संग्रामी लहर बनाम कोरोना का कहर

कोरोना ने दुनिया भर के लोगों के लिए क्या-क्या मुसीबतें पैदा कर दी हैं। हर नये दिन मिल रहे आंकड़े बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर है। छपाई तथा इलैक्ट्रानिक मीडिया अपने -अपने ढंग से लोगों को जागरूक कर रहा है पर जिस तरह रैवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के राजनीतिक मैगज़ीन ‘संग्रामी लहर’ के अप्रैल-जून के अंक में मंगत राम पासला, हरकंवल सिंह, सतनाम चाना और सरबजीत गिल ने इस मुद्दे के बारे अच्छी जानकारी और ज़रूरी पहुंच पेश की  है, किसी भी अन्य स्थान पर इकट्ठा नहीं मिलती। अपने द्वारा कुछ भी कहे बिना इन लेखों को कुछ अंशों का क्रम दे कर पंजाबी पाठकों के लिए पेश करने की छूट लेना चाहता हूं। कोरोना के कारण पैदा हुई वैश्विक महामारी ने आज दुनिया भर में भयंकर दहशत फैलाई हुई है। पिछले वर्ष दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में चीन के वुहान शहर सें शुरू हुई कोविड-19 नामक इस बीमारी ने दिनों में ही लगभग समूचे संसार को अपनी चपेट में ले लिया है। इस महामारी ने दुनिया के सामने कुछ बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथ्य उकेर कर पेश कर दिए हैं। सबसे उभरा मुद्दा पूंजीवादी राज्य प्रबंध की, प्राकृतिक आपदा के समय जनसमूह ऐसी महामारियों से बचाने में असमर्थ है। सम्राज्य अमरीका और इसके इतिहादी जो विज्ञान की नयी खोजों से मानवता को सैंकड़े बार घातक हथियारों से तबाह करने की क्षमता रखते हैं, वे प्रकृति की इस महामारी के सामने ताश के पत्तों की तरह हताश हो गए हैं। लाखों लोगों की मौतों के कोरोना ग्रस्त होने से ये सभी महाशक्तियां इतनी पेरशान हो गई हैं कि झूठी दोषारोपण और बीमारी से निपटने हेतु मूर्खतापूर्ण तथा बचकाना किस्म के उपचार पेश करके मज़ाक के पात्र बन रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में लाखों डाक्टर, नर्सें तथा दूसरे स्टाफ को लाभ के लालच के कारण उनके बचाव ज़रूरी सामान भी नहीं दिया जा रहा, जिसका प्रयोग करके वे मरीज़ों का इलाज करते और अपनी ज़िन्दगी बचा सकते। विश्व भर में स्वास्थ्य सेवाएं  निभा रहे अनेक कर्मचारियों की इस कमी के कारण मौतें हो चुकी हैं।पूंजीपति वर्ग, जिसने दशकों से श्रमिक लोगों का शोषण करके पूंजी के अम्बार खड़े किये, सरकारी आदेशों के अनुसार की गई तालाबन्दी के दौरान मशीन का पहिया कुछ दिनों के लिए खड़ा हो जाने से श्रमिकों को दो वक्त की रोटी देने से ही  मुकर गए। जिन अमीरों के बच्चों को प्रवासी महिलाएं खेलाती नहीं थकतीं थी, उनको गोद में उठा कर भूखे पेट बच्चों सहित रोते-चिल्लाते हुए को धक्के मार कर घरों से बाहर निकाल दिया गया। अन्तर्राज्यीय श्रमिक अपने सिरों पर फटे कपड़ों की गठरियां और गोद में नन्हे बच्चों को उठा कर हज़ारों किलोमीटर के स़फर को तय करते हुये पैदल चले जा रहे हैं।इसके विपरीत लोग, चीन, वियतनाम, क्यूबा, उत्तरी कोरिया आदि समाजवादी देशों ने कोरोना महामारी को जिस सीमा तक रोक कर अपने लोगों के प्रति फज़र् निभाया है, उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि ज्यादातर कमियां और मज़बूरियों के होते हुए भी समाजवादी देशों में मरीज़ों की संख्या भी कम हो रही है और वहां मृत्यु दर भी। कारण यह है कि उन देशों में दी जा रही स्वास्थ्य सुविधाएं लाभ के लिए नहीं, अपितु मानवता की भलाई हेतु हैं। लोगों की संयुक्त कमेटियां बना कर उनको बीमार या संदेहास्पद मरीज़ों को एकांतवास में रखने का काम दिया गया। लोगों की सुचेत भागीदारी से बीमारी को काबू में रखने में मदद ली गई। मुकाबला करने के लिए भारत में कोरोना से विकसित देशों से अलग कदम उठाये जाने की ज़रूरत थी।  तालाबन्दी की घोषणा किए जाने से लगभग दो माह पूर्व विश्व स्वास्थ्य संस्था द्वारा कोरोना वायरस की दस्तक हो चुकी थी और यह भी स्पष्ट था कि इसकी कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। देश को आगाह करने के लिए तालाबन्दी हेतु देश-वासियों को तैयार करने के लिए यह काफी समय था। घरों को जाने वालों के लिए आवागमन के साधन थे और अन्न के भंडार थे। इसके स्थान पर क्या  किया  गया। चिन्ताजनक मनों में उत्साह पैदा करने के लिए थालियां बजाना या दीये, मोमबत्तियां तथा टार्चें जगा कर समय पूरा करने का हास्यस्पद खेल चलता रहा। डाक्टर तथा सहायक स्टाफ अपना ज़रूरी सामान मांगते रहे और मरीज अस्पतालों में तड़फते रहे, क्योंकि स्टाफ के पास अपनी सुरक्षा  तथा मरीज़ों की संभाल के लिए पूरा सामान ही नहीं होता था।  यहां भी पूंजीवादी कला अपनाई, जहां हर सामान बाज़ारी होता है। चाहे वे कुछ लोग ही हों, उन्होंने संकट के दौर में भी पैसे कमाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनके विरुध कोई सार्थक कार्यवाई नहीं की गई। अभी भी पहले की अपेक्षा ऐसा सामान महंगे भाव पर मिल रहा है।स्वास्थ्य सुविधाएं कोई लाभ कमाने वाला धंधा नहीं। देश के शासकों को यदि स्वास्थ्य, शिक्षा, रोटी, कपड़ा और मकान जैसी आधारभूत सुविधाएं नहीं देनी तो क्या हम अपने शासकों को झंडी वाली कार में घूमने के लिए और वेतन तथा पैंशनें लेने के लिए ही चुनते हैं? संकट की इस घड़ी में बेहद प्रशंसनीय कार्य समाज सेवी संस्थाओं, वामपंथी राजनीतिक दलों, सार्वजनिक संगठनों तथा स्वास्थ्य कर्मियों ने किया। उन्होंने कोरोना वायरस के डर को ताक पर रख कर भूखे, प्यासे  रोगियों की बड़ी सेवा की। उन्होंने यह साबित कर दिया कि कोरोना के साथ लड़ने के लिए लोग अपने-आप कहीं अच्छा प्रबंध करने में सक्षम हैं। 

अंतिका
(आत्मा राम रंजन)
चंगा घट ते मंदा बहुता, करदे देश के रहिबर,
किरती खातर बंद खज़ाने दिल के ना सचिआरे।
दिल विच सांभी बैठे हन ओह धुखदी अगन बधेरी, 
ठोकर खांदे, चीसां सहिंदे, भटकन करमां मारे। 
मंज़िल तीकण पहुंचणगे कुझ, गिण मीलां दे पत्थर
थक्के हारे कईयां रंजन, होना रब्ब नू प्यारे।