प्रधानमंत्री का लेह दौरा, चीन को दी गई भारत के इरादों की झलक

पहले से तय कार्यक्रम के उलट 3 जुलाई 2020 को जब रक्षा मंत्री की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेह पहुंच गये तो यह महज भारतीय सेना, देश की जनता के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए यह सख्त और स्पष्ट संदेश था कि हम चीन के साथ किस हद तक जाकर निपटने को तैयार हैं। हालांकि सर्वदलीय बैठक के बाद अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारतीय धरती पर किसी ने घुसपैठ नहीं की है। लेकिन इस बयान के पीछे उनका संदेश देने का जो मकसद था सोशल मीडिया के कारण वह संदेश उलट गया, जो पीएमओ की तमाम सफाई देने के बाद भी लोगों के गले नहीं उतरा। इसलिए अपनी स्थिति दो टूक दिखाने के लिए कुछ बड़ा करने की ज़रूरत थी, शायद इसीलिए अपनी कार्यशैली से चौंकाने वाले प्रधानमंत्री मोदी 3 जुलाई 2020 को अचानक लेह पहुंच गये। इस तरह ‘देर आये दुरुस्त आये’ कहावत को चरित्रार्थ करते हुए भारत ने अब चीन को जो सख्त व स्पष्ट संदेश दिया है, उसमें किसी को किसी तरह का कन्फ्यूजन नहीं रहा। इससे यह उम्मीद बंधी है कि चीन बात को समझ आ जायेगी और वह अपनी विस्तारवादी हरकतों से बाज आयेगा। नई दिल्ली ने बीजिंग को मुख्यत: पांच कठोर संदेश दिए हैं, जिनका डिप्लोमेटिक भाषा में बड़ा गहरा अर्थ निकलता है। एक, टिक टॉक सहित 59 चीनी एप्पस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। दो, अनेक भारतीय राज्यों ने अपने यहां के बड़े प्रोजेक्ट्स की बोली में चीनी कम्पनियों को हिस्सा लेने से रोक दिया है। तीन, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने कहा कि हांगकांग में काफी तादाद में भारतीय भी रहते हैं। ध्यान रहे कि अब से पहले भारत हांगकांग में चीनी गतिविधियों पर कोई टिप्पणी नहीं करता था। इस बयान से चीन को यह संदेश दिया गया है कि भारत भी उन देशों के साथ है जो हांगकांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन का विरोध कर रहे हैं। चार, रक्षा मंत्रालय ने हथियार खरीदने के अनेक प्रमुख प्रोजेक्टों को मंजूरी दी है, जिनका मूल्य 38,900 करोड़ है। इन हथियारों में 33 नये फाइटर जेट्स, 300 लम्बी दूरी के लैंड-अटैक क्रूज़ मिसाइल और 250 एयर-टू-एयर मिसाइल शामिल हैं। इस खरीद का सीधा सा अर्थ यह है कि भारत चीन के विरुद्ध लम्बे सीमा टकराव के लिए तैयार है। इस क्रम में पांचवां संदेश यह कि 3 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक जो लद्दाख का दौरा किया, वह इस बात को बताने के लिए है कि भारत सीमा टकराव पर पीछे हटने को तैयार नहीं है, वह अपनी रक्षा करने में सैन्य दृष्टि से पर्याप्त सक्षम है। गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों की वीरता का जिक्र करके जवानों का मनोबल बढ़ाते हुए मोदी ने कहा, ‘विस्तारवाद का युग समाप्त हो गया है। यह विकास का दौर है। अगर कोई विस्तारवाद के लिए जिद पकड़ ले तो यह विश्व शांति के लिए खतरा उत्पन्न करना है। इतिहास गवाह है कि इस प्रकार के (विस्तारवादी) बल या तो मिटा दिए गये हैं या पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिए गये हैं। पूरे विश्व ने विस्तारवाद के विरुद्ध अपना मन बना लिया है।’ यह संदेश जहां पहुंचना था वहां पहुंच गया और वहां यह चुभा भी। दूतावास के प्रवक्ता ने कहा कि चीन को ‘विस्तारवादी’ समझना ‘आधारहीन’ है। यह स्पष्टीकरण ही चीन के ‘दोष’ को जाहिर कर रहा है। बशीर बद्र का शेर है- ‘लोग गुनहगार समझ बैठेंगे/इस कद्र जमाने को सफाई न दे’। प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में चीन को लगभग धमकी देते हुए कहा, ‘भारत के दुश्मनों ने उसकी फौज के गुस्से व आग (फायर एंड फ्यूरी) को देखा है। हम वह लोग हैं जहां कृष्ण सिर्फ बांसुरी ही नहीं बजाते हैं बल्कि सुदर्शन चक्र भी चलाते हैं।’ इस बयान में जो प्रतीक प्रयोग किये गये हैं उनका समझना ज़रूरी है। 14 कोर का मुख्यालय लेह में है और वह ‘फायर एंड फ्यूरी कोर’ के रूप में जानी जाती है। 14 कोर का चिन्ह ‘आपस में क्रॉस करते दो वज्र और उनके बीच में तलवार’ है। 14 कोर दो सीमाओं की चौकसी करती है, चीन से सटे पूर्वी लद्दाख की और पाकिस्तान से सटे कारगिल व सियाचिन की। नींबू, जहां प्रधानमंत्री ने सैनिकों को ‘फायर एंड फ्यूरी’ चिन्ह वाली कैप लगाकर संबोधित किया, लेह से लगभग 35 किमी के फासले पर है। इसमें एक सैन्य एविएशन हब है और 14 कोर के तहत एक ब्रिगेड का मुख्यालय है। बांसुरी व चक्र प्रतीकों के जरिये एक तीर से दो निशाने साधने का प्रयास किया गया है, जिनमें से एक चीन है और दूसरा घरेलू आलोचक। मई के शुरू से ही यह खबरें आनी शुरू हो गई थीं कि चीन पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ कर रहा है और अपने सैनिकों की तादाद बढ़ा रहा है। विपक्ष व रक्षा पत्रकार इस मुद्दे को बराबर उठा रहे थे, लेकिन मोदी सरकार की इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी (जो 15 जून को 20 भारतीय सैनिकों की वीरगति के बाद ही सामने आयी) जाहिरा तौर पर सरकार कुछ करती हुई दिखायी भी नहीं दे रही थी, इसलिए बार-बार उसकी यह कहकर आलोचना की जा रही थी कि ‘रोम जल रहा है और नीरो बांसुरी बजा रहा है’। अपने घरेलू आलोचकों को मोदी ने इन प्रतीकों के जरिये यह संदेश दिया है कि वह ‘नीरो’ नहीं हैं बल्कि ‘कृष्ण’ हैं जो समयानुसार दोनों बांसुरी व चक्र का प्रयोग करता है। इन प्रतीकों के माध्यम से चीन को यह संदेश दिया गया है कि भारत अगर व्यापार में किसी भी हद तक जा सकता है तो अपनी रक्षा करने में भी उसकी कोई सीमा नहीं है। गौरतलब है कि नई दिल्ली ने चीन को लेकर अपनी विदेश नीति बदल दी है और उसी पर लौट आया है जो श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनायी थी और जो 1988 तक चली यानी जब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को आधिकारिक नक्शे पर सीमा के रूप में निर्धारित नहीं किया जायेगा तब तक चीन के साथ व्यापार व निवेश के संबंध नहीं रखे जायेंगे। अब चीन को पांच संकेत दिए गये हैं कि वह अपनी विस्तारवादी हरकतों से बाज आये और सभ्य राष्ट्र की तरह ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति अपनाये। लेकिन क्या चीन को अक्ल आयेगी? शायद नहीं।  

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर