भारत-चीन तनाव

मई महीने के शुरू से ही पूर्वी लद्दाख में भारत एवं चीन की वास्तविक नियन्त्रण रेखा (एल.ए.सी.) पर दोनों देशों के सैनिकों जो पहले समझौतों के तहत नि:शस्त्र होते थे, के बीच अब तीव्र विवाद हुये हैं। एक बार तो वर्ष 2017 में भूटान की सीमा पर डोकलाम के निकट इतनी तनावपूर्ण स्थिति बन गई थी जब 73 दिनों तक दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सामने खड़ी रही थीं। भारत एवं चीन की 3,488 किलोमीटर सांझी सीमा है। चाहे दोनों देशों का इस सीमा पर क्रियात्मक रूप में नियन्त्रण वाला अपना-अपना क्षेत्र है, परन्तु प्राय: दोनों देशों की सेनाओं के बीच एक-दूसरे की सीमा को पार करने के आरोपों के अन्तर्गत आपस में झड़पें होती रहती हैं। चीन इस पूरी सीमा पर भारत के नियन्त्रण वाले बहुत-से हिस्से पर अपना दावा जताता रहा है। 
1962 में भी जब दोनों देशों के संबंध बहुत अच्छे थे, तब चीन ने अक्साईचिन पर हमला करके 37 हज़ार किलोमीटर भारतीय इलाके पर कब्ज़ा कर लिया था। इस पराजय की नमोशी अभी तक भारत के साथ चलती आ रही है। इसके बाद दशकों तक दोनों देशों के बीच सीमाओं के मामले को लेकर बैठकें होती रही हैं। अब तक 22 बार उच्च-स्तरीय बैठकें हो चुकी हैं, परन्तु इनका कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। इसीलिए दोनों देशों की सीमाओं पर प्राय: तनाव देखा जाता रहा है। चीन पिछले दशकों में विश्व की एक बड़ी ताकत बन कर उभरा है। ऐसी स्थिति में उसके रवैये में नम्रता आने की बजाय अहं अधिक बढ़ गया प्रतीत होता है। अपनी शक्ति के बलबूते पर वह अपने पड़ोसियों के साथ सीमाओं के मामले में अक्सर टकराता रहता है। दक्षिणी चीन सागर के अपने लगभग एक दर्जन पड़ोसी देशों के साथ वह उलझा हुआ है। उसने समुद्र में अपने अप्राकृतिक द्वीप भी बना लिए हैं, जिनका ये पड़ोसी देश अक्सर विरोध करते रहते हैं। इस बार भी मई के प्रारम्भ में जब चीनी सेना ने वास्तविक नियन्त्रण रेखा के साथ सटे लद्दाख के तीन इलाकों तथा सिक्किम के एक स्थान पर घुसपैठ की, तो भारत एकाएक सतर्क हो गया। इसी प्रकार चीन गलबा नदी के उत्तर से लेकर दर्रा काराकोरम तक अपनी पहुंच करना चाहता है। इस दर्रे में उसने साक्शगाम घाटी तक एक बड़ी सड़क का निर्माण भी कर लिया है।  यह दर्रा 1963 से उसके कब्ज़े में है। पाकिस्तान ने यह हिस्सा चीन के साथ गहन दोस्ती बनाने के लिए उसे दे दिया था। इस बार लद्दाख के पैंगोंग इलाके में दोनों देशों की सेनाओं के बीच कई दिनों से झड़प होती रही। इसी प्रकार सिक्किम के माकुला से भी ऐसी झड़पों की ़खबरें आती रही हैं। इस संबंध में एक अच्छी ़खबर यह है कि पिछले शनिवार दोनों देशों के कमांडरों में पहले दौर की बातचीत चली जिसमें दोनों पक्षों ने शांतिपूर्वक ढंग से आपसी बातचीत के माध्यम से इस समस्या को सुलझाने का निश्चय किया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ तथा तीनों सेना अध्यक्षों के साथ बातचीत करने के बाद कहा है कि इससे वर्तमान में दोनों देशों में पैदा हुआ तनाव अवश्य कम हुआ है, परन्तु इसके साथ ही दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सामने अभी भी तनावपूर्ण स्थिति में खड़े दिखाई देती हैं। पिछले समय में कोरोना महामारी के दृष्टिगत चीन विश्व भर की नज़रों का केन्द्र बना रहा है। अमरीका, आस्ट्रेलिया तथा अन्य बहुत-से यूरोपीय देश इस महामारी के लिए चीन को मुख्य ज़िम्मेदार समझते हैं। उन्होंने इस संबंध में चीन से जांच-पड़ताल करने की भी बात की है। ऐसे एक प्रस्ताव की स्वीकृति में भारत भी शामिल था। इसके साथ ही बहुत-सी अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों ने अपना व्यापार चीन से समेटने के यत्नों के बाद भारत की ओर अपना रुख धारण किया है। इस स्थिति ने भी दोनों देशों में तनाव पैदा किया है। ताइवान तथा हांगकांग के मामले पर भी चीन दबाव के अन्तर्गत है। ऐसी स्थिति में वह अपना वर्चस्व बनाये रखने की नीति के दृष्टिगत किसी न किसी प्रकार से भारत पर अपना दबाव बढ़ाने की कोशिश में है। इसी नीति के अन्तर्गत उसने भारत के पड़ोसियों नेपाल एवं पाकिस्तान को अधिक सहायता देने तथा उनका पक्ष-पोषण करने की नीति अपना रखी है, परन्तु इसके बावजूद भारत को पूर्व की भांति सीमाओं के मामले पर चीन के साथ जहां अपनी बातचीत जारी रखनी चाहिए, वहीं इस मामले पर डोकलाम जैसी दृढ़ता भी बनाये रखना आवश्यक है। कोरोना महामारी के समय में दोनों देशों में बढ़ा हुआ यह तनाव विश्व भर के लिए और भी ़खतरनाक सिद्ध हो सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द