क्या पंथक विश्वास जीत सकेगा नया अकाली दल ?

अब वयोवृद्ध अकाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा के नेतृत्व में एक और अकाली दल के गठन की घोषणा की गई है। इससे पूर्व भी अनेकों अकाली दल पहले ही छोटे-से पंजाब में विचर रहे हैं। अकाली दल बादल के अलावा लौंगोवाल के नाम पर अकाली दल, अमृतसर के नाम पर अकाली दल, यूनाइटिड अकाली दल, अकाली दल 1920 और टकसाली अकाली दल अब भी अपने-अपने प्रभाव के अनुसार कुछ न कुछ सक्रियता दिखाते रहे हैं। इनका कितना प्रभाव है, इस संबंधी पंजाब के लोग भली-भांति परिचित हैं, परन्तु अब पंथक पृष्ठों में उभरे नये अकाली दल की ओर बहुत-सी नज़रें उठी हैं। इसके कुछ कारण हैं। स. प्रकाश सिंह बादल कई दशकों से अकाली राजनीति में अग्रणी बने रहे। उनके पंजाब, सिख राजनीति और देश की राजनीति पर पड़े प्रभाव को दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता। स. ढींडसा गत 35 वर्षों से स. बादल के बड़े साथी बन कर चलते रहे थे। इस पूरे घटनाक्रम में यह प्रभाव भी परिपक्व होता रहा था कि अकाली राजनीति में स. बादल के बाद स. ढींडसा का नाम ही आता है। राजनीतिक जीवन के अपने 50 वर्षों में स. सुखदेव सिंह ढींडसा का बड़ा अच्छा प्रभाव बना रहा है। पार्टी से ऊपर उठ कर आम लोगों और दूसरी राजनीतिक पार्टियों में उनको सम्मानपूर्वक देखा जाता रहा है। स. प्रकाश सिंह बादल चाहे अब काफी सीमा तक सक्रिय राजनीति से किनारा करने के प्रयास में हैं परन्तु इस चरण में स. ढींडसा द्वारा उनका राजनीतिक साथ छोड़ना एक तरह से स. बादल को बड़ा झटका लगने के समान है। स. ढींडसा ने उनका साथ क्यों छोड़ा, यह बात पिछले काफी समय से स्पष्ट होती जा रही थी। इसी कारण इस चरण पर उनके और भी पुराने मित्र उनका राजनीतिक साथ छोड़ गए हैं। स. बादल के नेतृत्व वाला पिछले 10 वर्षों का शासन भी बहुत-से विवादों में घिरा रहा है। खास तौर पर उनके दल द्वारा पंथक मुद्दों को अनदेखा करना उनके लिए हानिप्रद सौदा बना रहा है। सरकार में अनेक पक्षों से व्यापक भ्रष्टाचार ने अकाली-भाजपा सरकार की छवि को बुरी तरह धूमिल कर रखा था। इस सरकार के समय पंजाब पर चढ़े लाखों-करोड़ों के ऋण ने पंजाब और पंजाबियों की चिंता में बड़ी वृद्धि की है। ऋण के बलबूते पर किए गए विकास कार्य अपना पूरा प्रभाव डालने में असमर्थ रहे थे। उस समय राजनीति में भाई-भतीजावाद का मक्कड़जाल भी फैल गया था। लोगों का मोह भंग होने के कारण स. बादल के नेतृत्व में ही पार्टी को लगातार निराशाजनक पराजयों का मुंह देखना पड़ा था। इसी समय में ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी भी अपने कर्त्तव्यों से हट कर अनेक विवादों में घिर गई थी। ऐसा प्रभाव अभी तक भी जारी है। पंथक कतारों में बने इस बिखराव को पिछले काफी समय से हर कोई महसूस करता रहा है। स. ढींडसा और उनके साथियों द्वारा इस बिखराव को कितना भरा जा सकेगा, यह देखने वाली बात होगी।परन्तु अपनी नई पार्टी के संकल्प पत्र में स. ढींडसा ने कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण विषयों को ज़रूर छुआ है, जो आज की पंथक राजनीति के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें पंजाब और पंजाबीयत की बात करना, सिख राजनीति के अवसान की ओर जाने का संकेत करना, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में आ चुके पतन की ओर अंगुली करना, देश में संघीय ढांचे हेतु डट कर खड़े होने की वचनबद्धता, कृषि संकट की बात को स्पर्श करते हुए केन्द्र की किसान विरोधी कार्रवाइयों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ करने की बात करना आदि ऐसे मामले हैं, जो आज लोगों की भावनाओं के अनुसरणकर्ता बने हुए हैं। स. ढींडसा के नेतृत्व में नया अकाली दल कितना प्रतिबद्ध हो कर इन पर पहरा देने में समर्थ होगा, भविष्य में पंजाब के लोग इस ओर पूरी दृढ़ता के साथ ज़रूर देखेंगे। आज पंजाब, पंजाबी और पंजाबीयत को आलिंगन में लेने वाली और इसके साथ ही पंथक भावनाओं का पूरी तरह प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी की बेहद ज़रूरत महसूस की जा रही है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द