प्रवासी मज़दूरों की कमी के कारण धान की रोपाई होगी प्रभावित ?

धान लगाने का समय आ गया है। पंजाब प्रीज़र्वेशन आफ सब-सुआयल वाटर एक्ट, 2009 के तहत पंजाब सरकार ने धान की रोपाई शुरू करने की तिथि 10 जून तय की है। गत वर्षों में यह तिथि 20 जून हुआ करती थी। चाहे गत वर्ष मुख्यमंत्री ने ढील देकर इसे 13 जून कर दिया था। इस वर्ष 10 जून से पहले कोई भी किसान धान नहीं लगा सकता। धान की काश्त 30 लाख हैक्टेयर के करीब क्षेत्र में की जानी है। इस वर्ष लगभग 40 फीसदी क्षेत्र में सीधी बिजाई की तकनीक से बिजाई किये जाने की संभावना है। करीब 7 लाख हैक्टेयर क्षेत्र बासमति की काश्त में लाने का लक्ष्य रखा गया है। इस तरह 22-23 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में धान की काश्त किये जाने की संभावना है और 14 लाख हैक्टेयर के लगभग क्षेत्र में हाथों से ट्रांसप्लांटिंग विधि से रोपाई की जाएगी। इसलिए  7 लाख के करीब प्रवासी खेत मज़दूरों की ज़रूरत है। इनके  विभिन्न राज्यों में अपने घरों को लौट जाने के कारण उपलब्धता बहुत कम होगी। कृषि तथा किसान भलाई विभाग के सचिव स. काहन सिंह पन्नु कहते हैं कि धान लगाने का कार्य उसी सफलता से हो जाएगा जिस सफलता से गेहूं का मंडीकरण और सरकारी खरीद हुई है। गेहूं के मंडीकरण के लिए भी तो प्रवासी खेत मज़दूर उपलब्ध नहीं थे। स्थानीय खेत मज़दूर काफी मात्रा में हैं जो धान की रोपाई को पूरा करेंगे। परन्तु गेहूं का मंडीकरण तथा इसका रख-रखाव धान की रोपाई से अलग प्रकार की क्रिया है। दशकों से प्रवासी खेत मज़दूर जो बिहार, यूपी, ओड़िशा, झारखंड तथा पश्चिम बंगाल से आते हैं, धान लगा रहे हैं। बिहारी तथा यूपी के मज़दूर बहुतायत में होते हैं। इनको धान लगाने में विशेष महारत होती है। एक एकड़ में एक दिन में धान लगाने के लिए 3 से 5 प्रवासी मज़दूर चाहिए होते हैं, जबकि स्थानीय खेत मज़दूर 7 चाहिएं। कुछ प्रवासी खेत मज़दूर इन पूर्वी राज्यों से धान लगाने के लिए वापस आने को तौयार हैं परन्तु कोरोना वायरस के कराण उनकी आवाजाही व पहुंच में कई रुकावटें हैं और खुले तौर पर नहीं पहुंच सकते। यदि पंजाब सरकार उनकी आवाजाही का प्रबंध कर दे तो यह समस्या कुछ हद तक हल हो सकती है। कुछ किसान अपने खर्चे पर बसें भेज कर प्रवासी खेत मज़दूरों को लाए भी हैं। ये मज़दूर गत वर्षों में इन किसानों के खेतों में धान लगाते रहे हैं। इन किसानों को उन पर भरोसा है। ये किसानों के ट्यूबवैलों पर ठहर गए हैं। किसान इनको राशन भी उपलब्ध करवा रहे हैं। धान की पनीरी लगी हुई है, इसी सप्ताह यह तैयार हो जाएगी। सीधी बिजाई अधिकतर किसानों के लिए नयी तकनीक है जिसकी उनको जानकारी नहीं है और कुछ किसानों को उसकी सफलता हेतु तसल्ली भी नहीं। कुछ ऐसे किसान भी हैं जिन्होंने सीधी बिजाई करने हेतु पनीरी भी लगाई हुई है। इस उम्मीद में कि अगर उनको सीधी बिजाई में सफलता न मिली तो हाथ से धान लगवाएंगे। इससे खेत मज़दूरों की आवश्यकता और भी बढ़ सकती है। यदि किसानों को समय पर खेत मज़दूर नहीं मिले और समय पर धान की रोपाई न  हुई तो लगाई गई पौध जब 30 दिन से अधिक आयु की हो जाए तो उसे लगाने से उत्पादन कम होता है क्योंकि पौध बूढ़ी हो जाने के कारण उसका प्रस्पुटण प्रभावित होता है। धान की विभिन्न किस्मों की पौध खेतों में लहलहा रही है। इसमें पूसा-44, पी.आर.-114, पी.आर.-121, पी.आर.-126, पी.आर.-128, तथा पी.आर.-129 जैसी किस्में शामिल हैं।  धान की रोपाई तकरीबन 25 से 30 दिन तक चलती है। धान आम किसानों को खरीफ की सभी दूसरी फसलों के मुकाबले  अधिक लाभदायक है। किसानों ने कई स्थानों पर 5000 से 6500 रुपए प्रति एकड़ तक धान की रोपाई का ठेका स्थानीय खेत मज़दूरों को देना तय करके उनकी बुकिंग की है। गत वर्ष यह ठेका 3000-3200 रुपए प्रति एकड़ तक था। कई स्थानों पर पंचायतों ने प्रस्ताव डाल दिये हैं कि कोई भी किसान लेबर को गत वर्ष से अधिक ठेका न दे (चाहे मामूली वृद्धि की जा सकती है) यहां तक कि उल्लंघन करने किसानों को पंचायतों द्वारा जुर्माना करने की भी धमकी दी गई है परन्तु पंचायतों को ऐसा जुर्माना करने का कोई अधिकार नहीं। पंजाब बाजीगर ग्राम सुधार सभा के अध्यक्ष उजागर राम का कहना है कि यह फैसला तो किसान और धान लगाने वाली लेबर ने आपस में ही करना है। इसमें कोई कानूनी रुकावट नहीं है। पंचायतों द्वारा की गई यह कार्यवाही अनधिकृत है। जब धान की रोपाई समाप्त होने को होती है तो बासमति की रोपाई होनी शुरू हो जाती है। बासमती की किस्मों को भी धान की तरह लम्बे समय के लिए धूप, अधिक नमी और सुनिश्चित पानी चाहिए। बासमती  में बढ़िया पकाने और खाने वाले गुण और स्वाद तभी आता है यदि ये किस्में ठंडे तापमान में पकें। इनकी पूसा बासमती -1718, पूसा बासमति-1121, पूसा बासमती -6 (पूसा-1401) तथा पूसा बासमती  -1637 लगाने का उचित समय है। सीधी बिजाई के लिए सही किस्में पूसा बासमती-1121 तथा पूसा बासमती-1509 हैं। पूसा बासमती-1509 की पौध जून के अंत में लगाई जाएगी क्योंकि यह किस्म पकने को थोड़ा समय लेती है। केवल 115-120 दिन। इस का उत्पादन भी दूसरी बासमती की किस्मों से अधिक है। इस किस्म के चावह लम्बे तथा पतले होते हैं जो पकने के बाद तकरीबन दोगुणा लम्बे हो जाते हैं और खुशबू भी देते हैं। इस किस्म की 25 दिन की पौध खेत में लगा देनी चाहिए। पौध लगाने से पहले जड़ों को बाविस्टन के घोल में 6 से 8 घंटे तक भिगो कर लगाना चाहिए ताकि  ‘बकाने’ के रोग से बचाव हो सके। जब बासमती की किस्मों की पौध में  6-7 पत्ते निकल आने तथा पौध लगाए 30 के लगभग दिन हो जाएं (पूसा बासमती-1509 के लिए 25 दिन) तो वह उखाड़ कर खेत में लगाने के लिए तैयार होती है। बासमती के अच्छे चावलों की प्राप्ति हेतु रोपाई के समय का बड़ा महत्व है। इन किस्मों के सिट्टे उस समय बनते है जब दिन की लम्बाई उचित हो। अगेती फसल अधिक तापमान में सिट्टों पर आ जाती है और इसके चावल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। खादों का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करना चाहिए।