तमिलनाडू का भूतिया शहर धनुषकोड़ी

जब भी किसी भूतिया शहर या घोस्ट सिटी की बात छिड़ती है तो लोग झट से चीन की ओर्डोस सिटी को याद करते हैं या कहना चाहिए कि घोस्ट सिटी के नाम पर लोगों को चीन के आंतरिक मंगोलियाई क्षेत्र में बसे इसी शहर की याद आती है (जो कि अब पूरी तरह से घोस्ट सिटी भी नहीं रहा, क्योंकि दिसंबर 2018 के एक चीनी सरकार के दावे के मुताबिक इस शहर में 2,80,000 लोग रहने लगे हैं) शायद इसका कारण यह कि पिछली सदी के आखिरी दशक में दुनिया के एक मशहूर फोटोग्राफर ने इस शहर को अपने कैमरे में कैद करके पश्चिमी देशों के अखबारों को दिया और उन्होंने इसे दुनिया की सबसे बड़ी घोस्ट सिटी का तमगा दे दिया जो तब सही भी था। क्योंकि चीन ने रेगिस्तान के बीचोबीच करीब 10 लाख लोगों के रहने के लिए यह व्यवस्थित शहर बसाया था लेकिन साल 2000 के आसपास जब दुनिया भर की मीडिया में कंक्त्रीट के इस चीनी जंगल की तस्वीरें छपीं थीं तब यहां मुश्किल से 5 से 10,000 लोग ही रहते थे। इस लिहाज़ से गगनचुम्बी इमारतों, विशालकाय स्टेडियमों, भव्य शोपिंग प्लाज़ाओं वाला यह शहर भूतिया शहर ही था। लेकिनआज नहीं है क्योंकि चीनी सरकार के अलावा हाल में दुनिया के एक बड़े ट्रेवलर वेड शेपर्ड ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि अब यह भूतिया शहर करीब-करीब आबाद होने के कगार पर है। मगर इसके विपरीत हिन्दुस्तान में एक ऐसा भूतिया शहर है जो 1964 तक हर तरह से आबाद एक जीवंत शहर था, लेकिन अब यह पूरी तरह से भूतिया शहर है। शाम को अंधेरा होने के बाद इस शहर में अपवाद के लिए भी कोई एक भी व्यक्ति नहीं रहता। टोटल खाली। रात में इस शहर के खंडहरों से लिपटकर सिर्फ  तेज हवाएं भर सायं-सायं करती हैं।  रामेश्वरम से निकलने के बाद करीब 4-5 किलोमीटर बाद ही ऐसा लगने लगता है कि हम रेत के अंतहीन समंदर में घुस गए हैं।  यहां से करीब 12 से 14 किलोमीटर धनुषकोड़ी स्थित है जहां एक तरफ  हिंद महासागर तो दूसरी तरफ  बंगाल की खाड़ी स्थित है। दोनों समुद्रों के बीच औसतन 30 से 35 मीटर चौड़ा करीब आधा किमी लंबा भू-भाग समुद्र के अंदर निकला हुआ है यह वाकई सेतु सरीखी संरचना लगती है। इसके बाद ही लगभग एक किमी पर समुद्र के अन्दर एक टापू दिखाई देता है यही धनुषकोड़ी है। मान्यता है कि सात हजार साल पूर्व तक इस सेतु से लोग श्रीलंका तक आया जाया करते थे, किन्तु बाद में हुए समुद्री परिवर्तनों यानी चक्त्रवात आदि के कारण समुद्र की गहराई बढ़ गई। हालांकि आज भी यह गहराई 3 से 30 फीट से अधिक नहीं हैं। बहरहाल आइये अब घोस्ट सिटी में तबदील हो चुकी धनुषकोडी की बात करते हैं। अभी कोई बहुत साल नहीं गुजरे। सिर्फ 22 दिसम्बर 1964 से पूर्व तक धनुषकोड़ी एक सर्वसुविधा सम्पन्न जीवंत शहर हुआ करता था। जनसंख्या थी 2000,जो कि 1964 के हिसाब से अच्छी खासी थी। इतिहास के दस्तावेज बताते हैं कि यह एक व्यस्त बन्दरगाह हुआ करता था जहां से श्रीलंका सहित अन्य कई देशों से व्यापार होता था। यही नहीं यहां एक रेल वे स्टेशन भी हुआ करता था जो कि भारतीय सीमा का अंतिम रेलवे स्टेशन था। यहां से पम्बन के लिए धनुषकोड़ी लोकल पैसेंजर गाड़ियों के अलावा मद्रास एग्मोर जंक्शन तक के लिए रेल सेवा उपलब्ध थी। इसके अलावा अस्पताल, हायर सैकेण्डरी स्कूल, पुलिस स्टेशन, पोस्ट ऑफिस जैसी किसी भी शहर के लिए बुनियादी सेवाएं देने वाली अधिसंरचनाएं भी उपलब्ध थीं लेकिन एक रात में यह शहर कुदरत की निर्ममता का शिकार हो गया। दो दिन के बाद ही गुड फ्राईडे था और चूंकि क्षेत्र का सबसे बड़ा चर्च भी यहीं स्थित था इसलिए तैयारियां चल रही थीं,मगर 22 और 23 की मध्य रात्रि धनुषकोड़ी के लिए काल रात्रि बन गयी। एक रात में हंसता खेलता शहर हमेशा-हमेशा के लिए एक भूतिया शहर में तबदील हो गया। साल 1964 में आये उस हाई साइक्लोन से रामेश्वरम धनुषकोडी की रेल लाइन पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। यही नहीं उस समय स्टेशन में खडी एक पैसेंजर ट्रेन में सवार 115 यात्री और रेलवे स्टाफ  के सभी लोग मारे गए थे। वर्तमान में तो बस उस ध्वंस के महज़ चिन्ह ही मौजूद हैं। हालांकि अब एक बार फिर से व्यवस्था हो रही है कि धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन से एक बार फिर समुद्री मार्ग के जरिये श्रीलंका का स़फर किया जा सके। गौरतलब है कि धनुषकोड़ी से आगे श्रीलंका का शहर तलाई मन्नार स्थित है। पहले जो लोग श्रीलंका जाते थे वे धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन पर उतरकर स्टीमर की सहायता से तलाई मन्नार स्टेशन तक जाते थे। यहां से तलाई मन्नार महज 35 किलोमीटर दूर है। पिछले साल 24 दिसंबर 2018 को केंद्र सरकार द्वारा 17 किलोमीटर लंबी रामेश्वरम धनुषकोड़ी सैक्शन पर रेल लाइन बिछाने की मंजूरी दी है। इस रेल लाइन से रामसेतु तक सीधा रेल संपर्क सुधर जाएगा, क्योंकि धनुषकोड़ी से रामसेतु शुरू होता है। इस परियोजना के तहत तमिलनाडु के मंडपम से रामेश्वरम के बीच 2 किलोमीटर लंबा समुद्र पर नया सेतु भी बनाया जाएगा, जो पहले के सेतु से 3 मीटर ऊंचा होगा इससे ज्वार भाटा के दौरान रेल परिचालन पर असर नहीं पड़ेगा। समुंद्र के बड़े जहाज़ स्टीमर के जाने के लिए यहां पहली बार वर्टिकल लिफ्ट की तर्ज पर सेतु का 63 मीटर लंबा हिस्सा रेल लाइन से ऊपर उठ जाएगा, जबकि रेल लाइन के दोनों छोर और उठने वाले हिस्से पर कंट्रोल के लिए टावर बनेंगे।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर