भारतीय नारी के हैं कितने रूप

जब एक लड़की जन्म लेती है तो वह एक बेटी, बहन, मित्र कई रूप धारण करती है। बचपन से ही उस पर पाबंदियां लग जाती हैं कि अंधेरा होते ही घर आ जाना। लड़कों से बचकर रहना। बड़ों के आगे नहीं बोलना, बड़ों का सम्मान करना। सभी काम सीखना, क्योंकि लड़की ने सुसराल जाना है। वह सबका सम्मान करती हुई अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ती है। मां-बाप को बेटी की शादी की चिंता सताने लगती है। मां-बाप रात दिन एक करके लड़का खोजने में विवाह की दहलीज़ पर पांव रखते ही वह पति की अर्द्धागिनी, परिवार में देवरानी, जेठानी, परिवार की वधु, चाची, मामी आदि उसके साथ कई रिश्ते जुड़ जाते हैं। पति भी अपना सर्वस्व उसको सौंप देता है। दोनों प्रत्येक कार्य के लिए एक दूसरे पर निर्भर रहने लगते हैं। इस तरह जीवन में आगे बढ़ते हुए एक मां के रूप में प्रवेश करती है। यह उसके जीनव का सुखद और सुंदर रूप है।