मिला खज़ाना

अंधेरी काली रात। लोग अपने-अपने घरों में सोए हुए थे। तभी कुछ डाकुओं ने दीनानाथ के घर पर धावा बोला। पीछे के बड़े दरवाजे से एक डाकू ने दीवार फांदकर अंदर का मुख्य द्वार खोल दिया। मुख्य द्वार के सामने ही मिट्टी से पुता हुआ आंगन था। डाकुओं के सरदार को कहीं से यह भनक पड़ गई थी कि दीनानाथ ने अपना बहुत सारा धन आंगन में नीम के पेड़ के नीचे दबा रखा है। डाकुओं के सरदार ने अपने आदमियों को उसी जमीन को खोदने का हुक्म दिया। वे लोग खुदाई करते-करते थक गए परंतु उन्हें खजाना न मिला। खोदते-खोदते उनके कंधे दुखने लगे। काम करने की रफ्तार भी धीमी हो गई। इतने में एक व्यक्ति जोर से चिल्ला उठा, ‘मिल गया, मिल गया। सरदार, खजाना मिल गया।‘ उत्सुक आंखों से सब उसकी ओर देखने लगे। उस गड्ढे में सोने और चांदी के सिक्कों से भरा हुआ एक घड़ा दबा था। सरदार ने उन सिक्कों की एक पोटली बांध ली। तभी दीनानाथ दरवाजे पर खड़ा होकर चिल्लाने लगे, ‘अरे, मैं लुट गया।‘ इतने में सरदार ने एक जोर का थप्पड़ उसके मुंह पर मारा और उसे बंदूक दिखाई। उसके हाथ थर-थर कांपने लगे। मुंह से बोल न सका। फिर भी कांपते हुए दोनों हाथ जोड़कर बोला, ‘अब मेरी बेटी की शादी कैसे होगी? आने वाली पूर्णिमा को उसकी शादी है। मैंने उसकी शादी के लिए यह धन इकट्ठा किया था।‘ लेकिन डाकू नहीं पसीजे। पोटली को लेकर देखते ही देखते सब डाकू चले गए। सुबह होते-होते सारे गांव में डकैती की खबर फैल गई। लोग दीनानाथ के घर पर जमा होने लगे। दीनानाथ का पूरा परिवार, शोक में डूबा था। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा? तभी एक गांव वाले ने कहा, ‘क्या दीनानाथ की बेटी हमारी बेटी नहीं है। सोचो, अगर हमारे साथ ऐसा हुआ होता तो?‘ यह सुनकर कई गांव वाले एक साथ बोले, ‘हमें दीनानाथ की मदद करनी चाहिए।‘ बस फिर क्या था। जिसके घर अनाज पैदा हुआ था, उसने अनाज भिजवाया। किसी ने घी, किसी ने खांड, किसी ने तेल। ऐसा लगता था, जैसे पूरा गांव ही शादी की तैयारियों में जुट गया था। शादी से दो दिन पहले सुबह-सुबह किसी ने कुंडी खटखटाई। दीनानाथ ने दरवाजा खोला मगर कोई दिखाई नहीं दिया। सामने एक पोटली रखी थी। दीनानाथ ने उसे खोला तो उसमें वे ही सोने-चांदी के सिक्के थे जिन्हें डाकू लूट ले गए थे। डाकुओं के सरदार का पत्र भी था। पत्र में लिखा था, ‘माफ करना भाई, उस समय हम लालच में अंधे हो गए थे लेकिन बाद में लगा, हमने अच्छा नहीं किया। एक बेटी को दुखी देखकर कौन सुखी हो सकता है? तुम्हारा धन तुम्हें वापस कर रहे हैं। बेटी के विवाह के लिए आशीर्वाद।‘ डाकू का पत्र पढ़कर दीनानाथ की आंखें भर आईं।