प्रधानमंत्री की भावना

कोरोना वायरस के दृष्टिगत लम्बी तालाबंदी को क्रमिक रूप से खत्म किये जाने की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों के साथ एक बार फिर ‘मन की बात’ की है। पिछले 6 वर्ष से वह निरंतर ‘मन की बात’ के माध्यम से लोगों के साथ भिन्न-भिन्न विषयों पर अपनी भावनाएं साझी करते आए हैं। पिछले समय के दौरान उन्होंने तीसरी बार अपने मन की बात साझी की है। इसमें उन्होंने देश में घोषित क्रमिक तालाबंदी को धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लाने का पक्ष-पोषण किया है। यह आम धारणा बनी रही है कि तालाबंदी को अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता। यह भी कि इस महामारी के संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। यह भी कि इससे उत्पन्न हुई आर्थिक जड़ता एवं कामकाज बंद होने के  कारण हर वर्ग के लोग संकट एवं तंगी का सामना कर रहे हैं। प्रवासी श्रमिकों एवं कामगरों के पलायन ने एक अत्यधिक अनापेक्षित एवं पीड़ादायक स्थिति को जन्म दिया है। देश में कोविड-19 का प्रभाव बना हुआ है। अभी भी बहुत से लोग इसका शिकार हो रहे हैं। चाहे अब तक देश भर में मौतों का आंकड़ा 5 हज़ार से बढ़ चुका है परंतु कई अन्य देशों की भांति इस बीमारी ने यहां भीषण हमला नहीं किया। इसके मुकाबले में यह बात संतेषजनक है कि इससे स्वस्थ होने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि होने लगी है। कुछ एक भागों को छोड़कर शेष देश इसके तीव्र प्रभाव से मुक्त होने की ओर बढ़ रहा है। नरेन्द्र मोदी ने इस संबंध में नागरिकों को पूर्णत: सावधान करते हुए कहा है कि अर्थव्यवस्था को खोला जा रहा है परंतु इसके साथ ही सावधानी बरतना ही आवश्यक होगा। उन्होंने देशवासियों को पेश हुई कठिनाइयों का उल्लेख करते हुए यह भी कहा कि गरीबों, मजदूरों एवं कामगरों को अधिक कष्टों एवं पीड़ाओं में से गुजरना पड़ा है। उनका दर्द ऐसा है जिसे शब्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता। इस महामारी के दौरान भिन्न-भिन्न वगों के लोगों ने इस का मुकाबला करने के लिए कड़ा परिश्रम किया है। किसी भी बात की परवाह न करते हुए जो मैदान में डटे रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी भी प्रशंसा की है। आगामी समय में देश को आर्थिक धरातल पर मजबूत करने की बात करते हुए उन्होंने यह भी माना कि अगर हमारे गांव आत्मनिर्भर होते तो यह समस्या इतनी गंभीर न होती। उन्होंने इस बात को भी माना कि अन्य सभी प्रकार की सावधानियों को बावजूद इस महामारी का इलाज कोई समुचित दवा बनने में ही है तथा यह भी कि देश में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनेक यत्न हो रहे हैं। तालाबंदी के दौरान जिस प्रकार देश के अत्याधिक प्रदूषित वातावरण में जो सुधार हुआ है, जिस प्रकार नदियों के पानी में निखार आया है, उससे आगामी समय में भी बहुत कुछ सीखा जाना जरूरी है । इसके लिए विशेष नीतियां बनाई जानी चाहिएं तथा देशवासियों में भी इस संबंध में कड़ा अनुशासन पैदा करना जरूरी है।आगामी समय में संबंधित सरकारों को इस दिशा में दृढ़ता के साथ कदम उठाने आवश्यक होंगे। इस संबंध में उन्होंने ज़िक्र अवश्य किया है और कहा है कि अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाना चाहिए तथा पानी की एक-एक बूंद को संभालने का यत्न किया जाना चाहिए। इस अहम मामले के प्रति सरकार को अधिक पुख्ता योजनाबंदी करने की आवश्यकता होगी क्योंकि कुछ अन्य अहम मामलों के साथ-साथ प्रदूषित होता वातावरण भी देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। इस महामारी ने नि:संदेह भविष्य में हमें कुछ नये रास्तों पर चलने के लिए प्रेरित किया है। ऐसे रास्तों का पथ एक अच्छा वरदान भी सिद्ध हो सकता है।

                         -बरजिन्दर सिंह हमदर्द