राहुल की मोदी सरकार पर आक्रामकता के पीछे सत्ता के लिए टूटता सब्र तो नहीं ?

गत दिनों कांग्रेस की कार्यसमिति की वीडियों कांफ्रैंसिंग हुई जिसमें एक बात ऐसी सुनी गई जो हमें भी पसंद नहीं आई। राहुल गांधी ने कहा कि यह कांग्रेस की कार्यसमिति नहीं कायर समिति हैं और दलील यह दी गई कि राहुल गांधी  अकेले ही मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ बोल रहे हैं जबकि कार्यसमिति के अन्य सदस्य ‘एक चुप सौ सुख’ की कहावत पर चल रहे हैं। कांग्रेस के बहुत से लोग यह समझते हैं कि अभी चुनाव चार वर्ष दूर हैं। अभी से उछल कूद करने का कुछ लाभ नहीं, परन्तु ऐसी बात नहीं है। कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि सोनिया जी की सेना पूरी तरह थकी हुई नज़र आ रही है क्योंकि जन साधारण के सामने उनका कोई महत्व ही नहीं। परिवार के तीन लोग ही मीडिया और जनता के सामने आ रहे हैं, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा। भले ही कांग्रेस सत्ता से दूर है परन्तु इसने 2004 से लेकर 2014 तक दस वर्ष देश पर शासन तो किया। सोनिया जी से पूर्व नेहरू जी और इंदिरा जी ने इस देश को अपनी नीति के अनुसार चलने का दायित्व निभाया बेशक मनशा अच्छी रही हो परन्तु दिशा से भटके हुए लोग कभी भी मंज़िल तक सीधे नहीं पहुंच सके। भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने दूसरी पारी के पहले वर्ष में ही ताबड़तोड़ कई बड़े फैसले ऐसे लिए जिन पर देश की जनता वर्षों से उम्मीद लगाए बैठी है। कांग्रेस सत्ता से दूर रहकर विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जानती ही नहीं। कांग्रेस में राहुल गांधी के अतिरिक्त दो व्यक्ति ऐसे हैं, एक मोती लाल वोहरा और दूसरे अहमद पटेल। एक सौ चौंत्तीस साल पुरानी कांग्रेस यदि सन् 2019 में  नाकाम रही तो इसकी जिम्मेदारी भी सोनिया जी को स्वीकार करनी चाहिए। हमें याद है कि सन् 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार संख्या बल के सामने असफल हो गई तब सोनिया गांधी 272 सदस्यों के पत्र लेकर राष्ट्रपति जी से सरकार का निमत्रंण लेने के लिए राष्ट्रपति भवन की ओर चल दी तभी उन्हें सूचित किया गया कि मुलायम सिंह की सपा पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के तीन दिग्गज शरद पवार, पी.ए, संगमा और तारिक अनवर कांग्रेस छोड़ गए यह कह कर कि केवल भारतीय मूल का व्यक्ति ही देश का प्रधानमंत्री बनना चाहिए। सत्ता हथियाने की सोनिया गांधी की कोशिश असफल हो गई परन्तु जब तक सन् 2004 में कांगे्रस को पुन: सत्ता में आने का अवसर मिला तब उन्होंने डा. मनमोहन सिंह को सत्ता सौंप दी क्योंकि विदेशी मूल की होने के कारण वह किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती थीं। एक कांग्रेस अधिवेशन में राहुल गांधी ने मंच पर आकर कहा कि सोनिया जी ने उसे बताया कि सत्ता ज़हर है इसके पीछे एक पत्रकार ने यह टिप्पणी की कि सोनिया जी राहुल को किसी तरह सत्ता में नहीं लाना चाहती थी ताकि उनका अपना महत्व कम न हो जाए। अब देश के हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी के प्रति जनता में एक विश्वास बहुत गहरा बैठ चुका है कि यह व्यक्ति राष्ट्र के लिए बहुत कुछ करना चाहता है और कर भी रहा है। इसलिए दूसरी पारी में उसे पहले से भी अधिक मतों से विजय श्री प्राप्त हुई। कांग्रेस को गरीबी हटाओ का नारा सफलता देता रहा। दुर्भाग्य से वह गरीबी हटाने का इंतज़ाम योजनाबद्ध न कर सके। राहुल गांधी जब नरेन्द्र मोदी को ‘सरेंडर मोदी’ कहता है तो यह जन-साधारण को अच्छा नहीं लगता बिलकुल वैसे ही जैसे चुनाव से पहले राफेल के मामले में चौकीदार चोर हैं कहना जनता को सुहाया नहीं। किसी ने कहा भी कि राहुल गांधी को बात करने का सलीका आना चाहिए। गलवान घाटी पर भारतीय सेना और चीनी सेना में झगड़ा हुआ जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए और पचास के करीब चीनी फौजी भी मारे गए। इस पर प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय नेताओं से वीडियो कांफ्रैंस के माध्यम से बात की जिस में बीस दलों ने भाग लिया परन्तु दो दल ऐसे थे जिन्होंने प्रधानमंत्री की चीन के प्रति सोच का विरोध किया, एक वामपंथी दल और दूसरी कांग्रेस। वामपंथी दलों की मजबूरी समझ आती है परन्तु कांग्रेस बात बे बात तिल का ताड़, राई का पहाड़ बनाती दिखाई देती है। राहुल गांधी बार-बार यही प्रश्न दोहराए जाते हैं कि चीन भारतीय क्षेत्र में आया या भारतीय सैनिक चीनी क्षेत्र में गए? दोनों में से कोई भी प्रश्न ठीक नहीं था। जो सैन्य कमांडरों में तय हुआ कि गलवान घाटी से चीनी सैनिक हट जाएंगे और यह घाटी का वह क्षेत्र है जिस पर अभी तक भारत और चीन के मध्य कोई निर्णय नहीं हो सका। इसलिए कांग्रेस को ऐसे प्रश्न करके अपनी सेना को हतोस्ताहित नहीं करना चाहिए। सरकार ने देश की नीति और नीयत सर्वदलीय बैठक में ज़ाहिर कर दी थी। अब प्रश्न यह उठता है कि बार-बार गांधी परिवार मोदी जी पर प्रश्नचिन्ह क्यों लगा रहा है? सत्ता के बगैर कांग्रेस को कुछ सूझता नहीं। जल बिन मछली की तरह तड़प रही है। वह भूल गई है कि गलवान घाटी में भारत के 20 जवानों की शहादत से वहां की मिट्टी रक्त रंजित हो गई है। ऐसे अवसर पर चीन को यह दिखाना चाहिए कि पूरा देश भारतीय सेना और सरकार के पीछे खड़ा है। हमें उम्मीद थी कि कांग्रेस कार्य समिति एक राष्ट्रीय दल के साथ-साथ बड़े विपक्षी दल होने की भूमिका अच्छे तरीके से निभाएगी परन्तु ऐसा हुआ  नहीं।