भारत-आस्ट्रेलिया समझौता

भारत और आस्ट्रेलिया के मध्य हुए रक्षा और 6 अन्य समझौतों से दोनों देशों के संबंध एक नये और अहम पड़ाव में दाखिल हो गए हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दोनों देशों को अपनी सुरक्षा को मज़बूत करने और अपनी आर्थिक खुशहाली में वृद्धि करने का अवसर मिलेगा। यह बात भी विशेष तौर पर ध्यान देने वाली है कि दोनों देशों के मध्य रक्षा और अन्य अहम क्षेत्रों में यह समझौते उस समय हुए हैं, जब भारत और चीन के संबंध लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर काफी तनावपूर्ण बने हुए हैं। वैसे भी दक्षिण चीन सागर और प्रशांत महासागर में चीन की बढ़ रही इच्छाओं के कारण चीन के ज्यादातर पड़ोसी देशों के अलावा भारत और आस्ट्रेलिया जैसे बड़े देश भी चिंतित नज़र आ रहे हैं। लगता है कि भारत और आस्ट्रेलिया की इसी चिंता से ये समझौते निकले हैं। भारत और आस्ट्रेलिया के मध्य ताज़ा समझौते प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री सकौट मौरीसन के मध्य ऑनलाइन शिखर सम्मेलन के बाद हुए हैं। इनमें से सबसे अहम समझौता रक्षा के क्षेत्र संबंधी  ही है। इस समझौते के अनुसार दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सैनिक अड्डों का अपने हवाई और समुद्री जहाज़ों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं और इन अड्डों पर दोनों देश अपनी सैनिक ज़रूरतों के अनुसार मुरम्मत और सप्लाई की सुविधाएं भी हासिल कर सकेंगे। यहां वर्णनीय है कि पहले भारत का इस तरह का समझौता अमरीका, फ्रांस और सिंगापुर आदि देशों के साथ हो चुका है। नि:सन्देह इस समझौते से भारत और आस्ट्रेलिया की इस क्षेत्र में सुरक्षा के पक्ष से स्थिति मज़बूत हुई है। इसके अलावा जो आस्ट्रेलिया के साथ अन्य 6 समझौते हुए हैं, वह साइबर, माइनिंग, खनिज पदार्थों, सैनिक टैक्नालॉजी, जल स्रोतों के रख-रखाव और व्यवसायिक शिक्षा से संबंधित हैं। दोनों देशों ने इस क्षेत्र में आतंकवाद का सामना करने के लिए भी आपस में सहयोग करने पर सहमति प्रकट की है।नि:सन्देह प्रशांत महासागर में आस्ट्रेलिया एक उभर रही आर्थिक शक्ति है। इसके अलावा और भी अनेक पहलुओं से भारत के हित उसके साथ जुड़े हुए हैं। भारतीय मूल के अधिकतर लोग आस्ट्रेलिया में अपनी रोटी-रोजी कमा रहे हैं और इसके अलावा भारत से प्रत्येक वर्ष बहुत-से विद्यार्थी भी शिक्षा हासिल करने और रोज़गार के अवसर हासिल करने के लिए वहां जाते हैं। इससे दोनों देशों के रिश्तों में काफी निकटता आई है। वैसे भी दोनों देशों में व्यापारिक लेन-देन लगातार बढ़ रहा है। इन सभी पहलुओं को मुख्य रखते हुए हम कह सकते हैं कि उपरोक्त समझौतों से दोनों देशों के लोगों को लाभ होगा और इसके साथ ही दोनों देशों के संबंधों में और मज़बूती आएगी। परन्तु यह बात अभी देखनी होगी कि चीन इस समझौते को कैसे लेता है, क्योंकि उसकी पहुंच विस्तारवादी है और वह इस पूरे क्षेत्र में अपना बोलबाला चाहता है। इसलिए वह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से दूसरे देशों पर दबाव भी डालता है। उसकी इस नीति के कारण दूसरे देशों के पास और कोई विकल्प नहीं रह जाता कि वह भी मिल कर अपनी सुरक्षा मज़बूत करें।