राजस्थान का घटनाक्रम एवं कांग्रेस का संकट 

हाल की घड़ी चाहे राजस्थान में कांग्रेस सरकार का हाल मध्य प्रदेश जैसा नहीं हुआ, जहां कांग्रेस की सरकार को पार्टी के भीतरी विरोधियों ने ही पलटा दिया था तथा भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई थी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने सरकारी निवास पर विधायक दल की बैठक बुला कर एक बार तो अपने बहुमत का दावा सिद्ध कर दिया है, परन्तु इस संबंध में अभी तक निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता कि किनारे पर खड़ा यह बहुमत कितनी देर तक कायम रह सकेगा। सचिन पायलट राजस्थान के एक सुलझे हुए युवा नेता हैं। प्रदेश की विधानसभा के चुनाव 2018 में हुए थे। तब सचिन पायटल ही प्रदेश कांग्रेस के प्रधान थे। दो सौ सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को तब 100 सीटें मिली थीं। इसके अतिरिक्त उसे कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों और कुछ छोटे दलों के विधायकों का समर्थन भी हासिल हुआ था। मुख्यमंत्री बनने के प्रश्न पर बुज़ुर्ग और परिपक्व नेता अशोक गहलोत एवं सचिन पायलट में भारी कशमकश चली थी। अन्त में एक समझौते के तहत गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया था। प्रदेश में पार्टी की अध्यक्षता भी सचिन पायलट के पास ही रही थी परन्तु पिछले सारे समय में पायलट को प्रशासन में  दृष्टिविगत किए जाने की शिकायतें मिलती रही थीं। शिकायतों का यह पुलिंदा वह पार्टी हाईकमान के पास निरंतर पहुंचाते भी रहे थे। सचिन पायलट को यह शिकायत रही है कि सरकार की ओर से लिए जाने वाले महत्वपूर्ण फैसलों के संबंध में उन्हें विश्वास में नहीं लिया जाता तथा यह भी कि गहलोत उन्हें अध्यक्षता के पद से हटाने के लिए निरंतर लामबन्दी करते रहे हैं। गहलोत को यह शिकायत रही है कि सचिन पायलट ने विधानसभा चुनावों में न केवल उनके बेटे को ही हराया, अपितु वह निरंतर उन्हें पद से हटाने की योजनाएं भी बनाते रहे हैं। यह भी कि वह प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल भाजपा के साथ जिसके विधानसभा में 72 विधायक हैं, भी जोड़-तोड़ करते रहे हैं। पिछले समय में सम्पन्न हुए राज्य सभा के चुनावों में भी गहलोत को अपने इस मुख्य विरोधी से चौकस रहते हुए पूरी लामबन्दी करनी पड़ी थी। दूसरी तरफ सचिन को यह भी शिकायत रही है कि उनकी ओर से हाईकमान को भेजी गई शिकायतों का कोई नोटिस नहीं लिया गया और न ही दिल्ली बैठे नेताओं द्वारा लगातार पेचीदा होती जा रही स्थिति को संभालने का ही कोई यत्न किया गया। अब जब कि प्रदेश की आंतरिक लड़ाई तेज हो गई है तो विधायकों की खरीदो-फरोख्त के संबंध में प्रदेश की पुलिस की ओर से सचिन को स्पष्टीकरण देने के लिए नोटिस भेजा गया है। सचिन पायलट ने अपने सरकारी पद एवं प्रदेश में अपनी राजनीतिक छवि को देखते हुए इस कार्रवाई को अत्याधिक आपत्तिजनक एवं अपमानजनक समझते हुए मुख्यमंत्री के विरुद्ध बगावत का ध्वज उठा लिया तथा यह भी कह दिया है कि पार्टी के 30 विधायकों के अतिरिक्त कुछ निर्दलदीय विधायक भी उनके साथ हैं। इस बात ने सरकार के आंतरिक संकट को चरम सीमा तक पहुंचा दिया है। गहलोत ने भाजपा पर भी यह आरोप लगाया है कि वह प्रदेश सरकार को तोड़ने का यत्न कर रही है। इस आरोप की सत्यता से इन्कार नहीं किया जा सकता। नि:सन्देह भाजपा राजस्थान में मध्य प्रदेश वाली स्थिति को दोहराना चाहती है परन्तु हम इसके लिए बड़ा जिम्मेदार कांग्रेस के नेतृत्व को समझते हैं जो सरकार बनने से लेकर अब तक उत्पन्न हुए इस संकट को सुलझाने में विफल रहा है। कांग्रेस हाईकमान इस समय भी अनिश्चित स्थिति में विचरण करते दिखाई दे रहा है। चाहे राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था तथा सोनिया गांधी ने सामयिक तौर पर यह पद संभाला हुआ है परन्तु इसके बावजूद पार्टी के भीतर आधारभूत एवं अधिकतर फैसले राहुल गांधी ही करते प्रतीत होते हैं जिस ने पार्टी के भीतर इस अनिश्चित स्थिति को पैदा किया है। एक  पुरानी राष्ट्रीय पार्टी की ओर से एक परिवार को ही अपनी बागडोर थमाए रखने से इस पार्टी की पतंग कितनी देर तक उड़ते रह सकती है। अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि एक बड़ी पार्टी की ओर से कुछ व्यक्तियों पर ही टेक रखना उसके स्वस्थ होने की निशानी नहीं है। 

                       —बरजिन्दर सिंह हमदर्द