वायु सेना में जंगी बेड़ों की बढ़ती क्षमता

सशक्त और शक्तिशाली भारत के लिए देश की तीनों सेनाओं का आधुनिकतम शस्त्रों और युद्धक हवाई जहाज़ों व हेलीकॉप्टरों से सुसज्जित होना आवश्यक है। इस दृष्टि से भारत ने लद्दाख में चीन से तनातनी के चलते रूस से 33 युद्धक विमानों की आपात खरीद का फैसला लिया है। रूस से 12 सुखोई-30 और 21 मिग-29 विमान खरीदे जाएंगे। इन सुपर सुखोई विमानों से 600 किमी तक मार करने वाली मिसाइलें दागी जा सकती हैं। भारत को जुलाई तक चार राफेल विमान भी मिल जाएंगे। अब वायु सेना में जंगी बेड़ों की क्षमता करीब 20 प्रतिशत से अधिक हो गई है। इनमें आधुनिक तकनीक से लैस राफेल, अपाचे, सुखोई, मिग और चिनूक जंगी बेड़े शामिल हुए हैं। वायुसेना ने अपनी युद्धक इकाइयों को आक्रामक बनाने के नज़रिए से इसकी सरंचना में भी बदलाव किए हैं। वायु सेना के युद्ध अभियानों के लिए करीब 2000 योद्धाओं और तकनीशियनों की भर्ती की गई है। इन जांबाजों (फाइटर स्क्वाड्रन) की भर्ती से सैन्य बलों में पूर्व से तैनात अधिकारियों पर काम का दबाव भी कम होगा। इस दिशा में सेना की एकीकृत मुहिम चलाने की दृष्टि से ‘चीफ ऑफ  डिफैंस स्टाफ’ (सीडीएस) की भूमिका भी अहम साबित हो रही है।  नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही रक्षा सौदों में गंभीर रुचि ली जा रही है। अमरीका से 165 अरब रुपए के युद्धक हेलीकॉप्टर एवं अन्य रक्षा उपकरण खरीदने का बड़ा सौदा पहले ही हो चुका है। अमरीका विमानन कम्पनी बोइंग से 22 अपाचे हमलावर हेलीकॉप्टर और 15 चिनूक भारी  हेलीकॉप्टर खरीदा जाना देश की सुरक्षा के लिए जरूरी था। फ्रांस से 36 राफेल युद्धक विमानों के सौदे के बाद इनका भारत आना शुरू भी हो गया है। एक राफेल विमान की अनुमानित कीमत करीब 58,000 करोड़ रुपए है। यह अंत:-सरकारी सौदा फ्रांस और भारत दोनों देशों की सरकारों के बीच सीधा हुआ है इसलिए इसमें दलाली की गुंजाइश नहीं है। पिछले करीब 20 साल से देश ने लड़ाकू विमानों का कोई सौदा नहीं किया था। इस वजह से वायुसेना में युद्धक विमानों की लगातार कमी होती जा रही थी। नतीजतन देश की हवाई सुरक्षा खतरे में पड़ी थी। हालात इतने गंभीर होते जा रहे थे कि उपलब्ध विमानों के बेड़ों की संख्या घटकर 32 के करीब पहुंच गई थी।  युद्धक विमान व हथियारों के ये सौदे इसलिए अहम् हैं, क्योंकि हमारे पड़ोसी दुश्मन देश चीन और पाकिस्तान में युद्धक विमान लगातार बढ़ रहे हैं। इन दोनों देशों की वायु-शक्ति की तुलना में हमारे पास कम से कम 756 युद्धक विमान होने चाहिएं। सेना में विमान, हथियार और रक्षा उपकरणों की कमी की चिन्ता संसद की रक्षा संबंधी स्थायी संसदीय समिति और नियंत्रक एवं महानिरीक्षक की रिपोर्टें भी जताती रही हैं। संसदीय समिति ने तो यहां तक कहा था कि लड़ाकू जहाज़ी बेड़ों की संख्या में इतनी कमी पहले कभी नहीं देखी गई। यह स्थिति सैनिकों का मनोबल गिराने वाली थी। अपाचे का सौदा हाइब्रिड है। इस हेलीकॉप्टर में हथियार, राडार और इलेक्ट्रोनिक युद्ध उपकरण लगे हुए हैं। पिछले एक दशक के दौरान अमरीकी कम्पनियों ने तकरीबन 10 अरब डॉलर मूल्य के रक्षा सौदे भारत से किए हैं। इनमें पी-81 नौवहन टोही विमान, सी-130, जे सुपर, हरक्यूलियस और सी-17 ग्लोबमास्टर-3 जैसे विमानों की खरीद शामिल हैं। दुश्मन के राडार पर इसकी छवि दिखाई नहीं देती। इसके संवेदी यंत्र आधुनिक हैं और इसकी मिसाइलें, दिखाई दे रहे दृश्य से भी आगे तक प्रहार करने की क्षमता रखती हैं। इसकी अधिकतम गति 315 किमी प्रति घंटा है जबकि समुद्र में यही गति 240 किमी प्रति घंटा रह जाती है। यह 55 सैनिक और 12,700 किलोग्राम वजन ढो सकता है। कारगिल जैसे ऊंचाई वाली चोटियों पर भी यह हेलीकॉप्टर पहुंच सकता है। गालवन की चोटियों पर भी यह आसानी से पहुंच जाएगा। अपाचे और चिनूक हेलिकॉप्टरों का उपयोग अफगानिस्तान और ईराक जैसे सैन्य अभियानों में बेमिसाल रहा है। बहरहाल लड़ाकू विमानों एवं हथियारों की आश्चर्यजनक कमी से जूझ रही वायु सेना को ये विमान एवं हथियार  ऑक्सीजन साबित हो रहे हैं, जबकि अभी विमानों की खेपें पूरी नहीं आई हैं। तमाम शंका-कुशंकाओं के बावजूद ये विमान खरीदना इसलिए ज़रूरी थे, क्योंकि हमारे लड़ाकू बेड़े में शामिल ज्यादातर विमान पुराने होने के कारण जर्जर हालत में आ गए थे। अनेक विमानों की उड़ान अवधि समाप्त होने को है और पिछले 20 साल से कोई नया विमान नहीं खरीदा गया है। दरअसल, वर्तमान परिदृश्य में युद्ध और सुरक्षा की प्रकृति बदल रही है। परम्परागत हथियारों के अलावा अब जैविक और रसायनिक हथियारों का भी उपयोग युद्ध में किया जाने लगा है। कोरोना वायरस को चीन द्वारा प्रयोगशाला में निर्मित किया वायरस माना जा रहा है। ऐसे में एकीकृत भावना से राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने मुंह बाये खड़ी चुनौतियों से निपटने में आसानी होगी। कारगिल युद्ध के दौरान सामने आईं कमियों से सीख लेकर तीनों सेनाओं के ऊपर सीडीएस के रूप में रक्षा प्रमुख बिठाए गए हैं। इनका दायित्व राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संस्थागत सुधारों को मजबूत भी करना होगा। तीनों सेनाओं से जो गोपनीय सूचनाएं मिलेंगी, उनका निष्कर्ष निकालकर सैन्य क्षमता व गुणवत्ता बढ़ाई जाएगी।