" कोरोना वायरस के विरुद्ध जंग "साज़ो-सामान की बड़ी ज़रूरत

कोरोना मरीज़ों की देखभाल में हो रही भारी कमी और कोरोना से मृतकों के शवों की होती दुर्दशा को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई कठोर टिप्पणी ने एक ओर जहां प्रशासनिक तंत्र की लापरवाहियों को उजागर किया है, वहीं संकट के इस दौर में मानवीय भावनाओं में होते हृस की ओर भी जन-साधारण का ध्यान आकृष्ट किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कोरोना संक्रमण के धरातल पर हो रही भारी कोताहियों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, गुजरात और प. बंगाल को इस संदर्भ में कड़ी फटकार लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय की पीड़ा को इस एक तथ्य से भी समझा जा सकता है कि उसने इन राज्यों में कोरोना-महामारी से जुड़े केन्द्रों में प्रकट हो रही दुर्दशा को जानवरों से भी बदतर करार दिया है। देश में कोरोना वायरस के मरीज़ों और खास तौर पर कोरोना के मृतकों के साथ शुरू से ही उपेक्षापूर्ण और अमानवीयता जैसा व्यवहार किया गया है। यह सिलसिला आज भी जारी है। पंजाब में कोरोना से होने वाली पहली मौत के बाद, मृतक का दाह-संस्कार न करने देने के दौरान जिस प्रकार की स्थितियां उपजी थीं, उन्होंने अमानवीयता की सभी सीमाओं को लांघ दिया था। इसी प्रकार अस्पतालों में कोरोना संक्रमित मरीज़ों के साथ दुर्व्यवहार और उपचार के दौरान उनकी होने वाली दुर्दशा ने भी देश और समाज के बौद्धिक एवं प्रबुद्ध वर्ग को बड़े स्तर पर उद्वेलित किया। दिल्ली सरकार का प्रशासन तो इस मामले में बेहद विफल सिद्ध हुआ। स्थितियों की इस गम्भीरता का ही परिणाम है यह शायद, कि दिल्ली के अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं एवं देखभाल उपलब्ध न होने पर धनी-मानी मरीज़ इलाज हेतु पंजाब की ओर रुख करने लगे हैं। दिल्ली सरकार के मंत्रियों ने स्वयं इस बात को स्वीकार करते हुए माना है कि अगले दो महीनों में दिल्ली में कोरोना संक्रमित मामलों की संख्या लाखों तक पहुंच सकती है। नि:सन्देह इन्सानों से इन्सानों में प्रवेश कर जाने वाले इस वायरस ने भय और आतंक का माहौल तो पैदा किया ही है, परन्तु कोरोना के मरीज़ों और मृतकों के प्रति जिस प्रकार का निर्मम व्यवहार भारत में किया गया है, अथवा किया जा रहा है, उसकी मिसाल अन्य किसी देश में नहीं मिलती। सम्भवत: यही कारण है कि कुछ अस्पतालों से मरीज़ों के भाग जाने अथवा भूमिगत हो जाने की ़खबरें भी मिली हैं। अदालत द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों को कोरोना मरीज़ों के प्रति अपना दायित्व पूरी सक्रियता से निभाये जाने की ताकीद भी स्थितियों की भयावहता को प्रकट करती है। अदालत ने बड़े साफ शब्दों में कहा है कि दिल्ली के अस्पतालों की दशा बेहद दयनीय है। अदालत ने सरकारों से इस संदर्भ में जवाब मांगा है, सो यह उम्मीद भी जगती है कि शायद इस दुर्दशा में कुछ सुधार हो जाए, परन्तु खास तौर पर देश के कुछ उपरोक्त राज्यों के अस्पतालों में पी.पी.ई. किट्स, बैड्स और वैंटीलेटर्स आदि की आज भी कमी है। पी.पी.ई. किट्स के अभाव के कारण ही डाक्टर और अन्य स्टाफ मरीज़ों के निकट जाने से कतराते हैं, परन्तु समस्या यह है कि जन-साधारण पर कई तरह के कोरोना शुल्क एवं कर लागू किये जाने के बावजूद, देश के नाज़ुक शहरों के अस्पतालों में पर्याप्त स्वास्थ्य-सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं। यह भी कि दिल्ली में डाक्टरों के बीच वेतन आदि को लेकर भी शिकायतें उपजने लगी हैं। सर्वोच्च अदालत की इस टिप्पणी में भी बड़ा दम है कि युद्ध के दौरान आप अपने योद्धाओं को नाराज़ नहीं कर सकते। हम समझते हैं कि जिस प्रकार विश्व एवं देश के धरातल पर से समाचार आ रहे हैं, उस अनुपात से भविष्य में स्थिति और गम्भीर हो सकती है। देश के कई राज्यों में मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, और इस कारण होने वाली मौतों के आंकड़े भी बढ़े हैं। अस्पतालों में सुविधाओं एवं उपकरणों का पहले से बड़ा अभाव है। सर्वोच्च अदालत के निर्देश और टिप्पणी से बेशक सरकारों की ओर से आंखों में धूल झोंकने जैसी कोई कार्रवाई हो सकती है, परन्तु सम्पूर्णतया कोरोना के विरुद्ध जंग में फतेह हासिल करने और सर्वोच्च अदालत के निर्देशानुसार ठीक परिणाम हासिल करने के लिए सबसे पहले डाक्टरों एवं स्टाफ के अन्य सदस्यों के लिए पर्याप्त मात्रा में पी.पी.ई. किट्स की उपलब्धता प्रथम आवश्यकता है। डाक्टरों को सही सुरक्षा उपलब्ध कराये बिना उनसे दृढ़ता से कर्त्तव्य-निर्वहन की अपेक्षा नहीं की जा सकती। हम समझते हैं कि नि:सन्देह आने वाला कल बेहद गम्भीर होने की आशंका है। ऐसे में सरकारें जितनी जल्दी इस जंग में प्रयुक्त होने वाले अपने शस्त्रास्त्रों एवं अपने लाव-लश्कर को तैयार कर लेंगी, उतने अच्छे ढंग से कोरोना वायरस के विरुद्ध जंग जीती जा सकती है।