भारत-नेपाल रिश्ते सुधारने की ज़रूरत

दशकों से भारत एवं नेपाल के गहन संबंध रहे हैं। सैकड़ों वर्षों के राजतंत्र के दौर के बाद नेपाल की राजनीति ने बड़ी करवट ली थी। वहां नेपाली कांग्रेस के साथ-साथ कुछ अन्य राजनीतिक दलों ने लम्बे संघर्ष के बाद काफी अधिकार संसद हेतु हासिल कर लिये थे। इसके साथ ही वहां चली वामपक्ष की लहर ने ज़ोर पकड़ा था। यह सशस्त्र लड़ाई दशकों तक चली थी। इसमें 17 हज़ार के लगभग लोग मारे गये थे। नेपाल के कम्युनिस्टों की उस समय की वामपंथी पार्टियों ने सशस्त्र लड़ाई लड़ी थी। एक थी ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनीफाइड मार्कसिस्ट लैनिनिस्ट) तथा पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाली नेपाल माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी। अंतत: इन दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों में दो वर्ष की बातचीत के बाद समझौता हो गया था। ये एकत्रित हो गईं थीं तथा नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी अस्तित्व में आई। संविधान बनने के बाद हुये चुनावों में कम्युनिस्टों को विजय प्राप्त हुई थी। दोनों पार्टियों के नेताओं ने केन्द्रीय शासन चलाने के संबंध में समझौता किया था, परन्तु समय के साथ-साथ यह समझौता टूटना शुरू हो गया। ओली के कामकाज के तरीकों से पार्टी के अधिकतर नेता नाराज़ हो गये। आज 45 सदस्यों वाली स्थायी कमेटी में ओली एवं उसके साथी अल्पमत में रह गये हैं। इन 45 सदस्यों में से 30 सदस्य ओली के खिलाफ हैं। इनमें 3 पूर्व प्रधानमंत्री भी हैं, जिनमें प्रचंड के अतिरिक्त माधव कुमार नेपाल एवं झाला नाथ खानाल आदि शामिल हैं। ओली का झुकाव बड़ी सीमा तक चीन की ओर रहा है। वर्तमान में चीन के साथ नेपाल ने बड़े आर्थिक समझौते भी किये हैं। भारत के साथ सीमांत विवाद को ओली ने आवश्यकता से अधिक उछाला है। यह तब उभर कर सामने आया जब 8 मई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख दर्रे के साथ उत्तराखंड के धारचूला को जोड़ने वाली सड़क का उद्घाटन किया था। नेपाल ने इसे लेकर आपत्ति दर्ज की और कई सीमांत इलाकों को अपना करार दिया। इस संबंध में संसद से प्रस्ताव भी पारित करवा लिया गया तथा नये प्रस्ताव के साथ ओली ने नये नक्शों को भी संसद के माध्यम से मान्यता दिलवा दी। नये नेपाली संविधान के अस्तित्व में आने के समय सीमा के साथ बड़ी संख्या में रहने वाले मधेशियों के मामले पर भी दोनों देशों में तनाव बना रहा है। आज भी मधेशी नित्य-प्रति सरकार के विरुद्ध धरने एवं प्रदर्शन कर रहे हैं, परन्तु भारत के साथ सीमा खुली होने के कारण दोनों देशों के लोगों के बिना किसी झिझक के एक-दूसरे देश में आने-जाने के दृष्टिगत तथा नेपाली नागरिकों को भारत में पूरे आर्थिक अवसर एवं सम्भावनाएं उपलब्ध होने के कारण दोनों देश भातृत्व भावना के साथ एक-दूसरे के साथ जुड़े रहे हैं। चीन चाहे नेपाल के साथ आर्थिक समझौते तो कर सकता है परन्तु भारत एवं नेपाल के बीच आपसी सौहार्द बना हुआ है। ऐसी सुविधाएं नेपाल के लोगों को चीन के साथ निकट संबंध बनाने के बाद मिलते रहना सम्भव नहीं हो सकता। आज ओली एवं प्रचंड के गुटों के बीच विवाद बना हुआ है जो उनकी पार्टी का आंतरिक मामला है, परन्तु ओली इस झगड़े को भारत की ओर से दूसरे गुट के लिए किया जा रहा पक्षपात कह कर प्रचार कर रहे हैं। दूसरी तरफ प्रचंड गुट के साथ-साथ इस पार्टी के अधिकतर नेता किसी भी स्थिति में भारत के साथ संबंध खराब करने के पक्ष में नहीं हैं। प्रचंड एवं उनके साथियों ने ये बयान भी दिये हैं कि ओली की ओर से भारत के विरुद्ध की गई टिप्पणियां राजनीतिक एवं कूटनीतिक दृष्टिकोण से किसी भी प्रकार उचित नहीं हैं। जहां ओली के सिर पर पार्टी की आंतरिक कशमकश के कारण त्याग-पत्र की तलवार लटक रही है, वहीं चीनी राजदूत के हस्तक्षेप के कारण उनका त्याग-पत्र अधर में ही लटक रहा है। नेपाल के आंतरिक विवादों के बावजूद भारत को अपने इस पड़ोसी के साथ प्रत्येक स्थिति में अपने अच्छे संबंध बनाने के लिए भारी यत्न करने की ज़रूरत है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द