विश्व के महान लेखक लिओ टॉल्सटॉय

लिओ टॉल्सटॉय का नाम विश्व के महान लेखकों में शामिल है। उनका उपन्यास ‘वार एंड पीस’ अब तक की सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है। लेकिन इस उपलब्धि के पीछे भी एक स्त्री का हाथ है। यह स्त्री है- लिओ टॉल्सटॉय की पत्नी सोफिया आंद्रेयेवना बेहर्स। लेकिन जिन कोमल हाथों ने टॉल्सटॉय की कामयाबी की कहानी लिखी, उनके अपने हिस्से में नाकामी के द़ाग ही आए। टॉल्सटॉय जब अपने शिखर पर थे, तभी पति-पत्नी के बीच बिखराव आने लगा। प्यार जितना गहरा था, ऩफरत उससे भी ज्यादा गहरी और इसका गवाह बना साहित्य। लिओ यानी लेव निकोलायेविच टॉल्सटॉय का जन्म 9 सितंबर 1828 को रूस के यासनाया पोलयाना नाम के एक समृद्ध गांव में हुआ था। तुला राज्य का यह गांव उनकी खानदानी रियासत थी। पिता निकोलाय इलयिच टॉल्सटॉय को काउंट का खिताब हासिल था। वह 1812 के युद्ध सेनानी थे। सन् 1830 में लिओ जब महज दो साल के थे, तो मां काउंटेस मार्या निकोलाएवना का निधन हो गया। तब वह 39 साल की थीं। उम्र में पिता निकोलॉय से चार साल बड़ी। 1837 में जब लिओ 9 साल के थे तो पिता निकोलॉय की भी मौत हो गई। पिता की मौत के कुछ दिनों के बाद वह तीनों भाइयों और बहन के साथ बुआ पेलागया युशकोव के पास कजान शहर आ गये। यहां जर्मन और फ्रेंच पढ़ाने के लिए शिक्षक घर आते थे। भाषाओं के प्रति उनका लगाव गहरा होता गया। वह अंग्रेज़ी, स्पेनिश, यूक्त्रेनी, इतालवी, ग्रीक, तुर्की, लैटिन और बुल्गारियाई भाषा भी पढ़ने-समझने लगे। टॉल्सटॉय के घरेलू पुस्तकालय में करीब 40 भाषाओं की 23,000 से ज्यादा किताबें थीं। सन् 1843 में लिओ ने कजान विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया लेकिन 1847 में पैतृक रियासत के बंटवारे के समय बिना किसी डिग्री के विश्वविद्यालय छोड़ दिया। बड़े भाई निकोलाय की तरह टॉल्सटॉय भी 1852 में सेना में शामिल हो गए। काकेशस पर्वत पर तैनाती के समय ही उन्होंने लिखना शुरू किया। पहली आत्मकथात्मक रचना ‘देत्सत्वो’ यानी चाइल्डहुड एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘सॉवरेमेनिक’ यानी द कंटेंपरेरी में छपी एलएन के नाम से। रचनाकार अनाम था, लेकिन रचना पढ़कर संपादक निकोलाय निकरासोव बेहद प्रभावित हुआ। नवंबर 1852 में चाइल्डहुड प्रकाशित हुई और धूम मच गई। बाद में इसकी अगली कड़ियां 1954 में ब्वॉयहुड और 1957 में यूथ के नाम से प्रकाशित हुईं। तब टॉल्सटॉय की उम्र महज़ 23 साल थी। नवंबर 1854 से अगस्त 1855 तक वो सेवास्तोपोल के एक शांत मोर्चे पर रहे। यहां उन्होंने आत्मकथा का दूसरा हिस्सा ‘सेवास्तोपोल स्केचेज’ लिखा। तीन लघु कथाओं वाली यह किताब 1855 में छपी। क्त्रीमियन युद्ध के बाद हिंसा से विचलित टॉल्सटॉय ने सेना छोड़ दी। 1860-61 में उन्होंने यूरोपीय देशों का दौरा किया। फ्रांस में उन्होंने ह्यूगो से भेंट की। राजनीतिक बागी पियरे जोसेफ प्राउडहॉन से मिले। उनकी आने वाली रचना ‘ला गुएरे एट ला पाइक्स’ पढ़ी। यही शीर्षक अपने आने वाले उपन्यास के लिए तय कर लिया ‘बेलि एट पेसिस’ यानी वार एंड पीस। 1862 में टॉल्सटॉय की मुलाकात सोफिया आंद्रेयेवना बेहर्स से हुई। 22 अगस्त 1844 को जन्मी स़ोिफया बेहद खूबसूरत और बहुत बुद्धिमान युवती थीं। जर्मन चिकित्सक पिता इवास्टाफिविच बेहर्स और रूसी मां लिउबोव अलेक्जेंद्रोवना की तीन बेटियों में दूसरे नंबर पर। उनकी परनानी काउंट प्योत्र रूस की पहली शिक्षा मंत्री रही थीं। मुलाकात के कुछ दिनों बाद ही टॉल्सटॉय ने सोफिया के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। तब टॉल्सटॉय 34 के थे और सोफिया 18 की। 16 साल छोटी। 23 सितंबर 1862 को उनकी शादी हो गई। सोफिया पोलयाना आ गईं। वो टॉल्सटॉय से प्यार करती थीं। उन्होंने घर से लेकर रियासत तक सारी जिम्मेदारी संभाल ली। बिस्तर से लेकर व्यवसाय तक वो पति के लिए समर्पित हो गईं। शादी के 9 महीने बाद ही स़ोिफया मां भी बन गईं। उसी साल टॉल्सटॉय ने वार एंड पीस लिखनी शुरू की। उनकी लिखावट बेहद गंदी थीं। हाशिया तक भरा होता था। इसे पढ़कर फिर से लिखने का काम स़ोिफया करती थीं। मुश्किल काम था। कई बार तो उन्हें लेंस इस्तेमाल करने पड़ते थे। लिख जाने के बाद टॉल्सटॉय फिर बदलाव करते थे। स़ोिफया फिर लिखती थीं। बार-बार। नौकरों की छुट्टी और बच्चों के सो जाने के बाद रात में वो नकल और सुधार करने बैठ जाती थीं। दीये की रोशनी और हाथ में कलम दवात के साथ। अगले सात सालों में उन्होंने पूरी किताब आठ बार लिखी। कई अंश दो दर्जन से ज्यादा बार। इस बीच उन्होंने 4 बच्चों को जन्म दिया। शादी के डेढ़ दशक के दौरान तो उन्होंने 13 बच्चों को जन्म दिया। 9 जीवित बचे बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी निभाई और वार एंड पीस के अलावा अन्ना कारेनिना जैसे महान उपन्यासों में कड़ी मेहनत की। जब सोफिया बुखार से मरने के कगार पर थीं और इसके बाद भी यह सब तब कर रही थीं, तब भी टॉल्सटॉय का मानना था कि लेखन महिलाओं का अधिकार नहीं है। टॉल्सटॉय की नज़र में उनकी हैसियत वासना पूर्ति के लिए एक औरत होना भर था। वार एंड पीस 1869 में पूरी हुई। अन्ना कारेनिना 1877 में प्रकाशित हुई। इन दोनों रचनाओं ने दुनियाभर में सनसनी फैला दी थी। लेकिन अन्ना कारेनिना के बाद वह नास्तिक हो गये। फिर 1878-1879 में ‘अ कनफेशन’ लिखी। धर्म और क्त्रांति के विचारों को लेकर किताब पर विवाद हो गया। यह 1882 में स्विटज़रलैंड से प्रकाशित हुई। बचपन में बपतिस्मा ले चुके टॉल्सटॉय ने चर्च के खिलाफ विद्रोह कर दिया। चर्च के अधिकारों को चुनौती दे दी। सन् 1883 में द मीडिएटर में उनके कई लेख छपे। सरकार ने इसकी कापियां जब्त कर लीं। रूस की खुफिया एजेंसियां उनके पीछे लग गईं। थोड़े समय तक जीवन में उलझे रहने के बाद 1886 में ‘इवान इल्यीच की मौत’ प्रकाशित हुई। उपन्यास ने एक बार फिर उन्हें पटल पर ला खड़ा किया। 1890 में उन्होंने अपनी रचनाओं से मिलने वाला सारा धन और सारी संपत्ति दान कर दी। 1899 में ‘रिसरेक्शन’ उनका आखिरी उपन्यास था। इसकी सारी कमाई उन्होंने शांतिवादी दुखेबोर समुदाय को दे दी, ताकि वो कनाडा जाकर बस सकें। टॉल्सटॉय के दान के फैसलों से घरेलू विवाद चरम पर आ गया। आखिरकार 1884 में हुए समझौते के तहत 1881 से पहले के सारे काम के कॉपीराइट स़ोिफया को मिल गये। आखिर, 82 साल की उम्र में, 7 नवंबर 1910 की आधी रात को उन्होंने छोटी बेटी ऐलेक्लेंड्रा और चिकित्सक दुसान माकोविक के साथ घर छोड़ दिया। ट्रेन में ही ऐस्तापोवो स्टेशन पर उनकी हालत बिगड़ गई। 20 नवंबर 1910 को उनका निधन हो गया। 

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