अंतत :

आज फिर जय रेवा के फ्लैट पर आ गया था। वह पूरे जोर-शोर से स्वयं को रेवा का पति सिद्ध कर रहा था। रेवा ने उसे जैसे-तैसे भगा तो दिया लेकिन समस्या को गम्भीर जान उससे छुटकारे की तरकीब पर विचार करने लगी। उसने धीरे से पैर उठाकर सोफे पर फैला लिए और वहीं लेट गई। उसे पिता जी की याद आ गई ऐसे समय में उसे वह कितनी अच्छी और सही राय देते थे। इसके अतिरिक्त एक व्यक्तित्व और भी था जिसका दरवाजा वह इस समय खटखटा सकती थी और वह थे डॉ. सूर्य प्रकाश। किन्तु इस समय तो न उसके पिता जी ही थे और न डॉ. सूर्य प्रकाश। अब तो उसे अपना प्रकाश स्वयं ही बनना था। स्मृतियों की अंधी गुफा रेवा के लिए रास्ता बनाती गई और रेवा उसमें धंसती चली गई। रेवा के पिता जी का आग्रह था कि वह कुछ ही वर्षों में रिटायर होने वाले हैं, जो पैसा उन्हें सेवानिवृत्ति पर मिलेगा उसमें रेवा का विवाह हो जाएगा, इसलिए रेवा को उनकी बात मान लेनी चाहिए, परन्तु रेवा को तो डॉक्टर बनने की धुन सवार थी। उसकी माँ भी उसका साथ दे रही थी, माँ का कहना था कि ‘इतनी पढ़ाई के बाद वह बेटी की उम्मीदों पर पानी न फेरें’,  किन्तु पिता जी की चिन्ता अपनी जगह पर स्थिर थी और रेवा अपनी पढ़ाई के आगे किसी बात को भी प्राथमिकता नहीं दे रही थी। दोनों अड़े हुए थे और रेवा की पढ़ाई बदस्तूर जारी थी।डॉ. सूर्य प्रकाश, रेवा के पिता के घनिष्ट मित्रों में से थे। वह भी रेवा की पढ़ाई पूरी करने के पक्ष में थे। इस प्रकार रेवा के पक्ष में दो और विपक्ष में एक वोट होने से उसकी पढ़ाई चलती रही। घर में तना-तनी बढ़ती रही और रेवा अपनी पढ़ाई पूरी करके आखिरकार डॉक्टर बन ही गई और उसे अपरेंटिसशिप भी मिल गई। भाग्य कहिए कि फिर उसी अस्पताल में उसे अस्थाई नौकरी भी मिल गई। समय बीतने लगा और पिताजी की रिटायरमेंट का समय निकट आता गया। पिताजी ने हार नहीं मानी थी और वे रेवा के लिए किसी अच्छे वर की तलाश में लगे रहे। इसी बीच उनके बैंक में जय प्रकाश नाम का एक अविवाहित लड़का कुल्लू से स्थानांतरित होकर आया तो बात-चीत में रेवा के पिता ने उससे रेवा के रिश्ते की बात चलाई। उसके घर वाले और जय तुरन्त ही उनका प्रस्ताव मान गए। अब पिताजी ने रेवा पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। इस बीच जय प्रकाश ने भी उनके घर आना-जाना शुरू कर दिया ताकि वह रेवा को प्रभावित कर सके। आखिर उनकी इच्छा के आगे माँ-बेटी दोनों को झुकना पड़ा। रेवा का भाई तो पढ़ाई के लिए विदेश क्या गया कि फिर लौटा ही नहीं, इसलिए भी रेवा के पिता को रेवा की ज्यादा चिंता थी। वह सोचते थे कि उनकी बेटी अपने घर चली जाए तो उनके कर्तव्य की इतिश्री हो जाए। विदेश गए बेटे पर तो उन्हें कुछ भी उम्मीद नहीं थी और वह रेवा की शादी में आया भी नहीं था, हालांकि उन्होंने उसे पत्र भी लिख दिया था और फोन भी कर दिया था। विवाह के कुछ समय बाद रेवा ने जय प्रकाश से नौकरी जारी रखने की बात की। उसकी छुट्टियाँ समाप्त हो रही थीं। रेवा की बात सुनकर जय प्रकाश ने डपटते हुए कहा, ‘चुपचाप घर में बैठो और घर का काम देखो।’और इतना कहकर उसने बात ख़त्म कर दी, जब रेवा ने उसे अपने पिता को दिए वचन की याद दिलाई तो वह उबलने लगा। इतना ही नहीं, जय की माँ ने भी रेवा की नौकरी का जमकर विरोध किया, फिर इसी बात को लेकर उनकी आपस में आए दिन ही तकरार होने लगी। रेवा रोज अस्पताल जाने को कहती और घर में कलह हो जाती। बात बढ़ी तो जयप्रकाश बिना कुछ कहे एक दिन रेवा को उसके पिता के घर छोड़ गया। उन लोगों का सोचना था कि रेवा की अकड़ टूट जाएगी और वह लौट। फिर कर ससुराल आएगी ही, परन्तु न तो उन लोगों ने उसे बुलाया और न रेवा अपने-आप ही ससुराल गई। ब्याही हुई बेटी पिता के घर में बैठी थी तो पिताजी को चैन कैसे पड़ता? वह अक्सर ही सोचते कि विवाह की बात चलने पर जय प्रकाश ने ही तो कहा था कि उसे रेवा की नौकरी से कोई परेशानी नहीं है, इसीलिए रेवा ने हाँ कह दिया था फिर अब वह इस पर विवाद क्यों खड़ा कर रहा था। इसी बात को याद दिलाने एक दिन पिता जी जय प्रकाश से मिलने बैंक जा पहुँचे। रेवा की बात छेड़ते ही जयप्रकाश तुनक कर बोला ‘उसे तो आप डॉक्टर बनाए रखिए। मेरे घर में डॉक्टर की नहीं बीवी की जरूरत है।’इतना कहने के साथ ही वह उठकर बैंक से बाहर निकल गया। हताश निराश लैटे पिताजी ने दूसरे ही दिन रेवा को अस्पताल जाने की इजाज़त दे दी। वह समझ गए थे कि बात बनने वाली नहीं है और रेवा नौकरी पर वापस शिमला चली गई। शिमला आकर उसे पता चला कि उसे अब सर्जन की ट्रेनिंग के लिए जाने का अवसर मिलने वाला है। वह सब कुछ भुलाकर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई, लेकिन माँ को ऐसा धक्का लगा कि उसने बिस्तर पकड़ लिया। (क्रमश:)