कोरोना संकट के दौरान खामोश क्यों है देश की संसद ?

कोरोना महामारी के इस वैश्विक संकटकाल में दुनिया के तमाम देशों में संसद अपने-अपने तरीके से काम कर रही हैं। लॉकडाउन प्रोटोकॉल और फिजीकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कई देशों में सांसदों की सीमित मौजूदगी वाले संक्षिप्त सत्रों का या वीडियो कान्फ्रैंसिंग वाली तकनीक का सहारा लेकर ‘वर्चुअल पार्लियामेंट्री सेशन’ का आयोजन किया गया है, तो कुछ देशों में सिर्फ संसदीय समितियों की बैठकें ही हो रही हैं। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में सरकार की जवाबदेही को तय करने वाली संसद अभी तक निष्क्रिय बनी हुई है। पिछले दो महीने से देश में जो कुछ हो रहा है, उसका फैसला सिर्फ और सिर्फ सरकार और नौकरशाह कर रहे हैं। जो कोई भी अव्यवस्था, संवेदनहीनता, अमानवीयता से त्रस्त लोगों की आवाज़ उठाने की कोशिश कर रहा है, उसे यह नसीहत देकर चुप कराने की कोशिश की जा रही है कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
 ममता से दूरी!
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले सप्ताह चक्रवाती तूफान अम्फान से हुए नुकसान का जायज़ा लेने के लिए पहले पश्चिम बंगाल और फिर ओडिशा गए। कोलकाता हवाई अड्डे पर ममता बनर्जी ने उनका स्वागत किया और उनके साथ विमान से हवाई सर्वेक्षण भी किया। बाद में दोनों ने एक साथ बयान भी जारी किया। इस पूरी प्रक्रिया में दोनों के बीच का तनाव वाला रिश्ता साफ  दिखा। हवाई अड्डे पर जब मोदी विमान की सीढ़ियों से उतरे तो ममता बनर्जी हाथ में लिया हुआ एक कागज़ पढने लगीं। पता नहीं, प्रोटोकॉल के तहत इसे प्रधानमंत्री का अपमान माना जाएगा या नहीं पर स्वागत से लेकर विमान में सर्वेक्षण के दौरान और साझा बयान के समय की एक भी तस्वीर नहीं है कि जब दोनों एक-दूसरे को देख रहे हों या आंखें मिला कर बात कर रहे हों। इसके उलट ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ प्रधानमंत्री की आत्मीयता दिखी। स्वागत में भी सोशल डिस्टेंसिंग के बावजूद गर्मजोशी थी और विमान से सर्वेक्षण करते समय दोनों सहज रूप से साथ बैठे थे। वैसे भी नवीन पटनायक की पार्टी संसद में भी भाजपा का साथ देती रहती है जबकि ममता बनर्जी का भाजपा और केंद्र सरकार से छत्तीस के आंकड़े वाला नाता है। 
‘टीम नड्डा’ के बनने का इंतजार
भाजपा का अध्यक्ष बने जेपी नड्डा को चार महीने से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन अभी तक उनकी टीम गठित नहीं हुई है। उन्हें अभी भी अपने ‘बिग बॉस’ यानी अमित शाह की टीम से काम चलाना पड़ रहा है। वैसे अब कहा जा रहा है कि जून के दूसरे सप्ताह तक नड्डा की टीम आ जाएगी। जब केंद्र में पार्टी प्रभावशाली रूप से सत्तारूढ़ हो तो राष्ट्रीय टीम में शामिल होने की होड़ मचना स्वाभाविक है। मगर नड्डा को भी कई समीकरणों का ध्यान रखना पड रहा है। इसी साल के अंत में बिहार विधानसभा के चुनाव है। उसके बाद 2021 में बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम आदि राज्यों में चुनाव होने हैं। कहा जा रहा है कि इन राज्यों का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व नड्डा की टीम में दिखाई देगा। दिलचस्पी का विषय यह भी है कि संसदीय बोर्ड में सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और अनंत कुमार की जगह कौन लेगा, क्योंकि इन तीनों नेताओं के निधन के बाद से अभी तक उनकी जगह किसी और को शामिल नहीं किया गया है। वेंकैया नायडू की जगह भी खाली चल रही है।

शिवराज की घोषणा
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए पिछली सरकार के मंत्रियों के फैसलों की जांच कराने का ऐलान किया है। वैसे तो इस तरह की जांच पर किसी को चौंकना नहीं चाहिए, क्योंकि राजनीति में यह एक पुरानी रवायत है। जब भी नई सरकार का गठन होता है तो वह पिछली सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिए जांच बिठा ही देती है लेकिन मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह के इस फैसले पर राजनीतिक गलियारों में कानाफूसी का दौर शुरू हो गया है। वजह यह है कि कमलनाथ सरकार को गिराकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के जो 22 विधायक भाजपा में शामिल हुए, उनमें तत्कालीन कमलनाथ सरकार के छ: मंत्री भी शामिल हैं। जाहिर सी बात है कि उनके फैसले भी जांच के दायरे में आएंगे। अब इसी को लेकर सवाल उठ रहा है कि सिंधिया के साथ आए पूर्व विधायकों ने भाजपा में अपने लिए जो ‘प्रेशर गेम’ शुरू किया है, कहीं उसकी हवा निकालने के लिए तो शिवराज ने यह फैसला नहीं लिया है? 
अब आईपीएल का रास्ता साफ !
केंद्र सरकार ने लॉकडाउन पांच यानी एक जून से लेकर 30 जून तक के लिए जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं, उससे देश में होने वाले क्रिकेट के सबसे बड़े तमाशे इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का रास्ता साफ  हो गया है। सरकार ने स्टेडियम और स्पोर्ट्स काम्पलेक्स खोलने के साथ ही यह इजाज़त भी दे दी है कि बिना दर्शक के स्टेडियम में मैच कराया जा सकता है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पदाधिकारी भी काफी समय से कहते रहे हैं कि बिना दर्शक के स्टेडियम में मैच कराए जा सकते हैं। आखिर सारी कमाई तो मैच के टेलीविजन प्रसारण और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग से होती है। इसलिए लग रहा है कि सरकार की इस अनुमति के बाद आईपीएल मुकाबले का आयोजन हो सकता है। 
चलते-चलते
ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में भर्ती होकर अपनी विधानसभा की सदस्यता गंवाने वाले कई नेता इन दिनों भाजपा में अपने नेता यानी सिंधिया को पर्याप्त महत्व न मिलने से बेहद दुखी हैं। ये लोग निजी बातचीत में अब कहने लगे हैं कि भाजपा में आकर ‘महाराज’ भरी जवानी मेें ‘आडवाणी’ हो गए। इससे तो कांगेस में ही रहते तो ठीक थे। वहां और कुछ नहीं तो कम से कम ‘सिंधिया’ तो बने रहते।