब कार्यकाल के एक के बाद सरकार इसे चुनाव मनोरथ पत्र में पूरे किए गये वायदों में एक बताते हुए अपनी उपलब्धि करार दे रही है। 
राम मंदिर की स्थापना
लम्बे समय से अयोध्या में विवादित स्थान पर राम मंदिर बनाने का वायदा भाजपा के चुनाव मनोरथ पत्र का हिस्सा बना रहा है। 9 नवम्बर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों के संविधानिक खंडपीठ ने विवादित स्थान पर राम मंदिर के निर्माण का फैसला सुना दिया। लोकतंत्र में न्यायापालिका, केन्द्र सरकार से अलग एक स्वतंत्र व खुदमुख्तयार संस्था है जिस कारण केन्द्र सरकार इस ‘वायदे’ को पूरा करने का श्रेय खुद नहीं थी ले सकती। कानूनी पेंचों को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार इसे स्पष्ट तौर पर अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करती तो नज़र नहीं आई परंतु सर्वोच्च अदालत के आदेश के अनुसार राम मंदिर के निर्माण हेतु ट्रस्ट के गठन का ज़िक्र अवश्य केन्द्र की उपलब्धियों की सूची में शामिल हो गया है।  (शेष कल)

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