हिमालयन रैजीमैन्ट की स्थापना की आवश्यकता

समय, परिस्थिति और आवश्यकता मनुष्य, समाज और देश को महत्वपूर्ण निर्णय करने की प्रेरणा और उत्साह देते हैं। व्यक्ति, समाज और सरकार यदि उचित समय पर उचित निर्णय लेते हैं तो उसके दूरगामी परिणाम सबके लिये लाभदायक और उपकारी रहते हैं। जब जब पहाड़ों पर देश की एकता, अखण्डता और सुरक्षा के लिये खतरा अनुभव हुआ, तब तब हिमाचल रैजीमैन्ट को स्थापित करने के लिये आवाज़ उठती रही है परन्तु किन्हीं कारणों से विभिन्न सरकारें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर निर्णय नहीं ले पाईं। वर्तमान में जो परिस्थितियां भारत चीन सीमा एल.ए.सी. पर पैदा हुई हैं, उन्हें देखते हुये फिर इस रैजीमैन्ट के महत्व का एहसास व आवश्यकता हर व्यक्ति को जो पूरे देश को सुरक्षित व अखंड रखना चाहता है, महसूस होने लगी है।समय और परिस्थितियों की विडम्बना देखिये, कि पहले कभी कहा जाता था और पढ़ाया भी जाता था कि जब तक उत्तर में हिमालय पर्वत और दक्षिण में हिन्द महासागर है, तब तक उत्तर और दक्षिण की हमारी सीमायें सुरक्षित हैं, परन्तु आज सबसे बड़ा खतरा देश की सीमाओं और सुरक्षा को उत्तर में हिमालय पर्वत पर चीन की तरफ  से है तो दक्षिण में भी हिन्द महासागर की ओर से चीन की ओर से ही सबसे बड़ा खतरा नज़र आ रहा है । हिमालय पर्वत पर लेह-लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के साथ लगती सीमा पर जब जब चीन घुसपैठ करने की कोशिश करता है, तब तब देश को आभास होता है कि इन क्षेत्रों में इतनी ऊंचाई पर बर्फ में, ढलानों पर और नदियों पर खतरनाक भौगोलिक परिस्थितियों में ऐसे क्षेत्रों में युद्ध लड़ना कितना कठिन है। इसके लिए ऐसी रेजीमैन्ट की स्थापना अत्यंत आवश्यक लगती है जो ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले नौजवान लोगों पर आधारित हो जो ऐसी ही कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में पैदा हुए और रहते हैं। ऐसे जवानों पर आधारित सेना की रैजीमैन्ट इन कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में अधिक सहजता के साथ देश की सीमाओं की सुरक्षा कर सकती है।हमने अलग अलग समय में इस मांग को उठाया है । आखिर मराठा रैजीमैन्ट, पंजाब रैजीमैन्ट, सिख रैजीमैन्ट, बिहार रैजीमैन्ट, महार रैजीमैन्ट, कुमायूं रैजीमैन्ट, गढ़वाल रैजीमैन्ट, डोगरा रैजीमैन्ट, मद्रास रैजीमैन्ट अर्थात विभिन्न राज्यों और वर्गों के नाम पर रैजीमैन्ट्स स्थापित की गई हैं। हिमाचल जो सैनिकों और अधिकारियों की नर्सरी माना जाता है, यहां के वीर हर युद्व में, आतंकवाद की घटना में देश की एकता और अखण्डता के लिये शहीद होते रहे हैं और देश का प्रथम परमवीर चक्र और अन्य वीरता पुरस्कार तथा कारगिल संघर्ष में चार में से दो परमवीर चक्र प्राप्त करते रहे हैं और ऑप्रेशन विजय में हमारे 52 जवान/अधिकारी शहीद होते हैं तो फिर हिमाचल के नाम पर रैजीमैन्ट क्यों नहीं ?एक समय पर कहा गया कि प्रदेशों के नाम पर रैजीमैन्ट्स न बनाने का नीतिगत निर्णय सरकार ने लिया है । हमारा उत्तर है कि प्रदेश के नाम पर रैजीमैन्ट मत बनाओ, इसका नाम हिमालय पर्वत के नाम पर हिमालयन रैजीमैन्ट रख दो और इसमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तक के सभी हिमालयी राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों के नौजवानों को भर्ती किया जाए। यह एक ऐसी रैजीमैन्ट तैयार होगी जिसके जवानों को पहाड़ पर तैनाती से पहले महीना भर लेह आदि में ले जा कर नई जलवायु का अभ्यस्त बनाने की आवष्यकता नहीं होगी क्योंकि वे ऐसे ही भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम में रहने के अभ्यस्त होते हैं।एक और मांग बार-बार उठाई जाती रही है कि डोगरा रैजीमैन्ट का जो सैन्टर रामगढ़ में रखा गया है, वह बहुत दूर है। इस कारण से पूर्व सैनिक और युद्ध विधवायें (वीरांगनायें) जो लाभ रैजीमैन्ट सैन्टर से मिलता है, उसे लेने में भी असमर्थ रहती हैं । सैन्टर दूर होने के कारण हिमालय की तरफ  सीमा पर पोस्ंिटग के समय भी सैनिकों को बहुत दूर से जाना पड़ता है । मेरा सुझाव है कि इस सैन्टर को रामगढ़ से बदल कर हिमाचल प्रदेश में उचित स्थान पर स्थापित करना ठीक रहेगा। भारत सरकार श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की सुरक्षा और अखण्डता के लिये आवश्यक पग उठा रही है चाहे युद्व सामग्री, अस्त्र-शस्त्र, बुनियादी ढांचा, सड़कों, पुलों आदि का निर्माण हो, रेलवे लाइनें, हैलीपैड और हवाई अड्डे आदि बनाने की बात हो, यह सरकार पूरी तरह गम्भीर है । इसलिये हिमालय के साथ लगती सीमा की सुरक्षा में देश को आत्म-निर्भर बनाने के लिये हिमालयन रैजीमैन्ट की स्थापना के लिए भी गम्भीरता से विचार करके इसकी  स्थापना करके देश की उत्तरी सीमा की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। आओ, आत्म-निर्भर भारत के लिये इस कदम की भी तैयारी करें ।