भारत की दृढ़ता रंग लाई

भारत की दृढ़ता के समक्ष आखिर चीन को अपना रवैया बदलना ही पड़ा है। पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी और कुछ अन्य क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन ने जो रवैया अपनाया था, वह धौंस पूर्ण और असहयोग वाला था। उसका यह रवैया पिछले कई दशकों से बना रहा है खास तौर पर 1962 का भारत के विरुद्ध युद्ध जीतने के बाद। भारत के अधिकतर सीमांत क्षेत्रों पर वह लगातार दावे जताता और घुसपैठ करता आया है। उसने अपने अड़ियल रवैये में कोई  बदलाव नहीं किया था। इस संबंधी भारत का रवैया हमेशा बचाव की नीति वाला ही रहा है। उसने किसी भी तरह हमलावर रवैया नहीं अपनाया था परन्तु आखिर दबाव की नीति कब तक सहन की जा सकती है।
गलवान में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद भारत सरकार को अपनी पहले की नीतियों में परिवर्तन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसने न सिर्फ चीनी दावों को ही नकार दिया अपितु उसके मुकाबले में लद्दाख की सीमाओं पर अपने सैनिकों का जमावड़ा करके, आधुनिक हथियार तैनात करके तथा अपने युद्धक विमानों की निडर उड़ानें भर कर यह ज़रूर जता दिया कि भारत अब झुकने वाला नहीं है और वह मुकाबला करने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्वी लद्दाख में सीमाओं पर जाकर सैनिक जवानों को सम्बोधित करके यह दृढ़ सन्देश दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण को नि:सन्देह ऐतिहासिक कहा जा सकता है। चाहे वहां उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया परन्तु देश के साहस और दृढ़ता का प्रकटावा अवश्य कर दिया तथा यह भी कि भारत अब चीन की विस्तारवादी नीतियों के समक्ष झुकने वाला नहीं है और उसके द्वारा फेंकी गई ईंट का जवाब पत्थर से देने हेतु तैयार है। 
चीन आज स्वयं को विश्व भर में घिरा हुआ महसूस कर रहा है। उसकी प्रत्येक क्षेत्र में विस्तारवादी नीतियों ने उसको ज्यादातर देशों के निशाने पर ला दिया है। उसको महसूस होने लगा है कि उसका ढाला हुआ सिक्का अब अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में बिकने वाला नहीं है।
इसलिए सीमा पर पिछले कई महीनों से टकराव की स्थिति में उसके तैनात सैनिकों ने गलवान घाटी से पीछे हटना शुरू कर दिया है। गलवान घाटी में गश्त बिन्दु 14 से डेढ़ किलोमीटर  तक अपने सैनिकों को पीछे हटाना और लगाए गए अपने तम्बू हटा लेना ऐसा ही दर्शाता है। उसने अपने बयान में कहा है कि अग्रणी मोर्चे पर तैनात सैनिक पीछे हटाना और दोनों देशों में तनाव कम करने की दिशा में प्रभावशाली कदम उठाए जा रहे हैं। हम इस बनी सहमति को एक अच्छा कदम समझते हैं। इससे दोनों देशों में पुन: सार्थक बातचीत आरम्भ करने के लिए रास्ता साफ होने की सम्भावना नज़र आ रही है। ऐसा भारत द्वारा दिखाई गई दृढ़ता के कारण ही सम्भव हुआ है। भविष्य में भी देश को इस हौसले के साथ अपने कदम आगे बढ़ाने होंगे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द