दुनिया और देश की आर्थिक मंदी

समय-समय पर विश्व पर आर्थिक संकट आते रहते हैं। 1930 में विश्व में सबसे बड़ा आर्थिक संकट आया था जिसे ( Great Depression of 1930)  के बढ़े आर्थिक संकट के रूप में जाना जाता है परन्तु जो संकट यह ‘कोविड कीटाणु’ लेकर आया है, उस की मिसाल इतिहास में कहीं नहीं है, क्योंकि यह संकट विश्व के हर देश पर मंडरा रहा है। हर देश अपने-आप को इस आर्थिक स्थिति में से निकालने हेतु यत्नशीन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने यह बताया है कि इस संकट का असर अभी पूरी तरह से नहीं हुआ और आने वाले समय में इसका प्रभाव और बढ़ेगा। यहीं बस नहीं, इस संस्था ने यह भी कहा है कि यह संकट दूसरी बार फिर से बढ़ेगा और प्रत्येक सरकार को इस संकट का मुकाबला करने हेतु तैयार रहना होगा। इस बड़ी महामारी का प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। प्रत्येक कामकाज बंद है, प्रत्येक साधन बंद है, जैसे कि कारें, स्कूटर, ट्रक, होटल, रेस्तरां, पर्यटन, हवाई उड़ानें, समुद्री आवाजाही, छोटे-छोटे कारोबार से लेकर बड़े-बड़े कारखाने सब बंद हैं। किसी भी उद्योग का कोई काम नहीं चल रहा, सब ठप्प हैं। इसका प्रभाव क्या होगा, वह ऐसे है: बैंक क्या हैं? बैंक वह संस्थान है जो आम लोगों का पैसा अपने पास रख कर उनको 4 से 6 फीसदी ब्याज देता है और फिर वह ये पैसे आगे ब्याज पर छोटे से बड़े काम के लिए 10 से 12 फीसदी ब्याज पर देता है। इस ब्याज में से वह अपने खर्चे तो निकालता ही है साथ ही आम आदमी को ब्याज भी देता है। इस माहमारी से पहले भी बैंकों की आर्थिक हालत कोई अच्छी नहीं  मानी जा रही थी , क्योंकि बैंकों का बहुत-सा पैसा जो आगे ब्याज पर दिया गया था, उसे वसूलने के लिए मुश्किलें आ रही थीं। कुछ बैंक तो दीवालिया भी हुए और लोगों का पैसा उनके पास फंस कर रह गया। इस सब से बड़ी महामारी के कारण प्रत्येक संस्थान का काम बंद है। उदाहरण के तौर पर जैसे कारों की एजैंसी ही ले ली जाए तो यदि एक कार की कीमत 5,00,000 हो और उसके पास 100 कारें बिकने के लिए खड़ी हों तो उस शोरूम में 5 करोड़ रुपए का माल पड़ा है जो 3 महीनों से बिक नहीं रहा। वह न तो अपने कर्मचारियों को वेतन दे सकता है और न ही शोरूम का किराया। यदि एक शहर में ऐसी 50 एजैंसियां हों तो 250 करोड़ रुपया इन शोरूमों में फंस कर रह गया है। देश में हज़ारों इमारतें बन रही हैं, जिनमें बैंकों का करोड़ों रुपया लगा हुआ है। सभी इमारतों का काम बंद है। मज़दूर घरों को चले गए हैं। न तो इमारतें बिक रही हैं और न ही बन रही हैं। इस तरह प्रत्येक कारोबार में जो पैसा बैंकों का लगा हुआ है, न तो उसके मूल का और न ही ब्याज का आने वाले समय में भुगतान किया जाएगा। इस तरह आने वाले समय में बैंकों की आर्थिक स्थिति और नाज़ुक होने वाली है। इस तरह के हालात ही औद्योगिक संस्थाओं के हैं। कच्चा माल उनको तीन महीनों से नहीं मिल रहा। जो कर्मचारी व मज़दूर इनमें काम करते थे, अधिकतर छोड़ कर अपने घरों को चले गए हैं। प्रत्येक मज़दूर को यही जल्दी है कि वह किसी भी तरह अपने घर पहुंच जाए। आगे जो होगा, देखा जाएगा। उद्योगपतियों पर बहुत बड़ा संकट है। उनको चिंता है कि आने वाले समय में प्रतिदिन का खर्च कहां से आएगा, जिससे  उनका गुज़ारा हो सके। प्रत्येक उद्योगपति के पास ‘वर्किंग कैपिटल’ अर्थात गुज़ारे के लिए पैसे की बहुत कमी है। वह भी बैंकों से लिया कज़र्ा वापस करने में असमर्थ हैं। अधिकतर प्रांतों की आर्थिक हालत चिन्ताजनक बताई जाती है। देश के 18 प्रांतों की आर्थिक हालत कुछ ऐसी है कि उनकी जी.डी.पी. (ग्रास डोमैस्टिक प्रोडैक्ट्स) में लगभग 10 प्रतिशत का नुकसान होने का अनुमान है। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र की जी.एस.डी.पी. लगभग 15.4 प्रतिशत कम हो गई और इससे नुकसान लगभग 4,72,433 करोड़ का है। इसी तरह पंजाब की जी.एस.डी.पी. (ग्रास स्टेट डोमैस्टिक प्रोडैक्ट्स) 2020-21 में लगभग 13.6 प्रतिशत कम हो जाने की सम्भावना है जो 83,035 करोड़ रुपए है। पंजाब सरकार पर पहले ही 2,60,000 करोड़ का ऋण है और अन्य 12,000 करोड़ रुपये का ऋण लेने की तैयारियां हैं, जिससे सरकार पर 2,72,000 करोड़ रुपए का ऋण हो जाएगा। राज्यों की सरकारें इस में कसूरवार नहीं क्योंकि जिस तरह ‘कोविड कीटाणू’ के कारण हमारे संस्थान और कारोबार बंद पड़े हैं, उससे प्रत्येक राज्य सरकार की आय में कमी हो गई। यही इस बड़ी महामारी का घातक वार है जो राज्यों पर ही नहीं, प्रत्येक नागरिक पर आने वाले समय में पड़ने वाला है। प्रत्येक नागरिक को सचेत रहने की ज़रूरत है कि वह आने वाले 3 या 4 माह के लिए घर के राशन और खर्चे का प्रबंध आज से ही करके रखे। यह ‘कोविड कीटाणू’ की महामारी आने वाले समय में बहुत कष्टदायक और कठिन समय लाने वाली है।

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