सही नहीं है पंजाब की स्कूली शिक्षा की दिशा

(कल से आगे)
परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्पोरेट विकास मॉडल के कई दशकों तक लागू रहने के बाद जो परिणाम सामने आए हैं, उनसे यह स्पष्ट हो गया है कि इसने गरीबों और अमीरों के मध्य दरार बेहद बढ़ा दी है। दुनिया की सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा मुट्ठी भर लोगों के हाथों में चला गया है और विश्व के लोगों के विशाल हिस्से गरीबी की दलदल में धकेल दिए गए हैं। अन्तर्राष्ट्रीय खोज एजेंसी ‘औकसफाम’ प्रत्येक वर्ष रिपोर्ट जारी करके अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग देशों में इस विकास मॉडल से बढ़ रही असमानताओं, तथ्यों और आंकड़ों सहित रिपोर्ट जारी करती है, जिससे भारत संबंधी भी यह जानकारी मिलती है कि यहां कार्पोरेट विकास मॉडल का आम लोगों को कोई अधिक लाभ नहीं हो सका, अपितु इससे आर्थिक असमानताओं में वृद्धि हुई है। धरती की बढ़ रही गर्मी और प्रदूषण संबंधी बढ़ी चुनौतियां भी इस विकास मॉडल की देन हैं। इससे भी यह परिणाम निकलता है कि अगर हम अपने देश के लोगों का सामूहिक और संतुलित विकास करना चाहते हैं तो हमें कार्पोरेट विकास मॉडल छोड़ कर अपने देश की ज़रूरतों के अनुसार एक नये जन-पक्षीय और प्रकृति पक्षीय विकास मॉडल का निर्माण करने की ज़रूरत है और ऐसे मॉडल को सफलता से लागू करने हेतु इस विशाल देश के अलग-अलग क्षेत्रों में रहते अलग-अलग लोगों की भाषाओं को शिक्षा, प्रशासन और न्याय के क्षेत्र में लागू करने की ज़रूरत है। इससे लोगों का आत्म-विश्वास बढ़ेगा और उनकी सरकारी कामकाज़ों में हिस्सेदारी बढ़ेगी। प्रशासन में पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार कम होगा। इसलिए अगर हमारे देश के लोगों का सामूहिक विकास किया जाना है तो इसके लिए क्षेत्रीय भाषाएं बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। विदेशी भाषाओं के सहारे तो कुछ लोगों का ही विकास हो सकता है और कुछ लोगों को ही देश-विदेश में बड़ी नौकरियां मिल सकती हैं। देश के भीतर लोगों का सामूहिक विकास उनकी क्षेत्रीय भाषाओं में ही हो सकता है। जिस तरह कि हमने पहले ही कहा था कि हम देश के भीतर और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्पर्क भाषाओं की भूमिका को किसी भी स्तर पर नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। जो लोग देश-विदेश में जाकर रोज़गार हासिल करना चाहते हैं, उनके लिए विदेशी भाषाएं पढ़ने और सीखने के लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था में प्रबंध होने चाहिएं परन्तु विदेशी भाषाएं हमारी पूरी शिक्षा का माध्यम बिल्कुल नहीं होनी चाहिएं। जो लोग अंग्रेज़ी या किसी अन्य विदेशी भाषा सीखने की समर्था नहीं रखते। देश में रह कर कुछ करें और सफल होने के अपने स्वप्न को पूरा करना चाहते हैं, उनको स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा हासिल करने तक के अवसर उनकी अपनी भाषा में ही मिलने चाहिएं।इस संदर्भ में पंजाब के शिक्षा सचिव द्वारा पिछले कितने ही वर्षों से स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में जिस प्रकार के अवैज्ञानिक तुजुर्बे किए जा रहे हैं और जिस तरह पंजाब की स्कूली शिक्षा को राज्य के इतिहास, विरसे, सभ्याचार और पंजाबियों की मातृ भाषा से तोड़ने के सुचेत यत्न किये जा रहे हैं, उसने पंजाब की स्कूली शिक्षा में कोई बड़ा सार्थक परिवर्तन लाने के स्थान पर उलझन और असमंजस पैदा कर दी है। निजी स्कूलों के मुकाबले अंग्रेज़ी भाषा को शिक्षा का माध्यम बना कर जो सरकारी स्कूलों में दाखिले बढ़ाने के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं, उसने पंजाब की स्कूली शिक्षा में बड़ी रुकावटें पैदा की है और शिक्षा के क्षेत्र में अराजकता वाली स्थिति पैदा हो गई है। इसकी चर्चा हम अपने किसी आगामी लेख में करेंगे।परन्तु यहां एक बात ज़रूर स्पष्ट करना चाहते हैं कि अगर पंजाबी भाषा के आधार पर एक लम्बे संघर्ष के बाद अस्तित्व में आए राज्य के लोगों को शिक्षा के माध्यम से उनके इतिहास, विरसे और सभ्याचार तथा उनकी भाषा को तोड़ा जाता है तो इसके परिणाम न केवल पंजाब के लिए विनाशकारी होंगे, अपितु देश को भी इससे कोई अधिक लाभ होने वाला नहीं है। चाहे आज़ादी के आन्दोलन के इतिहास को देख लें, चाहे आज़ादी के बाद देश की सीमाओं पर पैदा हुए ़खतरों को देख लें, चाहे देश के भीतर लोकतंत्र हेतु आपात्काल जैसे पैदा हुए ़खतरे को देख लें। पंजाब के सपूत अपने इतिहास, सभ्याचार और अपनी भाषा में रचित महान ग्रंथों से प्रेरणा लेकर दुश्मन और लोकतंत्र विरोधियों के दांत खट्टे कर सकते हैं तथा कुर्बानियां देकर देश की हर क्षेत्र में रक्षा करते रहे हैं। विशुद्ध विदेशी भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करने वाले नौजवान न तो जज़्बाती तौर पर अपने देश के साथ जुड़ सकते हैं और न ही वे शीश देने वाले योद्धा बन सकते हैं। प्रत्येक बड़े संकट के समय हर कौम के लोग अपने इतिहास, विरसे और अपनी भाषाओं के साहित्य से ही प्रेरणा लेते हैं। पंजाब के नौजवानों को विशुद्ध विदेशी भाषाओं द्वारा शिक्षा-दीक्षा देकर देश के इन सरोकारों की बिल्कुल भी पूर्ति नहीं हो सकती। भारत सरकार और पंजाब की सरकार को और माननीय पंजाब के शिक्षा सचिव को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए।  (समाप्त)