दाल में काला

बे टी जनने का भय जो उसे ससुराल की दहलीज लाँघने में साल रहा था ।  वह भय, इस लाड़-दुलार व स्वागत से जा चुका था। बेटी होने के बाद अपने मायके में वह इस ख़्याल से ही नर्वस हो जाती थी कि अम्माजी उसे तानें देंगी । पर वास्तविकतामें उसके साथ  कुछ भी नहीं घटा । वह बहुत हल्का महसूस कर रही थी । प्रफुल्ल चित्त हो कर सामान्य रूप से वह पुन:घर-गृहस्थी में जुट गई । अगले दिन रेशु बेबी की मालिश कर रही थी, तो ऊर्जा बेबी की फ्राक्स निकाल लाई । दोनो सलाहकरके उस तैयार कर रही थीं । माथे पर काला टीका भी लगाया । अम्माजी ग़ौर से देखती रहीं । ऊर्जा ने उनकी ओर ध्यानही नहीं दिया । उसने एक बार भी उन्हें बेबी उठाने को नहीं दी, इससे वे चिढ़ी बैठी रहीं । बेबी को कमरे में सुलाने के बादवो हाथ में कुछ सामान लाई व अम्माजी को देती हुई बोली, ‘मम्मी ने बेबी के पैदा होने की यह एक साड़ी आपकी और एक भाभी की भेजी है । (शान बघारते हुए) मुझे नाक में हीरे की कील और मंगल-सूत्र में हीरे का पैंडेंट बनवा दिया है । सुनकर भी अनसुनी करते हुए अम्माजी ने उपेक्षा से नज़रें फिरा लीं । इस पर ऊर्जा ने भाभी की ओर देखा कि उन्हें तो कमतरी का एहसास हो रहा होगा । लेकिन रेशु उसकी शान को हवा न देती हुईए रसोई की ओर जा चुकी थी । जैसे महाभारत के कृष्ण भगवान टेढ़ी मुस्कुराहट से जता देते थे कि वे सब कुछ जानते हैं, ऐसे ही कुछ भाव थे रेशु की मुस्कान के भी। कल साँझ ढले की ही बात तो थी । रेशु के बैडरूम की जो खिड़की पोर्टिको की ओर है,वह वहाँ बैठी बच्चों को होमवर्क करवा रही थी तो पति और देवर यानि कि दोनों भाई अंधेरे में कुछ गरमा-गरम बहस में लगे हुए थे । उसने बच्चों को दादी के पास भेज दिया और लाईट बंद करके कान लगाकर ध्यान से सुनने लगी । आखिर वो पेमेंट है कहाँ? कोई छोटी रकम तो नहीं है न! कब से पूछ रहा हूँ, कुछ जवाब तो होगा तेरे पास । हम लोग ऊर्जा की सहेली के पास बनारस घूमने गए थे, बस और क्या बताऊं ‘इतना कहकर शायद देवर गेट खोलकर घर से बाहर चले गए थे । पदचाप की आवाज बता रही थी । रेशु चुपचाप कुछ देर वहीं बैठी रह गई ।  उसे लगा ‘दाल में कुछ काला है ’। पर उस ‘काले’ को वह दाल में कहाँ ढूंढ़े ? उसे यह समझना था । बाहर आकर देखा, पतिदेव विचारों में गुम चुपचाप बैठक में बैठे हैं । रात बिस्तर पर भी वे करवट लेकर सोने का उपक्त्रम कर रहे थे । रेशु ने भी बात करके छेड़ना उचित नहीं समझा । वो भी विचारों के ताने-बाने बुनने लगी थी । दोनों भाईयों का मजबूत रिश्ता आज उसे झीना हो गया लग रहा था ।  उसके फटने का डर रेशु को सालने लग गया।  लेकिन, अपने पति पर उसे विश्वास था कि वे समय आने पर ‘तुरपाई’ कर सकते हैं । उनमें अदम धैर्य, ठहराव और दूरदर्शिता थी । तभी तो वे सब सुनकर भी चुप थे । अम्माजी कहतीं थीं कि ये घर का थम्ब (पिलर) है  जिस पर उनकी गृहस्थी टिकी थी । कभी काम अच्छा होता, तो जहाज का सफर मुमकिन होता ।  जो कभी मंदा होता तो कार के पेट्रोल के पैसे भी नहीं होते थे । स्कूटर साथ देता था उन हालात में । रेशु सब समझती थी और बहुत समझदारी से चलती थी।  लेकिन ऊर्जा! खैर, सुबह वे बिन
खाए-पिए ही दुकान पर चले गए । रेशु भी विचारों में गुम काम करती सोचने लगी कि जिनकी तीन बेटियाँ हों काम भी ठीक-ठीक ही हो,क्या वे बेटी के बेटी जनने पर हीरे के इतने बहुमूल्य तोहफे दे सकते हैं ? ऊर्जा मायके की जो शान बघार रही थी, वह उसे अस्वभाविक लगी थी । रेशु को दाल यहीं पर काली लगने लगी । फिर भी वो किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रही थी । इस घटना के तार आपस में जोड़ने पर ही वह ऊर्जा की शेखियाँ सुनकर ओठों पर टेढी मुस्कान बिखेर वहाँ से चल दी थी । ऊर्जा को भी जब किसी ने भाव नहीं दिया, तो वह खिसियानी बिल्ली सी अपने बैड.रूम में चली गई थी । एक दिन भाभी के कान में नए डिज़ाईन की बालियाँ देखकर ऊर्जा ने उत्सुकतावश पूछा, ‘भाभी ! बहुत प्यारा डिज़ाईन है । इस बार मायके से मिलीं हैं क्या’ रेशु ने नाँर्मल तरीके से कहा, आपके भैया ने बनवा दी हैं । मायके से तो खास वाँयल की साड़ी मिली है, जो मैने परसों पहनी थी । कमाल करती हो भाभी आप भी! क्यूँ बताया घर में यह ? आप कह देतीं कि मेरे बाबूजी ने बनवा दी हैं बालियाँ ।  साड़ी में भी अपने पास से और पैसे डालकर बढिया सी ले आतीं । आपकी शान बढ़ जातीऔर किसी को कुछ पता भी नहीं चलता।  हमने तो खुद खरीदकर अम्माजी को कह दिया है कि मायके से यह सब मिला है।  ‘झट ऊर्जा ने कहा । यह सुनते ही रेशु को ऊर्जा की चुस्ती और चालाकी में पति की कमाई का निरादर प्रतीत हुआ।लेकिन,  उसे समझ आ गया था कि ‘दाल में काला’ यहीं पर है । (समाप्त)