डॉ. बिंदल : सियासी मैनेजमेंट पड़ा पद पर भारी

हिमाचल की राजनीति में डॉ. राजीव बिंदल का चेहरा सियासी मैनेजमेंट के माहिर चेहरे के रूप में देखा जाता है। प्रदेश की सियासत के जातीय समीकरण ठाकुर, ब्राह्मण, ओबीसी से हटकर बनिया बिरादरी से आने के बावजूद बिंदल प्रदेश की राजनीति के बड़े चेहरा बने। गत चुनाव में भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल न कर विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आसीन कर दिया गया। लेकिन बिंदल के मंत्रिमंडल में शामिल होने की चर्चाएं लगातार गर्म रहीं। जब सरकार में मंत्रिमंडल विस्तार और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव का समय एक साथ आया तो प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए सत्ता और संगठन की ओर से कई नामों पर मंथन चलता रहा। अंतत: अचानक बिंदल ने  तुरुप का पत्ता चला, और प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए अपने नाम पर मुहर लगवा आए, जिससे भाजपा में परदे के पीछे अंतर्कलह शुरू हो गई, हालांकि जनता के सामने कुछ नहीं आया। भाजपा सरकार के गठन के समय मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने राजीव बिंदल को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया था, जबकि वह वरिष्ठता में काफी ऊंचे पायदान पर थे। बिंदल के अपनी सियासी रणनीति के तहत अध्यक्ष पद पर विराजमान होने के बाद भाजपा में एक नया संचार आया और सत्ता के साथ-साथ संगठन में भी जनता के बीच पकड़ बनी। संगठन का कार्य तेजी से शुरू हो गया और बिंदल अपने राजनीतिक और मीडिया मैनेजमेंट के तहत सुर्खियों में रहने लगे परंतु बिंदल को प्रदेशाध्यक्ष पद संभाले चंद दिन ही हुए थे कि कोरोना संकट आ गया। इस बीच बिंदल ने भाजपा कार्यकारिणी के साथ पार्टी के सभी मोर्चों के पदाधिकारियों की घोषणा भी की जिसका कुछ मंत्रियों और विधायकों ने विरोध भी किया। बिंदल ने यह सोचा भी नहीं होगी कि पार्टी को मजबूत करने की उनकी सक्रियता उन पर ही भारी पड़ जाएगी। इस बीच स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी की एक ऑडियो सामने आई और भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ। यह भ्रष्टाचार तो सरकारी खरीददारी में सामने आया, लेकिन इसकी आंच संगठन के एक बड़े नेता पर आ गई। मीडिया में सूत्रों के हवाले से खबर आने लगी कि इसमें कोई पार्टी का बड़ा नेता शामिल है। बड़े नेता के रूप में अप्रत्यक्ष तौर पर बिंदल को ही माना गया। इस कारण बिंदल ने प्रदेशाध्यक्ष पद से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया, जिसे राष्ट्रीय अध्यक्ष ने तत्काल स्वीकार भी कर लिया। लेकिन बिंदल के इस्तीफे के बाद भी यह बात थमती नज़र नहीं आ रही है। पार्टी के भीतर चल रही अंतर्कलह अब सामने आई है जिसे रोकना भाजपा हाईकमान और नए बनने वाले अध्यक्ष के लिए बड़ी चुनौती होगा।
एक बड़े अधिकारी पर भी गिर सकती है गाज
हमेशा भ्रष्टाचार को लेकर चर्चाओं में रहा स्वास्थ्य विभाग के पीपीई घोटाले में स्वास्थ्य निदेशक की गिरफ्तारी के बाद सचिवालय के उच्च अधिकारी भी जांच के घेरे में आ सकते हैं। घोटाले के कारण जैसे भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी गई है, उससे तय है कि सरकार ने इस मामले को ज्यादा गंभीरता के साथ लिया है। यह मामला भाजपा हाईकमान और पीएमओ तक पहुंच गया है। स्वास्थ्य विभाग में होने वाली खरीददारी में सिर्फ  निदेशक ही शामिल नहीं होते बल्कि उच्च अधिकारियों की सहमति से ही काम होता है और ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई घोटाला हो तो निदेशक की गिरफ्तारी हो जाए और उच्च अधिकारियों से जवाब तलबी न हो। अब यह तय माना जा रहा है कि सचिवालय में बैठे अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती है।
कांग्रेस बना रही आंदोलन की रणनीति
स्वास्थ्य घोटाला उजागर होने पर कांग्रेस भी सरकार पर हमले कर रही है। कांग्रेसी नेताओं ने सीधे तौर पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से ही इस्तीफा मांग लिया है। विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने घोटाले की न्यायिक जांच की मांग की है। भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर कांग्रेसी नेता सरकार को घेरने की रणनीति बना रहे हैं, जिसके लिए कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग 3 जून को बुलाई गई है। विपक्ष ने साफ  किया है कि भाजपा सरकार भ्रष्टाचार में डूबी है और कोरोना संकट काल में स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों की खरीद-फरोख्त में भ्रष्टाचार हुआ है। विपक्ष ने सरकार से मांग की है कि अभी तक स्वास्थ्य विभाग में हुई खरीददारी को लेकर सरकार श्वेत पत्र जारी करे। कांग्रेस के आक्रामक रुख से तय है कि वह भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर हमले करती रहेगी।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष पद हेतु नेताओं के बीच दौड़ शुरू
भाजपा में नए प्रदेशाध्यक्ष के लिए नेताओं के बीच फिर दौड़ तेज़ हो गई है। प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए भाजपा के कई नेता दावेदार माने जा सकते हैं, जिनमें मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार त्रिलोक जम्वाल, सुंदरनगर से विधायक राकेश जम्वाल, नयनादेवी के पूर्व विधायक रणधीर शर्मा, पूर्व राज्यसभा सांसद कृपाल परमार सहित कई नाम शामिल हैं। महिला नेत्री और राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी का नाम भी चर्चा में है जिन्हें मजबूत दावेदार के रुप में देखा जा सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए मुख्यमंत्री की पसंद को ही प्राथमिकता मिलनी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा हाईकमान किसी सांसद को ही प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाह रहा है, जिससे मंडी के सांसद रामस्वरूप शर्मा का नाम भी चर्चा में चल रहा है। अब देखना है कि किसके सिर पर प्रदेशाध्यक्ष का ताज सजता है।