विवादों में रहेगा पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड का फैसला

पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की ओर से पांचवीं, आठवीं और दसवीं श्रेणी की परीक्षाओं के परिणाम घोषित कर दिये जाने से इन श्रेणियों के विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों के बीच मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई। इन परीक्षा परिणामों के अनुसार परीक्षाओं में बैठने वाले सभी विद्यार्थियों को ग्रेडिंग के आधार पर पास घोषित किया गया है। इस बात की अपेक्षा भी थी, और ऐसा होने की प्रतीक्षा भी की जा रही थी। स्कूल शिक्षा बोर्ड के अन्तर्गत पांचवीं और आठवीं की परीक्षाओं का आयोजन विगत शिक्षा सत्र में पहली बार किया गया था। इससे पूर्व आठवीं तक की परीक्षाएं तो होती थीं, परन्तु नाम मात्र, और आठवीं तक के सभी विद्यार्थियों को हर हालात में पास कर देने का नियम लागू था। इससे नि:सन्देह एक पूरी पीढ़ी के विद्यार्थियों की योग्यता एवं क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता था। इस मामले को लेकर सरकार और पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की कार्य-प्रणाली की बड़ी आलोचना भी होती रही थी। अन्तत: लम्बे विचार-विमर्श के बाद इस नियम को बदल कर दसवीं की भांति पांचवीं और आठवीं की परीक्षाएं भी बोर्ड के अन्तर्गत कराये जाने का फैसला लिया गया, परन्तु पहली ही बार यह फैसला कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गया। मार्च मास में शुरू हुई इन श्रेणियों की परीक्षाएं अभी चार कदम भी नहीं चली थीं कि 24 मार्च से कर्फ्यू वाले नियमों के तहत लॉक-डाउन हो गया। बहुत स्वाभाविक है कि लॉक-डाउन के दृष्टिगत सभी प्रकार की गतिविधियों के ठप्प हो जाने से शिक्षा संस्थान भी बन्द हो गये और शेष बची परीक्षाएं भी अनिश्चित के संकट में घिर गईर्ं। बोर्ड की परीक्षाओं के स्थगन के साथ ही, यह संकट पूरे देश में अन्य सभी प्रकार की परीक्षाओं पर भी पैदा हुआ। इस दौरान लॉक-डाउन का सिलसिला 24 मार्च के पहले चरण के बाद, 3 अप्रैल से चौदह-चौदह दिन के लिए चार बार बढ़ चुका है और अब 31 मई के बाद से इसके पुन: एक बार बढ़ने की प्रबल सम्भावना है। बेशक केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने धीरे-धीरे व्यवसायिक एवं औद्योगिक गतिविधियों के साथ-साथ ज़िन्दगी की रफ्तार को गति देने का फैसला किया है, परन्तु स्कूल-कालेजों में पढ़ाई के सिलसिले को लेकर अभी भी असमंजस कायम है। स्कूलों में चूंकि नये शिक्षा सत्र की पढ़ाई शुरू हो चुकी है, अत: पिछले सत्र की परीक्षाओं का परिणाम देर-सवेर घोषित करना लाज़िमी हो गया था। इसके लिए यह भी ज़रूरी था कि शेष बची परीक्षाओं के लिए कोई नई तिथि घोषित की जाती। इस हेतु दो-चार बार बोर्ड अधिकारियों की बैठकें भी हुईं, परन्तु कोरोना महामारी के प्रकोप में कमी न आने के कारण लाखों बच्चों से शारीरिक दूरी के नियमों का पालन कराना भी सम्भव नहीं हो रहा था। लिहाज़ा प्री-बोर्ड की परीक्षाओं के आधार पर पुराना डाटा हासिल कर ग्रेडिंग के नियम के तहत इन परीक्षाओं में बैठे सभी विद्यार्थियों को पास कर देने का फैसला कर लिया गया।विद्यार्थियों की सुरक्षा के लिए और किसी बड़े ़खतरे की आशंका को दर-किनार करने हेतु प्रशासनिक धरातल पर यह फैसला सही हो सकता है, परन्तु विद्यार्थियों की बौद्धिकता एवं कुशलता की परख और उनमें प्रतियोगिता की सम्भावना को आंकने के दृष्टिगत यह फैसला त्रुटिसंगत प्रतीत होता है। विगत कुछ वर्षों से विद्यार्थियों को फेल न करने की नीति के कारण वैसे ही पंजाब में शिक्षा का स्तर रसातल की ओर बढ़ा है। इस नीति के कारण बच्चों में पढ़ाई का उत्साह ही जाता रहा। अब इस फैसले से उन हज़ारों विद्यार्थियों को भारी निराशा एवं हताशा का सामना करना पड़ेगा जिन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं का लक्ष्य लेकर दिन-रात मेहनत की थी।बेशक पंजाब सरकार और उसके शिक्षा बोर्ड ने कलम की नोक से लिखे गये एक छोटे-से फैसले से अपनी चमड़ी तो बचा ली, परन्तु इससे लाखों बच्चों के दिल-दिमाग पर पड़ने वाली खरोंचें उन्हें वर्षों तक मानसिक त्रास पहुंचाती रहेंगी। हम समझते हैं कि थोड़ी समझदारी और सूझ-बूझ से स्थितियों की इस विपरीत करवाट से बचा जा सकता था। अन्य कई प्रदेशों ने भी येन-केन-प्रकारेण परीक्षाओं का आयोजन किया है। पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड भी चाहे प्रतीकात्मक रूप में ही सही, परीक्षाओं का आयोजन कर सकता था। इससे शिक्षा बोर्ड का कुछ बिगड़ता भी नहीं, और विद्यार्थी वर्ग की बात बन जानी थी। इससे उन बच्चों को भी संतोष की अनुभूति होती जिन्होंने प्रतियोगी-आधार से परीक्षाओं की तैयारी की थी। हम समझते हैं कि अब जो होना था, वह तो हुआ ही। बोर्ड के अधिकारी शिक्षा के स्तर को सुधारने और भविष्य के लिए नीतियों एवं कार्यक्रमों के निर्धारण हेतु यदि अभी भी कमर कसना शुरू करते हैं, तो नि:सन्देह इस निर्णय की भरसक क्षति-पूर्ति की जा सकती है।  इससे पंजाब में शिक्षा के धरातल पर भारी हित-साधन हो सकता है।