क्रिस्टल-सा चमकदार 

यूरोप के इस छोटे से देश आस्ट्रिया  के विषय में वहां जाने से पूर्व केवल यही जानकारी थी कि आज क्रि स्टल के लिए पूरी दुनिया में जाना-जाने वाले आस्ट्रिया के राजकुमार सेराजेवो की 28 जून, 1914 की हत्या प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण बनी थी। आस्ट्रिया का भूभाग बहुत बड़ा नहीं है लेकिन उसकी कम आबादी के कारण यहां न केवल जीवन की गुणवत्ता का स्तर बहुत ऊंचा है बल्कि प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उत्पादन में भी वह काफी आगे हैं। एक सर्वे के अनुसार आस्ट्रिया की राजधानी वियना दुनिया के 123 बड़े शहरों में जीवन की गुणवत्ता के मामले में सर्वोत्कृष्ट पाई गई। यहां अपराध बहुत कम हैं। यह देश प्रमुख मुद्दों पर जनमत संग्रह की प्रक्रि या अपनाता है। यहां परमाणु ऊर्जा का प्रयोग नहीं किया जाता। आस्ट्रिया यूरोप का ऐसा देश है जो अपनी खूबसूरती, कौशल और मेहमाननवाजी से सारी दुनिया को आकर्षित करता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि यहाँ के होटलों में वातानुकूलित एसी नहीं होते क्योंकि सरकार एसी के प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति सचेत है।एक अन्य जानकारी यह भी थी कि कश्मीर में स्थित अमरनाथ जैसी गुफा आस्ट्रिया में भी है जहां ठीक उसी तरह का बर्फ से बना शिवलिंग बनता है। आस्ट्रिया के ईस्रीसनवेल्ट और स्लोवालिया में डिमेनोवस्का की गुफाएं आकर्षण योग्य हैं।1879 में सेल्जबर्ग के एन्टन पोसेल्ट नामक वैज्ञानिक ने इन गुफाओं की खोज की। 1920 से यहां पर्यटकों का आवागमन शुरू हुआ। भूवैज्ञानिक और वैज्ञानिक परीक्षणों से ज्ञात होता है कि ये बर्फ की शिलाएं करीब एक हजार साल पुरानी हैं। अमरनाथ के शिवलिंग मंदिर और ईस्रीसनवेल्ट गुफाओं में एक अन्य समानता ये भी है कि यह वर्ष भर एक समान नहीं रहती। जर्मनी के शासक रहे हिटलर का जन्म आस्ट्रिया में ही हुआ था लेकिन आस्ट्रियावासियों के मन में उसके प्रति लगाव के बदले केवल नफरत है। जब यूरोप की आर्थिक मंदी की चपेट में था, तब भी आस्ट्रिया इससे अप्रभावित रहते हुए लगातार आगे बढ़ता रहा। विज्ञान प्रौद्योगिकी और रेल तकनीक के क्षेत्र में इस देश की उपलब्धियां सारी दुनिया में सराही जाती है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष में भी उसकी भूमिका पूरी दुनिया को एक करने की है। यह जानना सुखद लगा कि आस्ट्रिया में पशुओं के प्रति क्रूरता को बहुत गंभीरता से लिया जाता है। वहां भी कभी भारत की तरह घोड़ा-गाड़ी, तांगे चला करते थे लेकिन अब बहुत कम प्रचलन में हैं क्योंकि उनका स्थान आधुनिकतम पेट्रोल वाहनों ने ले लिया है। वैसे दूरदराज के क्षेत्रों और व्यक्तिगत प्रयोग के लिए घोड़े पालने का प्रचलन आम है। वहां के घोड़े लम्बी-चौड़ी काठी के होते हैं। कुछ दिन पूर्व एक तांगेवाले ने इलैक्ट्रिक मोटर की सहायता से एक हाइब्रिड घोड़ागाड़ी का विकास किया जिसका उद्देश्य कार्बन का उत्सर्जन कम करना नहीं वरन घोड़ों का जीवन आसान करना है। जहां कार निर्माता हाइब्रिड वाहनों को बाजार में उतारने की दौड़ में लगे हैं, वहीं मारियो स्टेनर यह सोचते थे कि कैसे घोड़ों की क्षमता में सुधार किया जा सके। दो वर्षों की मेहनत के बाद अपने सहयोगियों की सहायता से स्टेनर ने एक ऐसी मोटर तैयार की जिससे उनकी घोड़ागाड़ी को खींचने वाले घोड़ों को राहत मिले। पहाड़ी चढ़ाई पर चढ़ते समय इस मोटर को चालू करने से घोड़ों को राहत मिलती है और जब इसे बंद कर दिया जाता है तो घोड़ागाड़ी के चलने से यह फिर से चार्ज हो जाती है।स्विट्जरलैंड से हम इन्सब्रक पहुंचे तो दोपहर हो चुकी थी इसलिए सबसे पहले लंच के लिए यहाँ के एक भारतीय होटल गए जहां पहले से ही काफी भारतीय पर्यटक मौजूद थे। अधिकांश टूर ऑपरेटर अपने ग्राहकों के लिए पहले ही रेस्तरां बुक कर देते हैं। यहां पर्यटकों के आने का सिलसिला लगातार बना रहता है लेकिन सर्दियों में  प्रवाह कुछ कम हो जाता है। भोजन में वह सब कुछ जो भारत में होता है। बस अंतर था तो केवल इतना कि रोटी आटे की बजाय मैदे की। दोपहर बाद हम वाटन्स नगर में स्थित क्रि स्टल म्यूजियम पहुंचे तो दूर से ही साक्षात्कार हुआ हरी घास से ढके पहाड़ीनुमा मानव चेहरे से जिसकी दोनों आँखों में क्रि स्टल चमक रहे थे और मुंह से पानी निकलकर एक बड़े तालाब में गिर रहा था। उसके पास ही सफेद चट्टानों से भी पानी की पिचकारी गोली की तरह छूटती और उस तालाब में जा गिरती। इस म्यूजियम में प्रवेश के लिए छ: यूरो का टिकट लेना अनिवार्य है लेकिन एक रियायत दी गई कि यहां से क्रि स्टल आभूषण खरीदने पर हर टिकटधारी को दो यूरो की छूट मिलती है। टिकट लेकर हम आगे बढ़े तो देखा घास से ढका हरा पहाड़ वास्तव में स्वरोस्की क्रि स्टल म्यूजियम का प्रवेश द्वार है। स्वरोस्की चकोस्लोवाकिया का रहने वाला था। जब वह आस्ट्रिया आया तो उसने वाटन्य की पहाड़ियों पर हीरे सी चमक और रंग रूप वाले क्रि स्टल को देखा तो उसने उन्हें तराश कर आभूषण आदि बनाने का काम शुरू कर दिया जो चल निकला। देखते-ही-देखते स्वरोस्की पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। अंदर प्रवेश करते ही विशाल कक्ष में क्रि स्टल का बहुत बड़ा झूमर झिलमिलाते हुए किसी महल की सी शोभा दे रहा था। एक महिला गाइड ने हमारा स्वागत हाथ जोड़ बहुत प्यार से ‘नमस्ते’ कहते हुए किया। उसके बाद उस म्यूजियम के बारे में अंग्रेजी में बताया। इस दो मंजिला म्यूजियम के प्रथम कक्ष में रंग-बिरंगे क्रि स्टल से बनी महाराणा प्रताप के स्वामीभक्त घोड़े की विशाल मूर्ति अद्वितीय कला का नमूना थी। भारत से हज़ाराें मील दूर भारत के शानदार इतिहास की एक झलक को देखना सुखद था। म्यूजियम में बहुत-सी आकर्षक वस्तुएं थी जिनका फोटो लेना आसान न था क्योंकि उनकी चमक  बहुत ज्यादा थी। जब हम बाहर निकले तो शाम हो चुकी थी लेकिन अब भी अच्छी रोशनी थी। लगभग यूरोप में इन दिनों देर तक रोशनी रहती है लेकिन नार्वे जैसी नहीं जहां प्रकृति अपना असाधारण प्रदर्शन करती है।वह रात हमने होटल अल्पिन पार्क में बिताई। वातानुकूलित न होने के कारण हमने अपेक्षाकृत बड़े और हवादार कमरे में आरंभ में कुछ घुटन सी अनुभव की लेकिन कुछ देर में सब सामान्य हो गया। थके होने के कारण मैं तो सो गया लेकिन हमारे साथी रात भर नींद न आने की शिकायत करते रहे। अगली सुबह कांटिनेंटल ब्रेकफास्ट के नाम पर अनेक ऐसे व्यंजन थे जिन्हें मैंने पहली बार ही देखा था। मांसाहारी और अजीब आकृतियों वाली इन वस्तुओं के बदले केवल जूस पीकर हम एक बार फिर से अगले सफर के लिए तैयार थे। (उर्वशी)