शत्रु की बर्बादी का ब्रह्मास्त्र है एस-400

द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी पर सोवियत संघ की जीत की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर सैन्य परेड में शामिल होने के लिए तीन दिवसीय दौरे पर मॉस्को गए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने रूसी उप-प्रधानमंत्री यूरी बोरिसोव से हुई द्विपक्षीय रक्षा संबंधों पर चर्चा के बाद उम्मीद जताई है कि रूस से भारत को समय पर एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली मिल जाएगी।  उनकी रूस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत-रूस के बीच हुए रक्षा सौदों (विशेषकर एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली) की जल्द से जल्द आपूर्ति कराना था। दरअसल चीन नहीं चाहता कि रूस भारत को एस-400 सहित इन रक्षा सौदों की शीघ्र आपूर्ति करे लेकिन रूस द्वारा भारत को जल्द से जल्द एस-400, सुखोई-30 एमकेआई तथा मिग-29 की आपूर्ति के संकेत दिया जाना निसंदेह चीन के लिए बड़ा झटका है। भारत हथियार और रक्षा उपकरण सबसे ज्यादा रूस से ही खरीदता रहा है। हथियारों के उत्पादन की भारत की ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम में भी रूस भारत का बहुत बड़ा मददगार साबित हो रहा है। इसके अलावा सैन्य विशेषज्ञों के मुताबिक करीब 25 अरब डॉलर के हथियारों की खरीद और होने के आसार हैं। भारत-रूस के बीच हथियारों के संयुक्त उत्पादन तथा तकनीक के हस्तांतरण में ब्रह्मोस मिसाइल सबसे महत्वपूर्ण है। मल्टीफंक्शनल राडार से लैस दुश्मन की बर्बादी का ब्रह्मास्त्र मानी जाने वाली एस-400 दुनियाभर में सर्वाधिक उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक है, जो रूसी सेना में 2007 में सम्मिलित हुई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच 2018 में हुई शिखर बैठक के दौरान वायुसेना को ताकत प्रदान करने के लिए करीब 5.43 अरब डॉलर यानी 40 हजार करोड़ रुपये में एस-400 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल रक्षा प्रणाली की पांच इकाइयां खरीदने का करार हुआ था, जिसे देश के रक्षा क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत माना गया था। इनमें से दो यूनिट 2021 के अंत तक भारत को मिलने हैं और इन्हीं की जल्द आपूर्ति के लिए रक्षामंत्री द्वारा रूस यात्रा के दौरान बातचीत हुई थी। चीन, पाकिस्तान तथा अन्य दुश्मन पड़ोसी देशों से निपटने के लिए भारत को इस रक्षा प्रणाली की सख्त ज़रूरत भी है। यह ऐसी प्रणाली है, जिसके राडार में आने के बाद दुश्मन का बच पाना असंभव हो जाता है। इसके हमले के सामने भागना तो दूर, संभलना भी मुश्किल होता है।कुछ रक्षा विशेषज्ञ इसे जमीन पर तैनात ऐसी आर्मी भी कहते हैं, जो पलक झपकते ही सैकड़ों फीट ऊपर आसमान में ही दुश्मनों की कब्र बना सकती है। कहा जा रहा है कि एस-400 के वायुसेना में शामिल होने के बाद भारत जमीन की लड़ाई भी आसमान से ही लड़ने में सक्षम हो जाएगा। यह एयर डिफैंस मिसाइल सिस्टम तीन तरह के अलग-अलग मिसाइल दाग सकता है और इसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी आसानी से पहुंचाया जा सकता है। यही नहीं, नौसेना के मोबाइल प्लेटफार्म से भी इसे द़ागा जा सकता है। एस-400 में मिसाइल द़ागने की क्षमता पहले से अढ़ाई गुना ज्यादा है। यह कम दूरी से लेकर लम्बी दूरी तक मंडरा रहे किसी भी एरियल टारगेट को पलक झपकते ही हवा में ही नष्ट कर सकती है। यह मिसाइल प्रणाली पहले अपने टारगेट को स्पॉट कर उसे पहचानती है। इसके बाद मिसाइल सिस्टम उसे मॉनीटर करना शुरू कर देता है और उसकी लोकेशन ट्रैक करता है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इस मिसाइल प्रणाली को अगर आसमान में फुटबॉल के आकार की भी कोई चीज मंडराती हुई दिखाई दे तो यह उसे भी डिटेक्ट कर नष्ट कर सकती है। एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की विशेषता इसी से समझ सकते हैं कि अमरीका के एफ-35 जैसे सबसे एडवांस्ड फाइटर जेट भी इसके हमले से बच नहीं सकते। चीन रूस से यह मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने वाला पहला देश था। यह एक साथ 36 लक्ष्यों और दो लॉन्चरों से आने वाली मिसाइलों पर निशाना साध सकती है और 17 हज़ार किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक अपने लक्ष्य पर हमला कर सकती है। इसे मात्र पांच मिनट में ही युद्ध के लिए तैयार किया जा सकता है। 600 किलोमीटर की दूरी तक निगरानी करने की क्षमता से लैस एस-400 की मदद से भारत के लिए पाकिस्तान के चप्पे-चप्पे पर नज़र रखना  संभव हो सकेगा। 3488 किलोमीटर लम्बी भारत-चीन सीमा के मद्देनज़र हमारे लिए यह रक्षा प्रणाली हासिल करना और अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत करते हुए वायुसेना की ताकत बढ़ाना बेहद ज़रूरी हो गया था।