कबड्डी प्रशिक्षण कैम्प के गोरख-धंधे को प्रबंधक गम्भीरता से लें

कबड्डी पंजाब का गौरवमय खेल है। इस खेल को वैश्वीकरण रूप देने हेतु चाहे चमक-दमक वाले समारोह तो होते ही रहते हैं परन्तु जड़ आज भी हमारे खेत और साधारण मैदान ही हैं। पिछले दस वर्षों से कबड्डी में करोड़ी कप तथा विदेश जाने की खुली दौड़ ने पंजाब के नौजवानों तथा आम लोगों में कबड्डी के प्रति दिलचस्पी बढ़ाई है। प्रवासी भारतीयों द्वारा बड़े स्तर पर पैसे खर्च करने के रूझान ने कबड्डी को खेल मंच से खींच कर व्यापारिक मंडी में तब्दील कर दिया है। जिस कारण कबड्डी के खेल को हर कोई कमाई के नज़रिए से देख रहा है। एक ज़माना था जब लोग कबड्डी को शौक के तौर पर खेलते थे। अच्छे खिलाड़ियों की कीमत लाखों में तय होती है। जो एक पक्ष से अच्छा रूझान भी है परन्तु कबड्डी को करोड़ों में ले जाने वाले प्रबंधकों को इस खेल की नर्सरी की तरफ भी नज़र डालनी चाहिए जिसे पैदा होने से पहले ही दवाईयों की दलदल में धकेला जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप अधिकतर नौजवान डोप टैस्ट देने से मुनकर हुए हैं। इसके चलते हुए कितने नौजवान जान से हाथ धो बैठे हैं। जानलेवा चीज़ों के सेवन के कारण हुई मौतों का भेद खुलने के बाद कबड्डी फैडरेशनों तथा लोगों ने दबाव बनाया कि खिलाड़ी नशा लेते हैं, इनके डोप टैस्ट होने चाहिएं। इस घटनाक्रम के चलते हुए देश-विदेश में भी डोप टैस्ट होने शुरू हो गए हैं जिस कारण विश्व कबड्डी डोपिंग कमेटी भी अस्तित्व में आई है। जिसके सार्थक प्रयास जारी हैं परन्तु हम क्हां खड़े हैं? डोप की जड़ कहां है? यह जानने के बजाय हम बड़े खिलाड़ियों को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं। जबकि असल कहानी कहीं और रची जाती है। 
आज पंजाब की कबड्डी को जो डर सता रहा है, वह है कबड्डी में सशक्तिवर्धक दवाईयों की आड़ में दिया जा रहा मीठा ज़हर, जो कि पंजाब की जवानी को चिट्टे नशे जैसे नशों के कुएं में फेंकने का रास्ता दिखाता है। इसके पीछे बड़े स्तर पर काम कर रहे हैं कबड्डी के कथित कोच और कथित प्रशिक्षण केन्द्र चलाने वाले लोग जिनके कारण आज हर कोई कबड्डी को शक की नज़र से देखने लग पड़ा है। दिहाड़ीदार या अच्छे पैसे कमाने वाले इन कोचों के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में संबंध उन लोगों के साथ हैं जो शक्तिवर्धक या अन्य सामान बेचते हैं। जिनके साथ इन्होंने कमीशन किया होता है। ये कोच एक तरह की ही सभी खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करवाते हैं। 
पंजाब में कबड्डी को व्यवसायक तौर पर चला रहे संगठनों को चाहिए कि 6 महीनों के बाद एक सैमीनार का आयोजन किया जाए जिसमें अच्छे डाक्टर, एनआईएस कोच तथा अन्य विशेषज्ञों के कीमती तजुर्बे तथा विचार साझा किए जाएं। जो खिलाड़ियों को आजकल सिर्फ मैदानों के खेल तक सीमित हो गए हैं, उनको खेल के नियम तथा अच्छे खिलाड़ी वाले गुण बताने हेतु स्पैशल क्लासों का प्रबंध किया जाना चाहिए। 
यदि पंजाब की नई पीढ़ी को ओर ध्यान न दिया गया तो परिणाम गंभीर होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। समूह कबड्डी संगठन हमारी नई पीढ़ी की ओर विशेष ध्यान दें ताकि हम अपने गौरवमय खेल को आगे ले जाएं और इसके स्वर्णिम भविष्य के लिए आशावान हों।     

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