देश के लाखों कारखाने बंद होने के कगार पर

लुधियाना, 5 जून  ( पुनीत बावा ): कोरोना महामारी ने भारत के उद्योगपतियों व कारोबारियों की कमर तोड़ कर रख दी है। आर्थिक मंदहाली का शिकार हुए देश के लाखों कारखाने बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। जिसकी शुरुआत देश के पहले साइकिल कारखाने एटलस साइकिल से हो गई है। कोरोना महामारी से बचाव कर रहे उद्योगपति कोरोना महामारी का शिकार होने से तो चाहे बच गए हैं, परंतु उनको अब आर्थिक तंगी कोरोना से ज्यादा तंग व परेशान कर रही है। तीन महीने से बाज़ारों का बंद रहना अब अपना रंग दिखाने लगा है। कारों, ट्रकों, टैम्पो व मोटरसाइकिलों के कलपुर्जे (आटो पार्ट्स) बनाने वाले कारखानेदार  पिछले महीनों में विक्री न होने के कारण नये आर्डरों की उम्मीद छोड़ चुके हैं, जिस कारण बाज़ार में तैयार उत्पादन की मांग नाममात्र बताई जा रही है। देश की नामी ऑटोमोबाइल कम्पनियों के इतिहास में पहली बार हुआ है कि किसी महीने एक रुपए की विक्री भी न हुई हो। अमरीका में आरंभ हुए साम्प्रदायिक दंगों, आगजनी के कारण व्यापारिक क्षेत्रों में चिंता और बढ़ गया है। देश में अप्रैल महीने से आयात का ग्राफ नीचे चला गया है। पंजाब की प्रसिद्ध साइकिल उद्योग के पास सिर्फ पिछले तीन महीनों से बकाया पड़े काम के कारण ही आर्डर है, जबकि नये आर्डर बहुत कम मिल रहे हैं। इस समय देश के विभिन्न शहरों में चल रहे कारखानों में 20 से 30 प्रतिशत उत्पादन ही हो रहा है। साइकिल उद्योग की प्रसिद्ध कम्पनी एटलस साइकिल बंद हो जाने के कारण इस उद्योग का आधार हिलने लगा है। लुधियाना के बहुत सारे उद्योगपति इस कम्पनी के साथ काम करते हैं, जिस कारण 100 करोड़ रुपए की राशि अभी रूक गई है। केन्द्र सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज मिलने के इंतजार में बैठे उद्योगपति कह रहे हैं कि बैंक उनके कज़र्ें की राशि 20 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए सहमत तो हो रहे हैं, परंतु ब्याज का बोझ तो पहले ही उनको उठने नहीं दे रहा।देश में इस समय वह कारखाने चल रहे हैं, जिनके पास पिछले समय में कमाई गई लाभ राशि बैंकों में रखी हुई है या उनके आर्डर है। जबकि देश की 80 फीसदी  छोटे कारखानेदारों के 22 मार्च से हुई तालाबंदी ने आर्थिक और अन्य साधन तबाह कर दिए हैं।