चीन-नेपाल  कूटनीतिक मोर्चे पर भारी पड़ेगा भारत

चीन के बारे में मशहूर है कि वह कहता कुछ है, सोचता कुछ है, दिखता कुछ है और करता कुछ है। 26 मई 2020 को चीन अपने लिए मशहूर इस टिप्पणी को तब सही साबित करता नज़र आया, जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सेंट्रल मिलिट्री कमीशन की बैठक में चीनी सेना को युद्ध की तैयारियां शुरू करने के निर्देश दिये। एक ऐसे समय में जब कोरोना वायरस की उत्पत्ति और उसके खतरे को दुनियाभर से छिपाने का आरोप झेल रहे चीन पर अमरीका सहित कई दूसरे ताकतवर देश मुकद्दमा चलाने और कोरोना संक्रमण से हुए नुकसान का मुआवजा वसूलने की बात कर रहे हैं, उस समय चीन के राष्ट्रपति का यह बयान वैसे तो चौंकाने वाला था, लेकिन चीन के चरित्र और मनोविज्ञान को देखते हुए साफ  लग रहा था कि वह कोरोना मुद्दे से दुनिया का ध्यान बंटाने और अपनी झेंप मिटाने के लिए भारत को धमकी देने की कोशिश कर रहा है। लेकिन हाल के सालों में भारत की कूटनीति ही नहीं बदली बल्कि भारत का कूटनीतिक अंदाज़ भी बदल गया है। अब भारत, वो भारत नहीं रहा जो अपनी तेजतर्रार प्रतिक्रिया के लिए प्रतिद्वंदी की हरकतों की तब तक उपेक्षा करे, जब तक वे हरकतें किसी बड़े एक्शन में न बदल जाएं। इसका मुजाहिरा चीनी राष्ट्रपति की इस अप्रत्यक्ष धमकी के करीब 17 दिन पहले 9 मई 2020 को ही हो गया था, जब चीन के सैनिकों ने 5 दिन के अंतराल में दूसरी बार भारतीय सैनिकों से उत्तरी सिक्किम में 16000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद नाथू ला सेक्टर में झड़प की कोशिश की थी। चीन ने तब भारत को दबाव में लाने के लिए न केवल भारतीय सीमा पर बड़ी संख्या में सैनिकों को जमा करना शुरू किया बल्कि चीनी सेना ने उसी दिन लद्दाख में लाइन ऑफ  एक्चुअल कंट्रोल के नजदीक अपने लड़ाकू हेलीकॉफ्टर भेज दिये।हालांकि चीन के हेलीकॉफ्टरों ने सीमा पार नहीं की, लेकिन भारत को चीन की यह हरकत बहुत बुरी लगी, साथ ही उकसाने वाली भी। इसलिए भारत ने लेह एयर बेस से अपने सुखोई-30 एमकेआई फाइटर प्लेन का बेड़ा और बाकी लड़ाकू विमान भी रवाना कर दिये। सिर्फ  चीनी मीडिया के लिए ही नहीं, पूरे वैश्विक मीडिया के लिए भारत का यह बदला हुआ रवैया चौंकाने वाला लगा क्योंकि अब के पहले कभी भारत ने किसी कूटनीतिक मोर्चे में इस तरह की और इतनी ताकतवर प्रतिक्रिया नहीं की थी जिस तरीके से भारत ने चीन की हरकत के जवाब में सीमा पर अपने लड़ाकू विमान भेजकर की। भारत ने सिर्फ  यह ताकतवर विजुअल रिएक्शन ही नहीं किया बल्कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तुरंत इस संबंध में एक उच्चस्तरीय मीटिंग भी की।प्रधानमंत्री के साथ इस उच्चस्तरीय सुरक्षा बैठक में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षित सलाहकार अजीत डोभाल, सीडीएस विपिन रावत तथा तीनों सेनाओं के सेना प्रमुख शामिल थे।  प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला से भी इस संबंध में सलाह मशविरा किया। इससे पहले लद्दाख में तनाव शुरू होते ही रक्षा मंत्री की सीडीएस तथा तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ करीब 1 घंटे मीटिंग हो चुकी थी। साल 2017 में भारत और चीन की सेनाएं, जिस तरह डोकलाम विवाद के बाद एक दूसरे के आमने-सामने आयी थीं, यह तकरीबन वैसा ही मामला था। लेकिन इस समय भारत की प्रतिक्रिया सिर्फ  रिएक्शन करने वाली भर नहीं थी बल्कि भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में अतिरिक्त फोर्स भी डाली थी। यह भारत की इसी बदली हुई रणनीति का नतीजा था कि करीब 24 घंटे के भीतर ही चीन नरम पड़ गया।चीन अपने राष्ट्रपति की आक्रामक टिप्पणी के बाद कि सेनाएं बड़े युद्ध की तैयारी करें, दो बयानों के साथ सामने आया। चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि चीन-भारत सीमा पर स्थिति नियंत्रण में है और हर विवाद बातचीत से सुलझा लिया जायेगा। इसके लिए दोनो देशों के पास एक व्यवस्थित तंत्र है। दूसरा बयान चीन के भारत स्थित राजदूत की तरफ से आया जिसमें कहा गया कि चीन और भारत एक दूसरे को चुनौती की तरह नहीं बल्कि मौके के रूप में देखते हैं। ठीक इसी दौरान नेपाल की तरफ  से भी सीमा विवाद को लेकर नरमी का रुख सामने आया। गौरतलब है कि पिछले दिनों नेपाल ने अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, जिसमें लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और काला पानी को नेपाल का हिस्सा बताया गया। नेपाल की कैबिनेट ने इसे अपना जायज दावा करार देते हुए कहा कि महाकाली नदी का स्रोत दरअसल लिम्पियाधुरा ही है, जिस पर नेपाल की दावेदारी है। भारत ने इस पर जब कड़ी प्रतिक्रिया जतायी, और जब देश चीन को भी मुंहतोड़ जवाब देते हुए दिखा तो नेपाल ने बिना ज्यादा हो-हल्ला मचाए अपने कदम पीछे खींच लिये। गौरतलब है कि पिछले दिनों भारत ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए जो 60 किलोमीटर की एक नयी सड़क बनायी है, उसको लेकर नेपाल ने भारत पर यह आरोप लगाया कि यह सड़क उसकी ज़मीन पर बनायी गई है। नेपाल सिर्फ  यहीं तक सीमित नहीं रहा बल्कि वह इस विवाद को लेकर चीन के पास पहुंच गया। हालांकि चीन ने अपने कूटनीतिक फायदे के लिए फिलहाल नेपाल को कोई भाव नहीं दिया। उसने साफ -साफ  शब्दों में कहा कि यह भारत और नेपाल के बीच का द्विपक्षीय मामला है। कूटनीति में यह बहुत पुराना और परखा हुआ सिद्धांत है कि उसी की बातें सुनी जाती हैं, जो ताकतवर होता है और ताकतवर दिखता भी है।  आमतौर पर भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रियाएं हमेशा निष्क्रिय किस्म की होती रही हैं। हम कभी आक्रामक और पहल करने वाली रणनीति नहीं अपनाता। इसलिए भारत को उसके पड़ोसी देश उतना वजन देने से हमेशा कतराते रहे हैं, जितने वजन की वह हैसियत रखता है। लेकिन अब भारत का रवैया बदल गया है वह पहल भी करता है और किसी की आक्रामक प्रतिक्रिया का उतनी ही जोरदार प्रतिक्रिया से जवाब देना भी जानता है। इसलिए अब हिंदुस्तान को हल्के में लेना इतना आसान नहीं होगा। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर