चीनी पैसे के आगे पस्त होता पाकिस्तान

जनाब शाह महमूद कुरैशी पाकिस्तान के विदेशी मामलों के मंत्री के विभाग ने प्रधानमंत्री इमरान खान को एक पत्र लिखा कि पाकिस्तान को चीन का दुमछल्ला बनने से कुछ हासिल नहीं हेगा बल्कि लाभ से अधिक होने की संभावना है। इस पत्र के पीछे यह बात भी समझ आती है कि चीन के कहने पर जो दो डिवीज़न फौज पीओके (पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर) में भेजी वह नहीं भेजनी चाहिए थी। ऐसा लगता है कि इस पत्र को लिखने और भेजने के पीछे पाकिस्तान के सेनापति जनरल कमर जावेद बाजवा की सोच काम कर रही है। वरना पाकिस्तान के कैबिनेट जो चापलूसों की बारात समझी जाती है, उसके विदेशी मामलों की वज़ारत में इतनी हिम्मत कहां से आ गई कि वह इमरान खान को पत्र लिखे और हकीकत से सामना करने की बात कहे। पत्र में यह भी लिखा गया कि भारत-चीन से अगर टकराया तो चीन मुकाबले में पिछड़ जाएगा तब पाकिस्तान की हालत क्या होगी। इस लिए चीन से पाकिस्तान की दोस्ती अपने हितों को देखकर  ही करनी चाहिए। चीन की मजबूरी है कि उसे पाकिस्तान के साथ संबंध बना कर रखने ही होंगे, क्योंकि चीन का आर्थिक गलियारा जो भारत के कश्मीर जिस पर पाकिस्तान का कब्ज़ा है, से होकर बलोचिस्तान से ग्वादर बंदरगाह तक जाता है। भारत ने चीन से पीओके से निकलने वाले रास्ते पर विरोध भी दर्ज कराया था। चीन ने जब वह गलियारा बनाना आरंभ किया तब पाकिस्तान के बहुत से लोगों ने आपत्ति की थी, तब इमरान खान ने पाकिस्तान की हर मर्ज का इलाज चीनी कज़र् को बताया था और चीन के पैसे ने लोगों को खामोश कर दिया। एक मुहावरा भी है कि ‘मुंह खाए आंख शर्माए।’ अब हालात यह है कि कज़र् की वापसी 2022 तक तय है जिसका सूद भी दिया नहीं जा सकता तो मूलधन कैसे लौटाया जाएगा। इसलिए पाकिस्तान के शासकों ने चीन के आगे झुकना स्वीकार कर लिया। आज एक ऐतिहासिक बात कहना चाहता हूं कि वे लोग जो चीन से अंधविश्वास जैसी दोस्ती से हटने का मश्वरा दे रहे हैं, उन्हें यह पत्र मोहतरमा भुशरा साहिबा को भेजना चाहिए थी, क्योंकि इमराम खान साहिब अपनी बेगम भुशरा की बात मानते हैं। इतिहास साक्षी है कि जहांगीर और नूरजहां के शासन काल में नूरजहां ही सभी फैसले किया करती थीं, क्योंकि जहांगीर के बारे में यह बात प्राय: कही जाती थी कि वह मदिरा का एक प्याला और नान का एक निवाला ही लेकर बैठा रहता था। और यह भी हकीकत है कि नूरजहां की मज़ार लाहौर के समीप शाहदरा में है जिस पर लिखा हुआ है कि उसकी मज़ार पर न कोई फूल चढ़ाएगा और न ही शमां जलाएगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि मोरतरमा भुशरा ही पाकिस्तान के मुकद्दर के सभी फैसले लेती हों, जिसकी चर्चा पाकिस्तान के सियासी गलियारों में सुनी जाती है। अब चीन की बात करें कि हावर्ड यूनिवर्सिटी के एक प्रोफैसर डॉ. शाहिद मसूद जो पाकिस्तानी मूल के हैं, ने हालात-ए-हाज़रा पर एक 70-80 पृष्ठ की रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें उसने कहा है कि चीन भारत के सामने एक घंटा तक लड़ने की हालत में नहीं है। चीन के अंदर अपने शासकों से घृणा का लावा उबलने को अवसर ढूंढ रहा है।  शायद इसी लिए चीनी शासक अपने लोगों को गुमराह करने के लिए अपने पड़ोसियों से कशीदगी की हालत बनाए रखता है। पाकिस्तान बुढाती आबादी वाला देश है और जो लड़के फौज में हैं, वे भी थके और निराश दिखाई देते हैं और दूसरी तरफ भारत जिसकी पैसंठ प्रतिशत आबादी पैंतीस वर्ष से कम उम्र की है, जो भारत को ऊर्जावान और आकांक्षाओं वाला देश बनाती है। भारत एक बड़ा बाज़ार है और यह चीन भी जानता है कि विश्व का एक बड़ा उपभोक्ता वर्ग यहां पैदा हो रहा है। पाकिस्तान को एक ईर्ष्यालु पड़ोसी की बजाय सहयोगी बनना चाहिए परन्तु ऐसा होगा नहीं, क्योंकि पाकिस्तान की बुनियाद ही भारत से घृणा पर टिकी है वह घृणा छोड़ेगा तो अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए भारत से नफरत की मुहिम जारी रखना अपनी नीति बनाए हुए है। रही चीन से जंग की बात तो यह सच्चाई भी जग ज़ाहिर है कि अब भारत 1962 वाला भारत नहीं है। यह 2020 वाला भारत है, जिसके प्रधानमंत्री राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत और सेनाएं इस गणतंत्र की सीमाओं की रखवाली के लिए चौकस दिखाई देती हैं क्योंकि उनका राजनीतिकरण नहीं हुआ। दूसरी तरफ पाकिस्तान 72 वर्षों में 36 वर्षों तक सैन्य तानाशाहों के अधीन रहा है और आज भी जनरल कमर जावेद बाजवा विदेशी मामलों में कई फैसलों पर निर्णय लेते अनुभव होते हैं। जनरल बाजवा को अब तक सेवानिवत्त हो जाना चाहिए था परन्तु एक कमज़ोर प्रधानमंत्री इमरान खान नियाज़ी से तान साल की सेवावृद्धि लेने में सफल हो गए। 
दस लाख मुसलमान चीन की जेलों में ठूंसे हुए हैं। उनकी रिहाई क्यों नहीं हेती? पिछले दिनों अमरीका के राष्ट्रपति डोलाल्ड ट्रम्प ने ऐसे ही एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए जिससे चीन के मुसलमानों पर हो रहे जुल्म पर चिन्ता ज़ाहिर की।  हैरानी की बात है कि इमरान की सरकार ने एक बार भी चीनी मुसलमानों की हमदर्दी में दो शब्द तक नहीं कहे। यह कैसी दोस्ती है? पाकिस्तान के विदेशी मामलों के मंत्रालय ने बड़ी गंभीरता से आने वाले मुश्क्लि हालात की ओर पाकिस्तानी शासकों को इशारा किया है। भारत से दोस्ती पाकिस्तान के हित में है, क्योंकि भारत ऐसा पड़ोसी है, जो इन्सानियत के आधार पर चलता है। कवि नीरज ने कहा है-
अब ऐसा एक मज़हब चलाया जाए
हो पड़ोसी भूखा तो हमसे भी न खाया जाए।
पाकिस्तानी शासकों को चीन से दोस्ती पर पुन: विचार करना चाहिए ताकि पाकिस्तान की हिफाज़त और आज़ादी कायम रहे।