जातीय टकराव की चपेट में अमरीका

विश्व का सबसे शक्तिशाली देश अमरीका इस समय गहरे संकट में से गुज़र रहा है। पहले कोरोना महामारी के चलते हुये इस बड़े देश में एक लाख से भी अधिक मौतें हो चुकी हैं। अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है। लाखों लोग बेरोज़गार हो गये हैं। हर तरफ हैरानी और परेशानी का आलम है। इस बीमारी को रोकने के लिए वहां बहुत यत्न किये जा रहे हैं। इसको खत्म करने के लिए दवाई अथवा टीका की जांच करने के यत्न भी किये जा रहे हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस महामारी के लिए जहां चीन को दोषी ठहराया, वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी निशाने पर लिया। पिछले दिनों राष्ट्रपति ट्रम्प ने इस संस्था को उसके देश की ओर से दी जाने वाली भारी राशि रोकने की भी घोषणा कर दी थी। अभी तक भी अमरीका इस भयावह संकट से जूझ रहा है।
इसके अतिरिक्त अमरीका के सिर पर एक और मुसीबत आ पड़ी है। पिछले दिनों देश के मिनीसोटा प्रांत के शहर मिनीएपोलिस में एक अफ्रीकी-अमरीकी जॉर्ज फ्लोइड के एक पुलिस अफसर के हाथों मारे जाने ने समूचे देश को हिला कर रख दिया। डैरेक चाओवीन नामक इस पुलिस अधिकारी ने जिस प्रकार फ्लोइड के साथ व्यवहार किया, जिस प्रकार उसकी गर्दन को घुटने से दबाये रखा, जिससे उसकी मृत्यु हो गई, इससे यह घटना जंगल की आग की भांति पूरे देश में फैल गई। चाहे डैरेक को नौकरी से हटा कर उस पर हत्या का मुकद्दमा दर्ज कर लिया गया है, परन्तु अमरीका में इस घटना के विरुद्ध आन्दोलन बड़े स्तर पर लूटपाट एवं हिंसा का रूप धारण कर गया है। यह हिंसा देश के लगभग डेढ़ दर्जन प्रांतों एवं तीन दर्जन के लगभग शहरों में फैल गई है। हिंसक आन्दोलनकारियों को काबू करना पुलिस, नैशनल गाड्ज़र् और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के लिए अत्याधिक कठिन हो गया है। बात यहां तक पहुंच गई है कि इन प्रदर्शनकारियों ने वाशिंगटन डीसी में राष्ट्रपति के आवास व्हाइट हाऊस को घेर कर वहां हिंसक प्रदर्शन किये, जिसके दृष्टिगत राष्ट्रपति ट्रम्प को सुरक्षित स्थान पर जाना पड़ा। अब तक पुलिस ने स्थान-स्थान पर सख्ती बरती है। अश्रु गैस के गोले छोड़े गये हैं, प्लास्टिक की गोलियां चलाई गई हैं। शस्त्र लेकर चलने पर पाबंदी लगा दी गई है। कई स्थानों पर  कर्फ्यू लगा दिया गया है। अनेक लोग मारे जा चुके हैं। यह मामला अब जातिवाद का बन चुका है। जहां तक जातिवाद का संबंध है, अमरीका में सैकड़ों वर्षों से जातिवाद का मुद्दा उग्र होता आ रहा है। इसने समाज के टुकड़े कर रखे हैं। इस देश में अफ्रीकी-अमरीकी 15 प्रतिशत के लगभग हैं, परन्तु समय-समय पर यहां यूरोपीय देशों के लोगों के साथ-साथ एशिया एवं अफ्रीका के देशों से भी निरन्तर लोग यहां आकर बसते रहे हैं। इस आधार पर ही यहां रंग-भेद का मामला प्राय: बना रहता है। चाहे समय-समय पर भिन्न-भिन्न प्रशासनों ने इसे कम करने का बड़ा यत्न किया है। पिछले राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इस मामले के संबंध में अपने निरन्तर यत्नों के माध्यम से बड़ा प्रभाव डाला, परन्तु अभी तक भी किसी न किसी रूप में यह मामला उभरता रहा है। अभी तक अफ्रीकी-अमरीकी मूल के लोगों को इस बात का एहसास है कि उनके साथ चमड़ी के रंगभेद के आधार पर कहीं न कहीं भेदभाव किया जाता है। आनुपातिक तौर पर उनके पास न तो अधिक नौकरियां हैं, न ही उनका जीवन अधिकतर दूसरे अमरीकियों के समान है। 
ऐसे अतीव नाज़ुक समय में देश का प्रमुख ही गम्भीर मामले को सुलझाने में सहायक हो सकता है, परन्तु इस संबंध में डोनाल्ड ट्रम्प ने बड़ी गम्भीरता एवं परिपक्वता वाली सोच नहीं अपनाई। इसकी बजाय उन्होंने एक प्रकार से भड़के हुये प्रदर्शनकारियों को चेतावनियां ही दीं तथा उन्हें परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने के लिए कहा। चाहे शुरू में घटित हुई यह घटना अफ्रीकी-अमरीकी लोगों के साथ-साथ उनके अन्य व्यापक स्तर वाले सहयोगियों के पक्ष में रही थी, परन्तु जैसे-जैसे बड़े स्तर पर ये प्रदर्शन हिंसक होते रहे, जैसे-जैसे लोगों की सम्पत्तियों का नुकसान किया गया, बड़े एवं छोटे स्टोरों को लूटा गया, स्थान-स्थान पर हिंसा का नंगा नाच किया गया, उसने बड़ी संख्या में लोगों को इन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ला खड़ा किया है। इससे अमरीकी समाज के और भी विभक्त हो जाने की सम्भावनाएं दिखाई दे रही हैं। नि:सन्देह इन घटनाओं ने जहां देश को एक प्रकार से तहस-नहस कर दिया है, वहीं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का प्रभाव भी बेहद धुंधला हुआ है। इससे देश की चुनौतियां और भी बढ़ गई हैं जिससे इसके भविष्य पर गहरे संकट के बादल मंडराते प्रतीत होते हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द