जीवन और जीवन -स्त्रोत समुद्र

8 जून को समुद्र दिवस हेतु विशेष
धरती का दो-तिहाई भाग और इसका 97 प्रतिशत पानी इसके समुद्रों की गोद में समाया हुआ है। हमारे वायु-मंडल को आधे से भी अधिक आक्सीज़न देने वाला, धरती पर सबसे अधिक कार्बन-डाइआक्साइड अपने भीतर लेने वाला तथा वर्षा, ओले एवं बर्फ के रूप में धरती पर पानी का  जल-चक्र चलाने वाला यह विशाल समुद्र ही है। समुद्र धरती पर जीवन प्रदान करते हैं। हमारा प्रत्येक श्वास तथा पानी की पिये जाने वाली प्रत्येक बूंद, समुद्रों की मोहताज है। हमारे पवन-पानी एवं जलवायु को चलाने वाली वास्तविक शक्ति भी ये समुद्र ही हैं। ये हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य के ताने-बाने के सूत्रों में हमारे साथ ही बंधे हुए हैं। पानी के बिना हमारी धरती वीरान और बंजर है। पहाड़ों की चोटियों से लेकर गहरी खाइयों तक, विशाल मैदानों से लेकर घने जंगलों तक, पानी ही जीवन और जीवन स्रोत है। पानी का यह नीला जाल जिसे हम समुद्र कहते हैं, 1.3 बिलियन क्यूबिक किलोमीटर का है अर्थात् धरती का 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्रों से घिरा हुआ है। यह शानदार गहन नीले पानी का जाल धरती के वायु-मंडल, पवन-पानी एवं मौसम को चलाता है।मनुष्य के इस धरती पर पैदा होने से पहले समुद्र पैदा हुये, परन्तु आज भी ये मनुष्य के लिए रहस्यमय ही हैं। इनकी गहराइयों में समायी प्रकृति का आज भी हमें पूर्णतया ज्ञान तथा एहसास नहीं है। नदियों, नालों का प्रदूषित पानी अंत में समुद्र में ही जाकर गिरता है। पूरी मानवता के समक्ष यह प्रश्न है कि यदि ये समुद्र ही प्रदूषित हो गये, ये प्लास्टिक, कूड़े, सीवरेज, औद्योगिक अवशेषों, रासायन, कीटनाशकों से भर गये तो क्या होगा? पहले ही ग्लोबल वार्मिंग को लेकर समुद्र तल की  ऊंचाई बढ़ रही है जिससे प्राकृतिक प्रकोप दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। वायु-मंडल में ग्रीन हाऊस गैसें केवल ज़मीन का ही नहीं, अपितु समुद्रों के पानी का तापमान भी बढ़ाती हैं। गर्म होने के कारण पानी का वाष्पीकरण शीघ्र होता है जिससे असामयिक  और अधिक वर्षा तथा आंधियां आती हैं। बढ़े हुये तापमान से समुद्रों के जीव-जन्तुओं का जीवन भी बुरी तरह से प्रभावित होता है। समुद्र का पानी गर्म होने के कारण फैलता है जिससे समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ती है तथा यह समुद्र तटों एवं निकटवर्ती इलाकों में बाढ़ आने का कारण बन जाता है। ग्लेशियर और ध्रुवों की बर्फीली तहें पिघलने से समुद्र का जल-स्तर और बढ़ रहा है। एक अनुमान के अनुसार यदि ग्रीनलैंड की बर्फ पिघल जाए तो धरती पर स्थित सभी समुद्रों के पानी का स्तर 7 मीटर ऊंचा हो जाएगा तथा यदि अंटार्कटिक की बर्फ पिघल जाए तो यह स्तर 65 मीटर बढ़ जाएगा। विश्व के कई द्वीप एवं शहर जैसे मालदीव, सेशल्ज़, वैनिस, ढाका, बैंकॉक, अलैग्ज़ैंडरिया, मियामी, जकार्ता और हमारा अपना महानगर मुम्बई जल्द ही समुद्र की गहराइयों में डूब जाएंगे। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि यह कितना खतरनाक होगा।वायु-मंडल में अधिक कार्बन डाईआक्साइड और अन्य ज़हरीली गैसें समुद्र के पानी में घुल कर उसको तेज़ाबी बना देती हैं, जिससे पानी में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा बहुत कम हो जाती है। कई समुद्री जीव विशेष तौर पर कलैमज़, ओस्टज़र्, मूसलस और कोरल नहीं बन सकते और कई विशेष किस्म की मछलियां मर जाती हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार हम अपने समुद्रों की 90 प्रतिशत बड़ी मछलियों को समाप्त कर चुके हैं। हम प्रत्येक वर्ष 8 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक इनमें फैंकते हैं। यदि हमने अपनी आदतें न बदलीं तो वर्ष 2050 तक समुद्रों के पानी में प्लास्टिक, इसमें रहने वाले जीव-जन्तुओं एवं मछलियों से कहीं अधिक हो जाएगा। इसके अतिरिक्त कई प्रकार के समुद्री पौधे भी इस कारण समाप्त हो चुके हैं। समुद्री जीव-जन्तुओं एवं मछलियों पर निर्भर अनेक पक्षी भी विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। कृषि अवशेष जो समुद्रों में फैंके जाते हैं, में नाइट्रोजन जैसे खनिज पदार्थ  होने के कारण समुद्र के पानी में काई अधिक पैदा हो जाती है, जिसके दृष्टिगत पानी में आक्सीजन की मात्रा घटने से मछलियां एवं अन्य समुद्री जीव तथा पौधे मर जाते हैं, जिसके कारण समुद्र का वह भाग जीवन से वंचित हो जाता है। वर्ष 2004 में मैरीन बॉयऑलोजिस्ट के अनुसार इस प्रकार के 146 ‘डैड ज़ोन’  थे जिनकी संख्या वर्ष 2008 में बढ़ कर 405 हो गई थी।मनुष्य के पास सोचने एवं समझने की शक्ति है। हम जान चुके हैं कि हमने क्या ़गलतियां की हैं तथा उन्हें पटरी पर लाने की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में हमें क्या ठोस कदम उठाने चाहिएं, इस संबंध में भी हम सचेत हैं। बस, अब आवश्यकता है तो प्रतिबद्ध होने की, अपने पर्यावरण को बचाने की, अपने समुद्रों को बचाने की, मानवता को बचाने की, अपने आप को बचाने की, क्योंकि समय हमारे हाथ से रेत की भांति फिसलता जा रहा है।

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