कोरोना को नियंत्रित करने में आखिर चूक कहां हुई ?

कोरोना वायरस जिससे कोविड-19 बीमारी होती है, वह भारत में चीन से नहीं आया बल्कि यूरोप, मध्य पूर्व व दक्षिण एशियाई क्षेत्रों से आया है यानी उन जगहों से जहां भारतीय अमूमन यात्रा करते हैं। ऐसा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ  साइंस, बंगलुरु के शोधकर्ताओं का कहना है, जिनकी रिपोर्ट ‘करंट साइंस’ में प्रकाशित हुई है। इसका अर्थ यह है कि 30 जनवरी को जब कोविड-19 का पहला मामला भारत में प्रकाश में आया था, तब अगर हवाई यात्रा पर रोक लगा दी जाती या फ्लाइट से आने वालों को आवश्यक रूप से क्वारंटाइन किया जाता तो शायद भारत इस महामारी की चपेट में नहीं आता। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि लॉकडाउन का उद्देश्य स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित व मजबूत करने के लिए समय अर्जित करना होता है ताकि महामारी का मुकाबला किया जा सके, लेकिन लॉकडाउन का मकसद महामारी को चपटा करने के तौर पर प्रचारित किया गया और आवश्यक स्वास्थ्य तैयारियों पर कोई खास बल नहीं दिया गया। इसके दो प्रमुख नतीजे निकले- एक संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ने लगे। अब रोजाना तकरीबन दस हजार नये मामले प्रकाश में आ रहे हैं। 8 जून 2020 को सुबह 8 बजे 24 घंटे में 9983 नये मामले रिकॉर्ड किये गये, 206 मौतें हुईं और कुल संक्रमित मामले बढ़कर 2,56,611 हो गये। कुल मरने वालों की संख्या 7135 हो गई। जगह-जगह से ये खबरें मिलने लगीं कि नये मरीजों का टेस्ट नहीं हो पा रहा है और उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल दौड़ने के बावजूद भर्ती नहीं किया जा रहा है। स्थिति चिंताजनक है।दूसरा यह कि लम्बे लॉकडाउन की वजह से आम लोगों की आर्थिक स्थिति एकदम चौपट हो गई है। नौकरियां छूट गई हैं, दाने-दाने को मोहताजी है, जिसकी वजह से लोगों ने आत्म-हत्याएं शुरू कर दी हैं। लाखों प्रवासी मजदूर पैदल ही शहरों से अपने गांव लौटने के लिए मजबूर हुए, खासकर इसलिए कि ‘जहां  हैं, वहीं रुक जायें’ का नारा देने के बावजूद सरकार इनकी रोटी की व्यवस्था करने में विफल रही। गांव लौटते प्रवासी मजदूर अपने साथ ग्रामीण क्षेत्रों, जो अभी तक संक्रमण मुक्त थे, में कोरोना वायरस लेकर पहुंचे। आर्थिक संकट महामारी से अधिक भयावह होने लगा तो सरकार के पास लॉकडाउन खोलने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। अब महामारी के भी अधिक फैलने की आशंका बढ़ती जा रही है। अकेले महाराष्ट्र में ही चीन से अधिक कोविड-19 मामले हो गये हैं। 15वें वित्त आयोग का स्वास्थ्य पर उच्चस्तरीय पैनल का अनुमान है कि भारत में यह महामारी अलग अलग समय में अलग अलग जगहों पर चरम पर पहुंचेगी। इसलिए उसका सुझाव है कि राज्यों के बीच संसाधनों को पूल किया जाये यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक राज्य में बेहतर स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध रहे। दूसरे व आसान शब्दों में इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि महामारी राज्य  में अलग समय में चरम पर होगी और राज्य बी में उससे अलग समय पर। इसलिए ऐसी व्यवस्था विकसित की जाये जिसके तहत स्वास्थ्य संसाधनों जैसे मैनपॉवर व उपकरण को आवश्यकता अनुसार एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाया जा सके।आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) के महानिदेशक डा. बलराम भार्गव का कहना है कि कोविड-19 कर्व अभी चपटी नहीं हुई है, लेकिन उसका प्रभाव दो या तीन वर्ष की लम्बी अवधि के लिए वितरित हो गया है। हालांकि मौतें वितरित या स्पेस्ड आउट हो गई हैं, लेकिन मृत्यु दर को 5 प्रतिशत से नीचे रखना जरूरी है क्योंकि अगर मौतों की संख्या प्रति दिन 1000-2000 तो यह सरकार के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय हो जायेगा। आईसीएमआर का मानना है कि ‘ट्रैक, ट्रेस एंड ट्रीट’ की जो वर्तमान योजना है वह महाराष्ट्र व गुजरात को छोड़कर सब जगह ठीक काम कर रही है। फिलहाल के लिए सरकार ने दस राज्यों के 38 जिलों में 45 नगर पालिकाओं के अधिकारियों को आदेश दिया है कि वह अपने यहां घर घर जाकर सर्वे करें और तुरंत टेस्टिंग करें ताकि संक्रमण को नियंत्रित किया जा सके और मृत्यु दर को कम किया जा सके।  गौरतलब है कि दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में एक रिपोर्ट के अनुसार 30 में से 12 सैंपल नेगेटिव थे, लेकिन उन्हें भी पॉजिटिव बता दिया गया था। इस प्रकार की लापरवाही ही कोरोना वायरस को नियंत्रित करने में बाधक हो रही है।

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