आकर्षण का केन्द्र हैं बैराठ के खंडहर

राजस्थान में जयपुर व अलवर ज़िले के संगम स्थल पर स्थित बैराठ (विराट नगर) कस्बा व उसके समीप का क्षेत्र मानव विकास, सभ्यता व संस्कृति का केन्द्र बिन्दु है। यह स्थल पाषणकालीन मानव सभ्यता व संस्कृति से यानी ईसा से 2800 वर्ष पूर्व से लेकर ईस्वी सन् के प्रारम्भिक काल के उत्थान व पतन का साक्षी भी है।महाभारत काल में यह क्षेत्र मत्स्य राज्य की राजधानी व पांडवों के वनवास की तेरह वर्ष के अज्ञातवास की स्थली भी माना जाता है। बैराठ से 15 किलोमीटर दूर स्थित मेडे के पास बाण गंगा स्रोत भी धनुर्धारी अर्जुन के शरशैय्या पर अंतिम सांसें गिनते भीष्म पितामह की प्यास बुझाने के लिए छोड़े गए तीर से निकला होने का महाभारत काल से संबद्ध है। यद्यपि मत्स्य की राजधानी के बाद विराट नगर में बौद्ध व जैन दर्शन भी पल्लवित हुए, लेकिन इसके कलात्मक वैभव को मुखरित करने का श्रेय मुगलकाल को ही जाता है। जैन मुनि विमल सागर से प्रभावित होकर बादशाह अकबर ने अपने सम्पूर्ण राज्य में खास पर्व व त्यौहारों पर 106 दिन की जीव हिंसा निषेध की घोषणा की थी।मुगल बादशाह अकबर ने विराट नगर की सांस्कृतिक विरासत, आध्यात्मक कीर्ति गाथा एवं खनिज सम्पदा से प्रभावित होकर इस क्षेत्र को भी अपनी कर्मस्थली में शामिल कर यहां टकसाल स्थापित की थी। अकबर द्वारा स्थापित टकसाल में ढाले गए  सिक्कों की धातु के उपशिष्ट टुकड़े विराट नगर में यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। मुगल काल में ही प्राचीन व नई स्थापत्य भित्ति चित्रकला का विकास हुआ। शहंशाह जहांगीर के शासन काल में उसे स्थानीय मनसबदार मुल्ला ख्वाजा द्वारा इबादत के लिए मस्जिद का निर्माण करवाया जो यहां की प्राचीनतम इबादतगाह मानी जाती है। इसमें त्रारस शैली की मुगल स्थापत्य कला देखने को मिलती है। वर्तमान विराट नगर कस्बे के पश्चिम भाग में स्थित पांडवों में महाबली भीम की क्रीड़ास्थली भीम गट्टा वनप्रांतर के दक्षिण में व इससे सटी हुई पहाड़ियों की हरितिमा से आच्छादित स्थल पर निर्मित म़ुगलबाग में स्थित दो अलग-अलग महल और उनका वास्तुशिल्प देखते ही बनता है। उद्यान की क्यारियों व जल प्रवाह के लिए नालियों व बैठकों की संरचना वास्तुकारों की कुशलता को दर्शाती है। मुगल द्वार की भव्यता और उसका कलात्मक स्वरूप जो आज भी दर्शकों को अपनी और आकर्षित करता है। विराटनगर की महिमा अकबर के नवरत्नों में एक अबुल फजल ने आईने अकबरी में किया है। सन् 1909-10 में प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार जहां अकबर की यशोगाथा उत्कीर्ण है वहीं मुगल उद्यान व प्रासाद अकबर व जहांगीर के तत्कालीन आमेर राज्य के शिकारगाह के रूप में देखे जा सकते हैं। मुगल उद्यान व आरामगृह के द्वार व भित्तियों पर बने चित्रांकन आज भी कला पारखियों के लिए कौतूहल का विषय है। बताया गया है कि अकबर ने फारस से जो चित्रकार बुलाये थे उन्होंने भारतीय व फारसी चित्रशैली के मिश्रण से जो मुगल शैली विकसित की थी वही शैली मुगल उद्यान स्थित दोनों प्रासादों व द्वार पर देखी जा सकती है। राजपूताने की रियासतों के अकबर ने निकट सम्पर्क से राजस्थानी कला का भी मुगल काल शैली में समावेश हुआ था। बाण गंगा स्थित गोसाई जी की छतरी, बैराठ के मुगल उद्यान स्थित प्रासाद द्वार में पुरुष चित्रों में चित्रित को बाईं ओर से दाईं और बांधने के साथ चाकदार व गोलाईदार चित्रित किए गए हैं। चित्रों में सभी पात्रों को राजस्थानी पोशाकों, आभूषण व नख-शिख वर्णन के राजस्थानी आयामों में दर्शाया गया है तो पुरुष की कमर में कटार, हाथ में फूल, वीणा को दर्शाया गया है। पुरुष वस्त्रों में घुटनों तक आए गोल चाकदार पाजामें, अटपटी पगड़ी, कमरबंद में फुंदने आदि राजस्थानी शैली का द्योतक है। यहां के चित्रों को 16वीं सदी में बैराठ में आए ईरानी व भारतीय चित्रकारों ने मिलकर बनाया था। (सुमन सागर)