दर्शनीय हैं दिलवाड़ा के जैन मंदिर 

पश्चिमी राजस्थान का कश्मीर कहा जाने वाला माउंट आबू अरावली पर्वत शृंखला से चारों ओर हरे-भरे वनों से आच्छादित है। माउंट आबू पर्वतमाला ने अपने आगोश में कई दर्शनीय स्थलों को भी समेटा हुआ है, जिससे यहां पूरे वर्ष भर पर्यटकों की भरमार रहती है। माउंट आबू सिरोही ज़िले में है, जहां न केवल पर्यटक स्थल हैं, बल्कि विश्व प्रसिद्ध ब्रह्मकुमारी प्रजापति जैसा आध्यात्मिक स्थल भी है।माउंट आबू में यूं तो पौराणिक मंदिरों व ऐतिहासिक स्थलों की भरमार है, वहीं दूसरी ओर विश्व प्रसिद्ध दिलवाड़ा के पांच जैन मंदिरों का समूह भी है। पाषाण कला से युक्त इन जैन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं व तेरहवीं शताब्दी के मध्य हुआ था। सफेद मार्बल से बने ये मंदिर छैनी-हथौड़े की उत्कृष्ट कला के बेजोड़ नमूने हैं। जैन धर्म के तीर्थंकारों को समर्पित पांच मंदिरों के समूहों में से दो विशाल मंदिर हैं व तीन उनके अनुपूरक हैं। सभी मंदिरों का शिल्प सौन्दर्य एक से बढ़कर एक है। इन मंदिरों में विमल वासाही मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण गुजरात के चालुवस राजा भीमदेव के मंत्री और सेनापति विमल शाह ने 1031 ई. में पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होने पर बनवाया था। दिलवाड़ा के जैन मंदिर समूह का दूसरा मंदिर वास्तुपाल व तेजपाल नामक दो भाइयों ने मिलकर निर्मित करवाया था, जो लुनावासाही के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर 1230 ई. में बनकर तैयार हुआ था। इस मंदिर में जैनियों के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ जी की मूर्ति है। इस विशाल देवालय में देवरानी-जेठानी मंदिर भी दर्शनीय है, जिसमें भगवान आदिनाथ और शांतिनाथ की प्रतिमाएं स्थापित हैं।दिलवाड़ा जैन मंदिर परिसर में ही पीतलहर, खरवरसाही और भगवान महावीर स्वामी का भी मंदिर है। महावीर स्वामी का मंदिर सबसे छोटा है, जिसका निर्माण 1582 ई. में करवाया गया था। पीतलहर मंदिर को गुजरात के भीमशाह ने संवत् 1374 ई. से1433 के मध्य बनवाया था। बाद में इस मंदिर का जीर्णोंद्वार सुंदर व गादा नामक व्यक्तियों ने करवाया।  जैन मंदिरों के अलावा यहां पर एक चौमुखा मंदिर भी है, जिसे खरातावसाही मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजित है। तीन मंज़िला इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी के आसपास माना जाता है। भूरे संगमरमर पत्थर से बना यह मंदिर अपने शिखर सहित दिलवाड़े के सभी मंदिरों में सबसे ऊंचा है।दिलवाड़ा के जैन मंदिर समूह के पांच श्वेताम्बर मंदिरों के साथ ही यहां भगवान कुंथुनाथ जी का दिगम्बर जैन मंदिर भी है। कुल मिलाकर दिलवाड़ा के जैन मंदिर अपनी भव्यता व नैसर्गिक सुन्दरता व संगमरमर पर उकेरी गई कला, भारतीय शिल्प कला के अनूठे व अनुपम उपहार हैं। माउंट आबू के जैन मंदिर, नक्की झील, विश्वामित्र की गुफा व आबू पर्वत का सर्वोच्च शिखर देखने वाले पर्यटकों की पूरे वर्ष भरमार रहती है। माउंट आबू जाने के लिए आबू रोड होकर रेल व परिवहन मार्ग द्वारा आसानी से जाया जा सकता है। देश के अलावा विदेशी पर्यटक भी यहां खूब आते हैं। वे तो कई दिन रुक कर यहां की बारीक कला व सौन्दर्य को निहारते हैं।

—चेतन चौहान
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