ताज़ा हवा का झोंका

कुछ दिन पूर्व जालन्धर से हिमाचल के धौलाधार पहाड़ देखे तो जैसे विश्वास नहीं हुआ। 200 किलोमीटर दूर से, ये पहाड़कैसे नज़र आ रहे थे? फिर दिन के समय नीला आसमान, रात को तारे, वृक्षों के पत्तों का कुछ भिन्न सा हरा रंग एवं सुबह-सवेरे पक्षियों के चहचहाने की आवाज़... वाह!! प्रकृति का यह रूप मैंने जालन्धर में पहली बार देखा था, पर क्यों? कोविड-19 महामारी फैलने के कारण किये गये लॉकडाऊन के दृष्टिगत फैक्टरियों एवं वाहनों के न चलने से हवा में प्रदूषणका स्तर पिछले 20 वर्षों में सबसे नीचे आ गया था। पंजाब प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के अनुसार पंजाब का औसत एयर क्वालिटी इंडैक्स (वायु गुणवत्ता मापदंड) 22 मार्च से 23 अप्रैल तक 47.82 था। इसके मुकाबले पिछले साल इसी काल के दौरान यह 113.11 था। देश की राजधानी दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडैक्स में 49 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। परन्तु अफसोस, यह सब अस्थायी है। लॉकडाऊन खुलने पर यह सब कुछ पुन: उसी भांति हो जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रदूषित हवा से दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष लगभग 70 लाख लोग मरते हैं। यह हमारे लिए चिन्ता की बात है कि भारत के 21 शहर, विश्व के 30 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। भारत, विश्व में वायुमंडल में विषाक्त गैसों को छोड़ने में तीसरे स्थान पर आता है तथा विश्व का पांचवां सर्वाधिक प्रदूषित देश माना जाता है। इसका मुख्य कारण फैक्टरियों एवं वाहनों के अतिरिक्त, वृक्षों का अंधाधुंध कटान तथा कोयले और तेल से चालित बिजली उत्पादन करने वाले थर्मल एवं पावर प्लांट हैं। गर्मियों में पंखे, कूलर, ए.सी. तथा ठंडे पानी के लिए फ्रिज, सर्दियों में हीटर एवं गीजर, सब के लिए बिजली अथवा कहा जा सकता है कि ऊर्जा की आवश्यकता है। रोटी पकाने के लिए ऊर्जा, गाड़ियां चलाने के लिए ऊर्जा, यहां तक कि मोबाइल चार्ज करने के लिए ऊर्जा की ज़रूरत है। ऊर्जा दो रूपों में प्राप्त होती है।पहली न-नव्यीकरण ऊर्जा जिसके उत्पादन के  साधन हैं कोयला अथवा तेल। कोयले से चलाये जाने वाले पॉवर प्लांटों से हवा में ग्रीन हाऊस जैसे कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड , ओज़ोन के अतिरिक्त हानिकारक मरकरी (पारा) एवं सिक्के के कण धुएं के माध्यम से हवा में मिल जाते हैं। मनुष्य के सांस लेने के लिए हवा में इनका एक स्तर से अधिक होना कई प्रकार की बीमारियां पैदा करता है। नव्यीकरण योग्य ऊर्जा के उत्पादन के साधन समाप्त नहीं हो सकते जैसे कि हवा, सूर्य, पानी, समुद्र की लहरें, कूड़ा-कर्कट आदि। इस ऊर्जा को हरित ऊर्जा अथवा साफ ऊर्जा भी कहा जाता है क्योंकि यह वातावरण में नव्यीकरण ऊर्जा के मुकाबले विषाक्त गैसें एवं प्रदूषित ज़हरीले कण नाम -मात्र ही छोड़ती है। हालांकि भारत में 1980 के दशक में मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रीन्यूएबल एनर्जी (रूहृक्त्रश्व)  की स्थापना की गई थी परन्तु अभी भी हम इस क्षेत्र में काफी पीछे हैं। भगवान की कृपा से भारत में धूप और हवा की कोई कमी नहीं है तथा सवा अरब से अधिक भारतीयों की कृपा से कूड़े की भी कमी नहीं। हवा से उत्पादित ऊर्जा भारत की कुल उत्पादक बिजली का केवल 10 प्रतिशत ही है। महाराष्ट्र, राजस्थान एवं तमिलनाडु में काफी बड़े विंड फार्म बनाये गये हैं जिनमें विंड मिल (पवन चक्की) के माध्यम से बिजली उत्पादित की जाती है। परन्तु फिर भी इस प्राकृतिक साधन, हवा का इस्तेमाल, बिजली उत्पादन में बहुत ही कम किया जा रहा है। सौर ऊर्जा का अभिप्राय है सूरज की रौशनी को बिजली उत्पादन में परिवर्तित करना। भारत में विशेष योजनाओं के तहत जैसे जवाहर लाल नेहरू नैशनल सोलर मिशन, हालैंड से इंटरनैशनल सोलर गठबंधन, यूनाइटिड नेशन्ज़ एनवायरमैंट कार्यक्रम के तहत इंडिया सोलर लोअन कार्यक्रम के साथ सूर्य की शक्ति से बिजली उत्पादन के इस्तेमाल ने प्रगति की है। केरल राज्य में भी कोचीन का हवाई अड्डा विश्व का पहला हवाई अड्डा है जो 100 प्रतिशत सौर ऊर्जा से चलता है। असम की राजधानी गुवाहाटी का रेलवे स्टेशन भी 100 प्रतिशत सौर ऊर्जा से चलाया जाता है। परन्तु बिजली उत्पादन के अन्य साधन जैसे बॉयोमास आदि भारत की कृषि अर्थ-व्यवस्था में बहुतयात में हैं। इंडियन रीन्यूएबल डिवैल्पमैंट एजेंसी (आई.आर.ई.डी.ए.) के अनुसार मौजूदा समय में बिजली उत्पादन में 260 मिलियन टन कोयला बचाया जा सकता है। यदि इसके स्थान पर बॉयोमास का उपयोग किया जाए तो इससे प्रत्येक वर्ष लगभग 250 बिलियन रुपये की बचत हो सकती है। पराली एवं नाड़ के अतिरिक्त कपास और दालों के टांडे, सूखे नारियल के छिलके, तूड़ी, पटसन, कॉफी और चाय के पौधों के टांडे इसमें इस्तेमाल किये जा सकते हैं। लगभग 55 मिलियन टन कूड़ा एवं 38 बिलियन लीटर का सीवरेज भारत के छोटे-बड़े शहरों में बरामद होता है। इसके अतिरिक्त कारखानों के अवशेष का इस्तेमाल भी बिजली उत्पादन में किया जा सकता है जिससे एक ओर इसे समेटने की समस्या खत्म हो जाएगी तथा दूसरी ओर प्रदूषण रहित ऊर्जा भी पैदा की जा सकेगी। ऊर्जा उत्पादन के नव्यीकरण योग्य ऊर्जा साधन वातावरण को साफ एवं स्वच्छ रखने में सहायक होते हैं जिससे जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरनाक पक्ष टाले जा सकते हैं तथा इससे रोज़गार के कई साधनों में भी वृद्धि हो सकती है। यदि आज हमने इस ओर ठोस कदम न उठाये तो वातावरण परिवर्तन की चुनौतियां हमारे लिए केवल एक संकट ही नहीं बल्कि एक न टाला जाने वाला प्रकोप भी बन जाएंगी।

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