चिन्ताजनक है कोरोना महामारी का बढ़ना

देश में तेजी से बढ़ रहे कोरोना के मरीज़ों संबंधी स्थिति चिन्ताजनक सीमा तक पहुंच गई है। कुछ मास पूर्व उत्पन्न हुए इसके खतरे के संबंध में सुरक्षा व्यवस्थाओं के बाद बड़ी शिद्दत के साथ इस बात का अहसास हो गया था कि इस महामारी के चलते हुए अधिक कड़ी पाबंदियां नहीं लगाई जा सकतीं। सर्व-स्वीकार्य इस विचार के बाद इन पाबंदियों को हटाने का काम शुरू हो गया था। आगामी दिनों में देश के अधिकतर भागों में पूरी छूट दिए जाने की संभावना बन चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने भी इस वायरस के संबंध में कहा है कि शिखर पर पहुंच रही इस बीमारी के विरुद्ध अब तीव्र लड़ाई लड़े जाने की आवश्यकता है। पिछले महीनों में इसके प्रसार और इसे रोकने के यत्नों से सबक सीखे जा सकते हैं। इसमें पहले से प्रचारित की गई सावधानियों का लोगों की ओर से पूरी तरह से पालन किए जाने की बड़ी आवश्यकता है। जहां तक भारत का प्रश्न है, अब मरीज़ों की संख्या के मामले में यह विश्व के दो देशों से ही पीछे रह गया है, परन्तु अभी तक इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि मौतों की संख्या के मामले में यह अभी भी अमरीका, इंग्लैंड, ब्राज़ील, इटली, फ्रांस और स्पेन से काफी पीछे है। यदि मरीज़ों की संख्या यहां सात लाख के करीब पहुंच गई है तो ठीक होने वालों की संख्या का आंकड़ा भी साढ़े चार लाख पार कर चुका है। प्राप्त समाचारों के अनुसार इस युद्ध में स्थिति अब बेहतर होते जाती दिखाई दे रही है क्योंकि मरीज़ों के ठीक होने की दर निरंतर बढ़ रही है। पंजाब में तो यह स्थिति और भी बेहतर है। जहां देश भर में ठीक होने वालों की औसत 60 प्रतिशत के करीब है, वहीं पंजाब में यह दर 70 प्रतिशत से भी ऊपर  है। भारत में आबादी के लिहाज से अन्य देशों के मुकाबले मरने वालों की संख्या अभी तक बहुत कम है। अब चाहे लगाई गई पाबंदियां कम हो गई हैं तथा दी गई छूटें भी बढ़ गई हैं परन्तु इसके बावजूद अधिक सावधान रहने की बड़ी आवश्यकता है। यह जिम्मेदारी लोगों को स्वयं ही निभानी होगी। अब कुछ ऐसी दवाइयां भी मिलने लगी हैं जो इस बीमारी के प्रभाव को कम करने में सहायक सिद्ध हो रही हैं। इसके साथ-साथ विश्व भर के देश किसी ऐसे टीके के आविष्कार में भी लगे हुए हैं जो इस बीमारी को खत्म करने में सहायक हो सके। इस समय सावधानियों के साथ-साथ इस बात पर भी अधिक जोर दिया जाना चाहिए कि इस बीमारी से ग्रस्त अधिकाधिक लोग ठीक हो सकें। समय के व्यतीत होने के साथ-साथ देश में इसके प्रति जागरूकता भी बढ़ी है तथा स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार हुआ है। नि:संदेह आबादी एवं बीमारों की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए इस संबंध में यत्न और भी तेज़ किए जाने आवश्यकता है। स्वास्थ्य सेवाओं का प्रसार ही इसके लिए संजीवनी का काम कर सकता है। इस समय ऐसे यत्न ही देशवासियों को बड़ी राहत पहुंचाने वाले साबित हो सकते हैं।

              -बरजिन्दर सिंह हमदर्द