अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाने के पंगु प्रयास

आज विश्व को कोरोना का कहर झेलते हुए छ: महीने हो गये। ऐसी खतरनाक संक्रामक बीमारी है यह कि देखते ही देखते दुनिया की एक करोड़ आबादी इससे संक्रमित हो गई है और दुनिया के 195 देशों में इसके विषाणु अपना कहर बरपा रहे हैं। आज दुनिया के तमाम बड़े देश महामंदी की गिरफ्त में हैं, बेकारी की दर आकाश छू रही है और कोरोना प्रकोप का मुकाबला करने के लिए इस समय भारी भरकम आर्थिक सहायता के साथ एक सौ दो बड़े चिकित्सा वैज्ञानिक संस्थान इसका कोई सटीक उपचार अथवा टीका ढूंढ रहे हैं। कहा जा रहा है कि चार संस्थान अपनी इस तलाश के अन्तिम प्रयोग चरण पर हैं लोकिन फिर भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सही उपचार या औषधि के मण्डी में आते हुए अभी एक बरस लग जाएगा। भारत की मोदी सरकार ने कोरोना की राष्ट्रव्यापी आपदा का मुकाबला करने के लिए मार्च के अन्त में पूरे देश के लिए पूर्णबंदी की घोषणा कर दी थी। तब 135 करोड़ की इतनी बड़ी आबादी के लिए बिना पूर्व सूचना के पूर्णबंदी लागू कर देने को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक साहस पूर्ण फैसला घोषित किया था। चार चरण पूर्णबंदी के निकल गए लेकिन इस बीच देश की अर्थव्यवस्था की चूलें हिल गयीं। देश के चौदह बड़े आर्थिक क्षेत्रों में से ग्यारह क्षेत्र अधोगति दिखाने लगे। देश का उद्योग और व्यवसाय क्षेत्र आर्थिक पक्षाघात का शिकार हो गया। देश का बुनियादी आर्थिक क्षेत्र गिरती हुई विकास दर दिखाने लगा। अपने आपको कृषक देश कहलाने वाले भारत में तो पहले ही कृषि का बोलोराम था। संस्थागत आर्थिक ढांचा कुछ इस प्रकार पिछड़ा हुआ था कि देश की आधी आबादी कृषि क्षेत्र में सक्रिय होने के बावजूद देश की सकल घरेलू आय का बीस प्रतिशत भी कमा नहीं पाती थी। इतने बरसों तक खेतीबाड़ी भारतीयों के लिए जीने का ढंग रही, व्यवसाय नहीं। लेकिन अब आलम यह है कि यह चार प्रतिशत आर्थिक विकास दर के लक्ष्य को भी प्राप्त नहीं कर पा रही। पंजाब (सन् छियासठ से पहले का) इसमें हरियाणा भी गिना जाता था, देश की कृषि की खड़ग भुजा था लेकिन यहां आर्थिक विकास दर और निबल निवेश की दर शून्य मिली। अब भी कोरोना प्रकोप से पूर्व यह कठिनाई से दो प्रतिशत आर्थिक विकास दर को स्पर्श कर पा रही थी। देश की आधी आबादी कार्ययोग्य युवकों की थी, लेकिन ये कृषि की रंग-बिरंगी क्रांतियों, पहले हरित, फिर श्वेत और अब नीली के धराशायी हो जाने के बाद अब कृषि के जीने के ढंग से उखड़ गए थे। इसे मात्र एक अलाभप्रद धंधा मान रहे थे। इसीलिए वैकल्पिक रोज़गार की तलाश में इनका महापलायन गांवों से नगरों की ओर, और फिर वहां मंदी की चपेड़ से असफल होने के बाद कबूतरबाजों की गुलेल पर बैठ कर विदेशों की ओर हो गया था। कोरोना काल की पूर्णबंदी के इस चार चरणों में यही वर्ग सबसे पहले जड़विहीन हुआ। कोरोना और मंदी से पीड़ित प्रवासी भारतीयों की वापसी पहले विदेशों से भारत और फिर नगरों से वापस अपने गांवों की ओर हुई। देश की खेतीबाड़ी, उद्योग धंधे, थोक-परचून व्यवसाय, पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र कुछ इस प्रकार अपनी पटरी से उतरा। सेवा क्षेत्र कुछ इस प्रकार धराशायी हुआ, थोक और परचून व्यापारियों का काम करने का ठिकाना न रहा। चरमराती हुई अर्थव्यवस्था पूरी पटरी से उतर गई। संक्रामक रोग से होने वाली मृत्यु के भय पर भुखमरी का भय हावी हो गया। जड़ों से उखड़े हुए श्रमिक कहां जाते? पैदल से लेकर सरकारी स्पैशल ट्रेनों की सहायता से ये कम से कम दस करोड़ उखड़े हुए लोग अपने कार्य नगरों से गांव घरों की ओर लौटे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के बार-बार चेताने के बावजूद वहां उनके लिए सरकार ने कोई वैकल्पिक रोज़गार के आधारभूत ढांचे की व्यवस्था नहीं की थी। कृषि आधारित छोटे-बड़े उद्योगों का ढांचा खड़ा करने का कोई नियोजन नहीं था। बात जब यहां भी बिगड़ती नज़र आई तो सरकार ने पचास हज़ार करोड़ रुपए के निवेश से इन्हें मनरेगा जैसे वर्ष में डेढ़ सौ दिन की एक सौ बीस रुपए की दिहाड़ी योजना से पेट भरने का प्रयास किया। योजना प्रभावी नहीं हो रही। खाली हाथ मज़दूर अपने गांवों की ओर गए थे। अब खाली हाथ भूखे पेट उनकी वापसी शुरू हो गई है। वे न घर के रहे न घाट के। नई खबरों के अनुसार उनकी स्पैशल ट्रेनें उन्हें ही भरकर शहरों में वापस ला रही हैं, क्योंकि सरकार ने घोषणा कर दी कि अब अर्थतन्त्र पटरी पर लाने के लिए उद्योग धंधे, व्यवसाय, सेवा, पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र खोला जा रहा है। लेकिन सही नियोजन का यह आलम है कि अर्थतन्त्र की गतिशीलता की ज़ामिन रेलें  बारह अगस्त को ही सामान्य रूप से चलेंगी। कुछ न समझे खुदा करे कोई के अन्दाज़ में सड़क परिवहन को जीवनदान देने के स्थान पर पैट्रोल और डीज़ल की कीमतों में तर्कहीन वृद्धि करके उसे अस्सी रुपए लिटर से ऊपर पहुंचा दिया गया है। अब अगर अर्थतन्त्र को पटरी पर डालने के यही पंगु प्रयास होंगे, तो काम चलाने के लिए न पूर्ति चैनल बहाल होगा और न ही मांग चैनल। जो काम धंधा खुला है, वह अपनी क्षमता के चालीस से पचास प्रतिशत पर भी काम नहीं कर पा रहा। सरकार मध्यम और लघु उद्योगों के विकास की बात कर रही है, और यहां आलम यह है कि लागत बढ़ने और मांग के रूठने की वजह से पचास प्रतिशत से अधिक मध्यम और लघु उद्योग बंद हो गए हैं या अपना काम बदलने की सोच रहे हैं। उधर देश में कोरोना वायरस के प्रकोप का यह हाल है कि उसके संक्रमित मरीज़ों की संख्या पांच लाख से ऊपर हो गई है और प्रतिदिन इसके संक्रमण की रिकार्ड वृद्धि देख कर राज्य सरकारें पुन: लॉकडाउन की धमकी दे रही हैं।  भला ऐसे आशंका ग्रस्त माहौल में देश का अर्थतन्त्र पटरी पर आयेगा तो कैसे?