बेलगाम होती महंगाई

कोरोना वायरस ने वैसे तो देश और समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है, परन्तु आवश्यक उपभोग्य वस्तुओं और खास तौर पर खाद्यान्न पदार्थों की कीमतों में वृद्धि और काला-बाज़ारी का सिलसिला एक बार जो चला, तो आज तक पूर्ववत् जारी है। कीमतों में वृद्धि के इस रुझान के प्रति लॉक-डाऊन का तर्क कुछ हद तक सही भी था क्योंकि आवाजाही और आवागमन के पूर्णतया बन्द हो जाने के कारण वस्तुओं की कमी का संकट उपजना बहुत स्वाभाविक था। इस कारण जम कर काला-बाज़ारी भी हुई और मूल्यों में वृद्धि भी होती रही, परन्तु लॉक-डाऊन खुलने के बाद भी बाज़ार में यह क्रम पूर्ववत जारी रहा। इससे अन्य क्षेत्रों के अतिरिक्त फलों, सब्ज़ियों और दालों की कीमतों में हुई वृद्धि अप्रत्याशित रही। विशेषज्ञों के अनुसार जून मास में घोषित हुए अन-लॉक-1 के अन्तर्गत इन पदार्थों की महंगाई में 15 से 20 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई। इस कारण न केवल मूल्य-वृद्धि हुई, अपितु वस्तुओं की कमी का संकट भी पैदा हुआ है।वैसे तो पूरे देश में यह स्थिति बनी है, परन्तु पंजाब में इस की गम्भीरता और भयावहता अधिक महसूस की गई है। पंजाब में फल और सब्ज़ियों के दाम एक अवसर पर आकाश को छूने लगे थे। सब्ज़ियों में प्याज़ और टमाटर हमेशा लोगों को रुलाते रहे हैं। लॉक-डाऊन के दौरान प्रदेश में जहां प्याज़ की कमी और इस कारण होने वाली मूल्य-वृद्धि खटकती रही, वहीं अन-लॉक के बाद से टमाटर निरन्तर ऊंचाई की ओर बढ़े हैं।  आज भी परचून बाज़ार में 20-50 रुपये किलो के भाव मिलने वाला टमाटर दो-गुणा से भी अधिक कीमत पर बिक रहा है। समस्या यह भी है कि जिन फल और सब्ज़ियों के दाम बढ़ते हैं, मार्किट में उनकी अप्राकृतिक कमी भी पैदा कर दी जाती है। समाज के ़गरीब आदमी के लिए सहज-उपलब्ध बना रहा फल आम भी दो से तीन गुणा तक महंगा बिक गया और इन दिनों आम की कमी भी बाज़ार में बनी रही। यही स्थिति दालों की कीमत और उपलब्धता के धरातल पर भी रही। परचून बाज़ार में दालों की कीमत एकाएक बढ़ गई। लॉक-डाऊन और सामाजिक दूरी के नियमों के पालन की भावना के दृष्टिगत आम लोग वैसे भी भयभीत हैं, परन्तु थोक और परचून व्यापारियों ने काला-बाज़ारी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रसोई गैस और व्यवसायिक गैस-सिलेंडर की कीमतों में सरकारों द्वारा यदा-कदा की जाती रहने वाली मूल्य-वृद्धि ने भी प्रदेश में महंगाई की आग को हवा दी है। चीनी, चावल और खाद्य तेलों की मूल्य-वृद्धि ने भी आम आदमी के घरेलू और रसोई बजट के संतुलन को बिगाड़ा है। बाज़ार से जानकार सूत्रों के अनुसार नि:सन्देह पिछले मास के दूसरे उत्तरार्ध में पैट्रोल और डीज़ल की कीमतों में निरन्तर दो सप्ताह तक जारी रहे मूल्य-वृद्धि के रुझान ने इस महंगाई के लिए ज़मीन तैयार की, परन्तु फल-सब्ज़ी के कारोबार से जुड़े लोगों का दावा है कि मौजूदा महंगाई और मूल्य-वृद्धि के लिए जमाखोरी की वृत्ति अधिक उत्तरदायी है। इन लोगों के अनुसार जमाखोरी की यह वृत्ति थोक और परचून दोनों स्तरों पर दिखाई दी है। दूसरी ओर व्यापारी वर्ग का अपना तर्क है कि लॉक-डाऊन नियमों का पालन कराने के दौरान प्रशासन का रवैया कभी उदार नहीं रहा। ऐसे में उनकी समस्याएं और कठिनाइयां दोनों बढ़ी हैं। इसके साथ ही उनके कारोबार की लागत और अन्य खर्चों में भी इज़ाफा हुआ है। लिहाज़ा वस्तुओं के दाम बढ़ना एक स्वाभाविक क्रिया बन जाता है। व्यापारियों के अनुसार सड़क-परिवहन और रेल-मार्गों से वस्तुओं की आवाजाही प्रभावित होना भी मूल्य-वृद्धि और वस्तुओं की कमी होने का कारण बन जाता है। पिछले तीन मास की निरन्तर तालाबन्दी ने सामान की आवाजाही को विपरीत रूप से प्रभावित किया है, इस तथ्य में कोई दो राय नहीं हो सकतीं। हम समझते हैं कि महंगाई एवं मूल्य वृद्धि  के लिए व्यापारियों और विशेषज्ञों की ओर से दिये गये सभी तर्क अपने-अपने स्थान पर सही हो सकते हैं, परन्तु आम आदमी की कमर तो इससे दुहरी हुई है। लॉक-डाऊन के कारण एक तो काम-धंधे बंद हुए हैं। रोज़गार के अवसर कम हुए हैं और नौकरियां भी सीमित हुई हैं। आम आदमी की आय का धरातल भी काफी कम हुआ है। प्रत्येक छोटे-बड़े कारोबार को आघात पहुंचा है। तिस पर आवश्यक उपभोग्य वस्तुओं की बेलगाम होती महंगाई ने आम आदमी को विपरीत रूप से प्रभावित किया है। ऐसे में सरकारों का यह दायित्व बन जाता है कि आम आदमी के बजट के अनुरूप उन्हें उनके उपभोग एवं ज़रूरत की तमाम आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराने का प्रयास करें। आम आदमी की गर्ज उसे रोटी-रोज़ी, स्वास्थ्य सुविधाएं और उसके बच्चों को ज़रूरी शिक्षा उपलब्ध कराये जाने से होती है। उसे सत्ता-व्यवस्था से कुछ लेना-देना नहीं। सरकारें और सत्ता-व्यवस्था जितनी शीघ्र इस बात को समझेंगी, उतना ही समाज में सद्भावना और सदाशमता बनाये रखने के लिए अच्छा होगा।