आसाम का ऐतिहासिक गुरुद्वारा धुबड़ी साहिब

‘सरबत का भला’ के सैद्धान्तिक तथा व्यवहारिकता से सहमत सिख धर्म के प्रचार तथा प्रसार के लिए गुरु नानक देव जी ने (देश-विदेश में) उदासियों का सिलसिला आरम्भ किया था, जिसे बाद में उनके अनुयायियों ने भी जारी रखा। इस सिलसिले का मनोरथ जहां गुरु साहिब के सर्व कल्याणकारी मिशन का फैलाव करना था, वहीं भटकती हुई मानवता को सच के मार्ग के साथ जोड़ कर रूहानी खुशी का पात्र बनाना भी था। ऐसी पात्रता के निर्माण के लिए ही नौवें नानक श्री गुरु तेग बहादुर जी ने भी अपने गुरुकाल के समय उगते सूरज (पटना, बंगाल तथा आसाम) के इलाकों की ओर अपने मुबारक चरण डाले थे। गुरु साहिब तथा उनके परिवार के पटना साहिब में रहने के दौरान सभी संगतें रोज़ाना उनके दर्शन-दीदार के लिए आते तथा उनके मुखारविंद से उच्चारण किए पवित्र वचन सुनकर निहाल हो जाती थीं। रोज़ाना की तरह एक दिन अमृत समय गुरबाणी का कीर्तन हो रहा था तो राजा राम सिंह का एक नुमाइन्दा गुरु तेग बहादुर साहिब के दर्शनों के लिए आया। बहुत सारी भेंटों और सतकार करने के बाद उसने गुरु जी से बिनती की कि ‘सच्चे पातशाह, हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब ने मेरे मालिक (राजा राम सिंह) को कामरूप (आसाम) पर हमला करने का हुक्म दिया हुआ है। कामरूप में जादू मंत्रों का बोलबाला है, जोकि बड़े खतरे से खाली नहीं, कृपा करके हमें बचाएं।’गुरु तेग बहादुर जी ने कहा कि ‘परमात्मा का निरन्तर जप करो, वह स्वयं ही सबका भला करेगा।’  साथ ही यह भी कहा कि वह कुछ समय बाद सिखी के प्रचार के लिए आसाम जाएंगे। गुरु जी ने नुमाइंदे को हौसला देकर वापिस भेज दिया तथा अपने परिवार (माता तथा पत्नी) को कृपाल चंद के पास छोड़कर आप भागलपुर, राजमहल मालदा तथा ढाका होते हुए कामरूप (असम) में पहुंच गए। उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित (गुरु नानक देव जी का चरण स्पर्श प्राप्त स्थान) दमदमा साहिब (गुरुद्वारा धुबड़ी साहिब) में पड़ाव डाला। बादशाह का हुक्म बजाने के लिए राजा राम सिंह तथा उसकी फौज भी इस स्थान पर पहुंच गए। इधर जब कामरूप देश के राजा चक्रधर को पता लगा कि मुगल बादशाह औरंगजेब की शह पर राजा राम सिंह उस पर हमला करने के लिए आ रहा है तो वह भी गुरु जी की शरण में जा पहुंचा।नौवें पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर ने आने वाले समय को विचारते हुए राजा राम सिंह को खबरदार किया कि वह अपनी फौज को नदी के किनारे से किसी ऊंची जगह पर ले जाए, क्योंकि नदी में बाढ़ आने  का खतरा है। रात को नदी ब्रह्मपुत्र में बाढ़ आ गई। दूसरी ओर गुरु बचनों से चक्रधर की  फौज भी इस बाढ़ की मार से बच गई।इस जगह का नाम धुबड़ी साहिब  प्रचलित हुआ जो सिख इतिहास में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गुरु  तेग बहादुर साहिब के शहीदी दिवस वाले दिन इस पवित्र स्थान पर देश-विदेश की संगतें बड़ी संख्या में नतमस्तक होने के लिए पहुंचती हैं।

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