चीनी आयात के बहिष्कार के बाद बदलें व्यापारिक तेवर

‘भारत झुकेगा नहीं और चीन की हर चाल का जवाब पूरी दृढ़ता के साथ देगा।’ लद्दाख से युद्ध के मोर्चे से ग्यारह हज़ार फीट की ऊंचाई की अग्रिम चौकी से भारत के प्रधानमंत्री  ने कहा। गलवान घाटी में चीन के अतिक्रमण के बाद अब हर भारतीय के समक्ष स्पष्ट हो गया है कि यह समय सौहार्दपूर्ण संवाद का नहीं बल्कि विस्तारवादी चीन की हर चाल का जवाब देने का है। सरहद पर भारतीय सेना चीन के साथ निपटेगी, लेकिन एक बहुत संवेदनशील सरहद आर्थिक सरहद भी होती है। इस समय चीन के निर्यात की बहुत बड़ी मंडी भारत है। इंटरनैट की मंडी में चीनी एप भारत के अस्सी करोड़ मोबाइलों के इंटरनैट में खपते हैं। भारत ने टिकटॉक सहित इसके 59 एप्प बंद करके चीन पर बहुत बड़ा आर्थिक हमला किया है। उधर सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क वाहन उपकरणों से सभी सौदे रद्द करने की घोषणा कर दी है। पीयूष गोयल के रेल मंत्रायल ने भी न केवल वर्तमान टैंडर रद्द करने की घोषणा की, बल्कि संयुक्त उपक्रमों में भी चीन की साझीदारी की मनाही कर दी। अब एक सम्भावना बनी कि किसी तीसरे देश के रास्ते चीन भारत से व्यापार की सम्भावनाएं न तलाश कर ले। हांगकांग उसके लिए एक सही और सुलभ रास्ता हो सकता है। वहां से हमारे आयात पहले ही हमारे निर्यातों से अधिक हैं, और हम व्यापार घाटे में हैं। चीनी अपने निर्यात बंद होते देख कर हांगकांग का रास्ता न तलाश कर लें, अब इसकी भी नाकाबंदी कर दी गई है। चीन ने अपने निर्यात खपाने के लिए भारतीय मंडियों पर कब्ज़ा सस्ती कीमतों की सहायता से माल डम्पिंग करके किया था। डम्पिंग वह प्रक्रिया है जिससे निर्यातक देश अपने देश में अपना उत्पाद महंगा बेच कर विदेशी मंडियों पर कब्ज़े के लिए विदेशों में अपना सामान सस्ता बेच इस देश के स्वदेशी उत्पादकों की कमर तोड़ देता है। ये उत्पादक अपना उत्पादन छोड़ उसका माल बेचने के एजैंट बन जाते हैं। यूं इनकी मंडियों पर कब्ज़ा करके प्रतियोगी रास्ते से हटा चीन उस व्यापार का एकाधिकारी बन जाता रहा। इसके बाद वह अपनी मनचाही कीमत ले मंडी का सर्वाधिकारी बन जाता रहा। भारत में चीन ने यूं ही किया था। जानन्धर में ऐसा ही हुआ। जालन्धर के खेलों का सामान बनाने वाले खेल निर्माता इसका साक्षात् उदाहरण हैं कि कैसे चीन के सस्ते खेल के सामान ने उनकी कुछ उत्पादन इकाईयां बंद करवा दीं और अब वे मात्र इस सस्ते चीनी सामान के विके्रता बन कर रह गए।  भारत में दवाइयां बनाने का ढांचा दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है। लेकिन धीरे-धीरे विशिष्टीकरण के नाम पर सस्ता कच्चा माल चीन डम्प करने लगा, इसे ‘ए.पी. आई’ कहते हैं और भारत केवल इसका निर्माता बन कर रह गया। अब कोरोना महामारी के प्रकोप की औषधि या वैक्सीन कोई देश निकाले, लेकिन उसके यथेष्ट निर्माण की जिम्मेदारी भारत निभा सकेगा। लेकिन कैसे? मूल कच्चे माल का सत्तर प्रतिशत तो चीन से आता है, इसमें पैन्सलीन शामिल है। चीनी आयात का बहिष्कार करना है तो पहले इसी धरातल से किया जाये। दवा निर्माता चीन से कच्चा माल मंगवाना बंद करें। बद्दी में पैन्सलीन उत्पादन की फैक्टरियों का बड़ा ढांचा इस समय निश्चल चल रहा है। इसे सक्रिय किया जाये। दवाएं बनाने के लिए ज़रूरी कच्चा माल हम स्वयं बनाना शुरू करें।  भारत के चीन के साथ विदेशी व्यापार के असंतुलन को प्रधानमंत्री ने पहचान लिया था। तभी तो वह देश को आत्मनिर्भर हो जाने का संकल्प बांट रहे थे, उसके लोकल के लिए वोकल हो जाने का नारा दे रहे थे। इस बीच चीन ने मेक इन इंडिया का सहारा लेकर भारतीय उद्योगों के बहुत से क्षेत्रों में संयुक्त उपक्रम शुरू कर लिए । अब इन उपक्रमों में से चीनी हितों को बुहारना होगा। लुधियाना की हीरो साइकिल के मुंजाल बन्धुओं  ने चीन को दिया एक लम्बा चौड़ा आर्डर कैंसल कर दिया है। पहले से इस सत्य को पहचान लिया गया था कि सन् 2014-15 से लेकर आज तक चीन से भारत का आयात यहां से चीन को होने वाले निर्यात से कई गुणा अधिक है। यहां तक कि चीन से भारतीय आयात 2017-18 में 5.34 लाख करोड़ रुपए और गत वर्ष 4.55 लाख करोड़ का हो गया। चाहे भारत ने चीन की ओर अपना आयात बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन फिसड्डी रह गया। 2014-15 में चीन को 83300 करोड़ रुपए मूल्य का निर्यात किया और गत वर्ष मात्र 1.16 लाख करोड़ निर्यात किया। इसका अर्थ यह हुआ कि चीन ने गत वर्ष भारत से 3.39 लाख करोड़ रुपए का लाभ कमाया।  अब अपनी आत्मनिर्भरता पैदा करके इसी लाभ को खत्म करने की ज़रूरत है। जितना चीनी सामान का बहिष्कार होगा, उतना ही चीन का यह लाभ खत्म होगा और हमारा पैसा हमारे निवेशकों के पास रहेगा। यह सब करने के लिए एक अपना निर्यात बढ़ाने के लिए चीन पर निर्भरता के स्थान पर अन्य विदेशी मंडयों से रिश्ते तलाशने होंगे। दूसरा, विदेशी आयात पर अतिनिर्भरता कम करने का एक ही रास्ता है कि देश आत्मनिर्भर अथवा लोकल के लिए वोकल हो।  चीन की विस्तारवादी नीतियों से भारत सहित रूस, अमरीका, आस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया का चतुष्पद दुखी है। पश्चिमी निवेशक चीन से निकल कर भारत को अपना सकते हैं, क्योंकि यहां भरपूर आबादी के कारण मांग और श्रम की कमी नहीं, लेकिन इन बदलते तेवरों की सफल भूमिका के लिए हमें अपनी पिछलग्गू कार्य संस्कृति को भी बदलना होगा।