पर्यावरण सुरक्षा के लिए ज़रूरी जनसंख्या नियंत्रण

सन् 1974 से प्रत्येक वर्ष पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है और इसके लिए बहुत सोच समझ कर एक थीम चुना जाता है जिस पर पूरे साल काम किया जाता है। इस साल का थीम है कि हमारी जो बायो डायवर्सिटी यानी जैव विविधता है, उसकी रक्षा की जाए ताकि प्रकृति के साथ मेल मिलाप रखते हुए और संतुलन बिठाकर मानव की सुरक्षा निश्चित की जा सके।यह जैव विविधता क्या है, और कुछ नहीं कुदरत ने जो हमारी सुविधा और जीवन यापन करने के लिए प्राकृतिक खजानों का भंडार विभिन्नि रूपों में दिया है, बस वही है। यह अनमोल वस्तुएं हमारे चारों ओर जल, जंगल, ज़मीन, पर्वत के रूप में बिखरी पड़ी हैं। अब यह मनुष्य की सोच है कि वह इनका उपयोग कैसे करता है। 
महामारी का प्रसाद
जहां एक ओर कोविड की विश्व व्यापी बीमारी ने प्रत्येक व्यक्ति का जीवन जोखिम में डाल दिया है, उसे घर में ही रहने को मजबूर कर दिया है और वह भी दो चार दिन नहीं, महीनों तक के लिए। क्या दफ्तर, क्या उद्योग और कल कारखाने, सब कुछ बंद कर दिए, वहां दूसरी ओर इसका एक फायदा यह भी हुआ है कि जिन कुदरती संसाधनों के साथ हम खिलवाड़ करते रहे उन्हें फिर से अपने मौलिक स्वरूप में लौटने का अवसर भी मिला है।साफ  आसमान, सांस लेने को शुद्ध वायु, नदियों में शीतल, स्वच्छ जल की धारा, पर्वतों पर हरियाली और जंगलों में पेड़ पौधों और वनस्पतियों का पोषण इन दिनों बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप या दोहन के हो रहा है। इसी के साथ यह चेतावनी भी दी कि यदि ज़रूरत से ज्यादा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन फिर से करना शुरू कर दिया तो उसके परिणाम भयंकर होंगे। कोलकाता में डॉल्फिन तीस साल बाद दिखाई दी, हरिद्वार में गंगा का जल निर्मल हो गया, कांगड़ा से हिमालय पर्वत अपनी धौलाधार श्रृंखला से साफ  नज़र आने लगा, समुद्र में जीव स्पष्टता से दिखाई देने लगे।  
दुरुपयोग करना मजबूरी 
यह कहना न केवल बहुत आसान है बल्कि एक तरह से प्रवचन या उपदेश देने जैसा है कि मनुष्य जल हो या जंगल, उनका संरक्षण करे, नदियों में औद्योगिक रसायन प्रवाहित कर उन्हें प्रदूषित और ज़हरीला न बनाएं, वन विनाश न करें और वनस्पतियों का संरक्षण करते हुए जैव विविधता को बनाए रखें। अब क्योंकि यह संभव नहीं है, इसलिए चाहे जितने कानून बन जाएं, कितनी भी पाबंदियां लगा दी जाएं, प्राकृतिक संसाधनों का गलत इस्तेमाल करना जारी रहता है जो खुलकर न सही, चोरी छिपे होता है और इसमें किसी के लिए भी कुछ करना असंभव है।
आबादी की ज़रूरतें और समस्या
अगर हमें अपनी आबादी का भरण पोषण करना है तो जल, जंगल, जमीन और पर्वतों का शोषण किए बिना यह मुमकिन नहीं है क्योंकि जिस गति से हमारी जनसंख्या बढ़ रही है उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि इन प्राकृतिक संसाधनों का जितना भी संभव हो, उतना ही नहीं बल्कि उससे अधिक ही हम उनका दोहन करें। अब इससे हमारा इको सिस्टम बिगड़ता है, संतुलन गड़बड़ा जाता है तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हमारी आबादी इतनी अधिक है कि उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह ज़रूरी है। आज संसार में जितने भी विकसित देश हैं, उन्होंने यह समझ लिया था कि अगर आबादी की रोकथाम नहीं की गई तो विकास की ऊंचाइयां हासिल करना असम्भव है। सबसे बड़ी आबादी वाले चीन ने भी इस बात को समझ लिया था और उसने भी जनसंख्या को नियंत्रित करने के उपाय कर लिए थे। भारत के लिए अपनी विकास यात्रा को किसी मुकाम पर पहुंचने के लिए ज़रूरी है कि आबादी को बेलगाम बढ़ने से रोकने के तरीके अपनाए जाएं और इसके लिए कानून का सहारा भी लिया जाए तो कोई बुराई नहीं है।
पर्यावरण सुरक्षा
इस बार पर्यावरण वर्ष मनाने के लिए जर्मनी के सहयोग से कोलम्बिया क्षेत्र को चुना गया है। यह स्थान अपने वनों, वनसंपदा और वन्य जीवों के लिए प्रसिद्ध है। आधुनिक साधनों जैसे कि मानव रहित यान, ड्रोन और आधुनिक संयंत्रों के इस्तेमाल से इस इलाके की जैव विविधता का अध्ययन किया जाएगा ताकि उससे मानव को किस प्रकार लाभान्वित किया जा सके। हमारे देश में प्राकृतिक रूप से वे सब संसाधन उपलब्ध हैं जो हमें विश्व का सिरमौर बना सकते हैं। हमारी जड़ी-बूटियां, वनस्पतियां, औषधीय गुणों से युक्त पेड़-पौधे और हिमालय पर्वत की विभिन्न श्रृंखलाओं में समाई वनसम्पदा दुनिया में और किसी स्थान पर नहीं है। यह विडम्बना ही नहीं दुर्भाग्य भी है कि हम अपने अनमोल खज़ाने का या तो अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं या फिर उसकी स्मगलिंग करा रहे हैं। यदि इसे रोका जा सके तो इस पर्यावरण वर्ष में देश पर यह उपकार होगा और देशवासियों का जीवन समृद्ध होगा। इसी के साथ वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के लिए उचित उपाय किए जा सकें तो यह सोने पर सुहागा होगा। (भारत)