लॉकडाऊन में ई.एम.आई. पर ब्याज वसूलने को लेकर रिज़र्व बैंक को कड़ी फटकार

नई दिल्ली, 4 जून (वार्ता): उच्चतम न्यायालय ने मासिक किस्त पर रोक की अवधि के दौरान का ब्याज माफ करने वाली याचिका की सुनवाई 12 जून तक के लिए स्थगित कर दी, लेकिन समय से पहले मीडिया के हाथों तक हलफनामा पहुंच जाने को लेकर रिज़र्व बैंक को कड़ी फटकार भी लगाई। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम.आर. शाह की खंडपीठ ने रिज़र्व बैंक के 27 मार्च और 22 मई के सर्कुलर को चुनौती देने वाली गजेंद्र शर्मा एवं अन्य की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान रिज़र्व बैंक को हलफनामा मीडिया में लीक होने को लेकर आड़े हाथों लिया। न्यायमूर्ति भूषण ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘रिज़र्व बैंक न्यायालय के समक्ष आने से पहले मीडिया में अपना हलफनामा दायर करता है।’ सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने लॉकडाऊन की अवधि के दौरान की मासिक किस्त पर ब्याज वसूलने को रिज़र्व बैंक द्वारा उचित ठहराये जाने को लेकर चिंता जताई। न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि किस्त वसूली पर रोक के आदेश देने के बावजूद ब्याज वसूलना हानिकारक है।केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने खंडपीठ से कहा कि वह अगली सुनवाई तक इस बिंदु पर वित्त मंत्रालय और रिज़र्व बैंक से दिशा-निर्देश लेकर आएंगे। इससे पहले सुनवाई की शुरुआत में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव दत्त ने दलील दी कि अब जिन्न बाहर आ चुका है। रिज़र्व बैंक अब कह रहा है कि बैंकों का लाभ ज्यादा महत्वपूर्ण है। दत्ता ने व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा कि क्या केवल बैंकों को ही कमाना चाहिए, बाकी किसी को कुछ हो जाए? उन्होंने एयर इंडिया की बीच वाली सीट खाली रखने के मामले में हुई सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत द्वारा की गई उस टिप्पणी का भी हवाला दिया जिसमें उसने कहा था कि जनता का स्वास्थ्य विमानन कंपनियों के लाभ से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस पर न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि उन्हें मालूम है कि आर्थिक पहलू जनता के स्वास्थ्य से बड़ा नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने इसके बाद मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 12 जून मुकर्रर की और उस दिन तक याचिकाकर्ताओं को अपना जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा।