प्रधानमंत्री के लद्दाख दौरे का महत्त्व

18 दिन पूर्व गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के शहीद होने की जो घटना घटित हुई थी, उसके बाद अचानक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लेह-लद्दाख का दौरा कई पक्षों से बेहद महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। इस दौरान मोदी 11000 फुट की ऊंचाई पर स्थित नीमू गए, जिसको बेहद कठिन स्थान माना जाता है। इससे पूर्व भारत द्वारा पूर्वी लद्दाख की अपनी सीमाओं पर बड़ी संख्या में सैनिक और हथियार तैनात किए थे, क्योंकि दूसरी तरफ चीन ने भी बड़ी सैनिक तैयारी की हुई है। परन्तु इसके बावजूद भारत ने यह भी प्रभाव दिया है कि वह चीन के साथ चल रही कशमकश में किसी भी तरह धारण किए गए अपने रवैये से पीछे नहीं हटेगा। गत दिवस भारत ने रूस से 33 लड़ाकू विमान खरीदने का सौदा किया है। फ्रांस से 6 ऱाफेल विमानों की पहली खेप 27 जुलाई को आ रही है। भारत द्वारा लम्बी दूरी तक मार करने वाली क्रूज़ मिसाइलें, रॉकेट लांचर आदि भी सीमाओं पर तैनात करने शुरू कर दिए गए हैं। पिछले लगभग 4 सप्ताह से दोनों देशों के सैनिक कमांडरों में लम्बी वार्तालाप भी हुई है परन्तु मिले समाचारों के अनुसार उनसे इसलिए निराशा होती महसूस हो रही है क्योंकि इनका कोई सार्थक परिणाम निकलता नज़र नहीं आ रहा। भारत के इलाकों में चीन लगातार अपना  अधिकार जताता आ रहा है। दूसरी तरफ आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन के विस्तारवादी रवैये के खिलाफ बड़ी सीमा तक प्रभाव बना हुआ नज़र आता है। अमरीका ने तो स्पष्ट तौर पर चीन की नीतियों की आलोचना भी की है और भारत के साथ उसके सीमांत झगड़े में उसको दोषी करार दिया है। उत्तरी चीन सागर में जापान से उसका झगड़ा है। अब जापान भी खुल कर भारत के पक्ष में आ गया है। इसी तरह दक्षिण चीन सागर में वियतनाम और चीन के कई अन्य पड़ोसी देश भी उसकी विस्तारवादी नीतियों से बुरी तरह तंग आ चुके हैं। प्रधानमंत्री ने लद्दाख में जाकर सैनिक जवानों के समक्ष जो  भाषण दिया है, वह सैनिकों का हौसला बढ़ाने वाला है। सिंध दरिया के किनारे पर झंजसकर पहाड़ी की चोटियों के समक्ष सम्बोधित करते हुए मोदी ने कहा कि अगर भारत दोस्ती निभाना जानता है तो वह दुश्मन को करारा जवाब देने में भी सक्षम है। उन्होंने भावपूर्ण बात करते हुए कहा कि विस्तारवाद का युग अब खत्म हो गया है। अब विकास का युग है। इतिहास में भी विस्तारवादी शक्तियों की हार हुई है या उनको निराश होकर वापिस लौटना पड़ा है और इससे भी आगे उन्होंने बेहद ठोस बात यह कही है कि जो कमज़ोर हैं, वह शांति की शुरुआत नहीं कर सकते। शांति के लिए बहादुरी पहली शर्त होती है। इतिहास में भारतीय सैनिकों ने विश्व भर में शांति की स्थापना के लिए बड़े यत्न किए हैं और मानवता की भलाई हेतु अच्छे काम शुरू कर रखे हैं। उन्होंने गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प के हवाले से जवानों के हौसले और दृढ़ता की प्रशंसा करते हुए कहा कि समूचा देश उनके साथ खड़ा है।प्रधानमंत्री का यह दौरा दर्शाता है कि सीमाओं पर स्थिति बेहद नाज़ुक है परन्तु भारतीय सेना में दुश्मन का मुकाबला करने के लिए पूरी दृढ़ता है। सरकार में अब यह भी भावना बनती जा रही है कि देश अब चिरकाल से शत्रुता निभा रहे चीन की धमकियों और कार्रवाइयों के मद्देनज़र किसी भी तरह नहीं झुकेगा। आज ऐसी ही भावना देश भर के लोगों में भी पाई जा रही है। विश्व भर और देश में बना ऐसा माहौल चीन के हौसले को पस्त करने में समर्थ होगा। 

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द